सुनील वर्मा
एक दूसरे के खिलाफ वोट मांगकर और उसके बाद अवाम को धोखा देकर सरकार बनाने वाले बीजेपी-पीडीपी गठबंधन का हश्र यही होना था।’ यह आकलन है कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता और केंद्र की यूपीए सरकार में मंत्री रहे सैफुद्दीन सोज का। जम्‍मू-कश्‍मीर में भाजपा-पीडीपी गठबंधन के टूटने के मुद्दे पर ‘ओपिनियन पोस्‍ट’ से बातचीत में सोज ने साफ किया कि ‘बीजेपी का ये फैसला 2019 के आम चुनाव की रणनीति का एजेंडा है।’ गठबंधन टूटने का राज्‍य पर क्‍या असर पड़ेगा- यह पूछने पर उन्‍होंने कहा, ‘अब बीजेपी गर्वनर रूल के जरिये सूबे में ऐसे हालात पैदा करेगी, जिससे समाज बंटेगा और राज्‍य में बेगुनाहों पर फौजी कार्रवाई में तेजी आएगी। अमित शाह और मोदी जी इस कार्रवाई के जरिये देश को संदेश देंगे कि उन्‍होंने गठबंधन तोड़कर हालात को बेहतर बना दिया है। वे अपने फैसले को कुर्बानी का नाम देकर जनता को भ्रमित करने का काम करेंगे।
कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता से जब पूछा गया कि बीजेपी-पीडीपी सरकार के तीन साल के दौरान हालात बिगड़े या सुधरे तो उनका जवाब था, ‘हालात बद से बदतर हुए हैं। सरकार का कोई अचीवमेंट नहीं है। बीजेपी गठबंधन से सर्मथन वापस लेकर खुद इस बात को स्‍वीकार कर चुकी है कि कश्‍मीर के हालात लगातार बिगड़ रहे थे। जाहिर है कि ये सब उनकी मिली जुली सरकार के दौरान ही हो रहा था।’
सोज ने गठबंधन सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि और सबसे बड़ी नाकामी के सवाल पर तंज कसते हुए उल्‍टे सवाल किया- ‘उपलब्धि कहां है?’ उनके मुताबिक, ‘अगर सरकार ने कोई उपलब्धि हासिल की होती तो गठबंधन तोड़ने की जरूरत ही नहीं पड़ती। ये सरकार पूरी तरह नाकाम और राज्‍य की समस्‍याओं को बढ़ाने वाली सरकार रही है। गठंबधन के दोनों साथी बीजेपी और पीडीपी अपने एजेंडे पर काम करते रहे, राज्‍य में विकास के नाम पर लोगों को सिर्फ और सिर्फ धोखा मिला है।
कांग्रेस नेता से जब पूछा गया कि अब आगे क्‍या होना चाहिए- सुरक्षाबलों को खुली छूट दी जाए या बातचीत का माहौल तैयार किया जाए तो उनका साफ कहना था कि ‘सुरक्षा बलों को पिछले तीन साल से खुली छूट ही मिली थी, हर रोज मिलिटेंट और उनके साथ बेगुनाह भी मारे जा रहे थे, इसीलिए हालात खराब हुए। अब गर्वनर साहब को ऐसा माहौल तैयार करना चाहिए जिससे अमन बहाल हो, क्‍योंकि लोग शांति चाहते हैं। इसका सिर्फ और सिर्फ एक ही रास्‍ता है कि बातचीत के लिए सभी पक्षों को टेबल पर बैठाएं, खासतौर से हुर्रियत के लीडरों से भी बातचीत की जाए जो अलगाव की बात करने वालों की नुमाइंदगी करते हैं, केंद्र सरकार समझे कि समस्‍याएं क्‍या हैं, सरकार फौजी कार्रवाइयों को जल्‍द से जल्‍द बंद कराए तो मुझे लगता है कि शांति बहाली की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है।’
जम्मू कश्मीर के इस राजनीतिक घटनाक्रम का पाकिस्‍तान और घाटी में आतंकवादियों और उनके रहनुमाओं पर क्‍या असर होगा- इस पर कांग्रेस नेता ने कहा, ‘ कश्‍मीर की अवाम राज्‍य में अमन चाहती है। वो कभी पाकिस्‍तान या मिलिटेंट को सपोर्ट करने वाली किसी कार्रवाई का समर्थन नहीं करती। पाकिस्‍तान क्‍या चाहता है, मिलिटेंट क्‍या चाहते हैं और उनके रहनुमा पर क्‍या असर होगा- इससे कश्‍मीर के आवाम को ज्‍यादा फर्क नहीं पड़ता। कश्‍मीरी अवाम की इच्छा है कि उसे कश्‍मीर में आजादी और शांति के साथ रहने दिया जाए, हम चाहते हैं कि मोदी सरकार अवाम और सूबे की भलाई को ध्‍यान में रखकर कोई भी फैसला ले।’
क्‍या लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार जम्‍मू-कश्‍मीर में कोई बुनियादी बदलाव ला पाएगी? इस सवाल पर कांग्रेस नेता ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए तंज भरे शब्‍दों में कहा, ‘देखिए घाटी में मौजूदा हालात के लिए केंद्र में भाजपा सरकार की नीतियां ही जिम्मेदार हैं। हमें नहीं लगता कि इस बेमेल गंठबंधन के टूटने से हालात में कोई बदलाव आएगा क्‍योंकि तीन साल बाद सरकार से समर्थन वापस लेने के पीछे बीजेपी की नीयत साफ दिख रही है कि वो 2019 के चुनावी एजेंडे पर काम कर रही है। अब वो जम्‍मू में अपने नाराज वोट बैंक को मनाने और नफरत का माहौल बनाकर चुनाव जीतने की नीति पर काम करेगी। बस इससे ज्‍यादा कोई बदलाव नहीं होने वाला।’ सोज ने ये भी कहा कि ‘कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस के साथ मिलकर जल्‍द ही राज्‍य में ऐसा माहौल बनाएगी कि वोट की बदौलत जम्‍मू-कश्‍मीर में एक बार फिर शांति आए और बीजेपी की गलत सियासत का खात्‍मा हो।’
सैफुद्दीन सोज की लिखी एक किताब प्रकाशित हुई है ‘कश्मीर : ग्लिम्पसेज आॅफ हिस्ट्री एंड द स्टोरी आॅफ स्ट्रगल’। इस किताब को लेकर काफी विवाद हो रहा है। इसमें उन्होंने पाकिस्‍तान के पूर्व तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ की कश्‍मीर को लेकर कही गई बातों का सर्मथन किया है। इस बारे में पूछने पर कांग्रेस नेता सोज थोड़े असहज होते हैं और उनके शब्‍दों में किताब को लेकर सवाल उठाने वाले लोगों के प्रति नाराजगी साफ झलकती है, ‘जो लोग किताब के बहाने मुझ पर सवाल उठा रहे हैं या तो उन्‍होंने इस किताब की स्‍टडी नहीं की है या वे जान बूझकर किताब में लिखी गई बातों के अंशों को आधा-अधूरा और तोड़ मरोड़कर पेश कर रहे हैं। पहली बा‍त तो किताब में हमने भारत की आजादी से पहले के कश्मीर के हालात की व्याख्या की है। दूसरे मैंने सिर्फ यह लिखा कि कश्मीर के लोगों से अगर आजादी के बारे में पूछा जाए तो वे इसे नामुमकिन बात बता देंगे। आजादी की बात तो मैंने मुशर्रफ के बयान के तर्क में लिखी है। लेकिन यह बात अपनी जगह ठीक है कि कश्‍मीर के लोगों की पहली प्राथमिकता आजादी है। वे पाकिस्‍तान या भारत से अलग अपने खुद के वजूद को आजादी मानते हैं।’
सोज कहते हैं, ‘बीजेपी के बहुत बड़े लीडर रहे अटल जी और मनमोहन सिंह जी भी कश्‍मीरी अवाम की आजादी की मांग को बहुत अच्छे से समझते थे, लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद इस मांग का कोई हल नहीं ढूंढ सके।
यह पूछने पर कि आप ही की पार्टी के लीडर गुलाम नबी आजाद ने कहा है कि आर्मी के आॅपरेशन में आतंकियों से ज्‍यादा आम नागरिक मारे जाते हैं, सोज का कहना था, ‘आजाद पार्टी के सीनियर लीडर हैं और घाटी की कोई भी हालत उनसे छिपी नहीं है। उन्‍होंने जो कहा है एकदम ठीक कहा है। अगर कोई इस सच्‍चाई को जानना चाहता है तो निष्‍पक्ष रूप से घाटी में आम नागरिकों के बीच जाकर सच्‍चाई का पता लगा सकता है। वैसे बीजेपी के लीडर जिन बातों को मुद्दा बना रहे हैं उनकी हकीकत ये है कि वे पीडीपी के साथ अपने बेमेल गठबंधन के टूटने और गठबंधन सरकार की विफलता के मुद्दे को भटकाना चाहते हैं। उनका हमेशा से रवैया रहा है कि जब भी कोई वाकया होता है जिसमें उनके ऊपर उंगलियां उठती हैं तो वे कोई बेतुका सा राग छेड़कर देश को एक अलग ही बहस में लगा देते हैं। इस तरह का कुप्रचार करना बीजेपी की बहुत पुरानी रणनीति है। पूरा देश जानता है कि तीन साल तक आपने कश्‍मीर के हालात बदलने के लिए कुछ नहीं किया। आज जब हालात बेकाबू हो गए तो आप गलती सुधारने की जगह ध्‍यान भटकाने के लिए ऊल जलूल बातों में लोगों को उलझाना चाहते हैं।’ 