वीरेन्द्र नाथ भट्ट।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा पिछड़े वर्ग के 27 प्रतिशत आरक्षण को पिछड़ी, अति पिछड़ी और महापिछड़ी जातियों में ‘सब कैटेगरी’ में बांटने के प्रस्ताव से उत्तर प्रदेश में सोशल इंजीनियरिंग का नारा फिर से बुलंद होने लगा है। मनमोहन सिंह की सरकार के अंतिम दौर में फरवरी 2014 में केंद्र सरकार की पिछड़े वर्ग की सूची में शामिल जातियों को एक से अधिक कैटेगरी में बांटने की कवायद शुरू की गई थी। अब तक नौ राज्य आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और पुड्डुचेरी में पिछड़े वर्ग की सूची में शामिल जातियों को दो से चार वर्गांे में विभाजित कर 27 प्रतिशत कोटे के अन्दर ही प्रत्येक के लिए अलग अलग कोटा निर्धारित किया गया है। लेकिन उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार पिछड़े वर्गांे के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण कोटे में जातियों के किसी भी विभाजन के खिलाफ है।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग कुछ नया नहीं कर रहा है। उत्तर प्रदेश में 2001 में तत्कालीन भाजपा सरकार के मुख्य मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा गठित ‘सामाजिक न्याय समिति’ ने यही सिफारिश की थी और उसके अनुसार आरक्षण के कानून में संशोधन भी किया गया था। 2001 में समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी ने इस कानून का डटकर विरोध किया था और इसे सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ने व पिछड़े व दलित वर्ग की जातियों में आरक्षण के नाम पर फूट पैदा करने की साजिश बताया था।
उत्तर प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने राष्ट्रीय आयोग के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। राज्य आयोग के अध्यक्ष व समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता राम आसरे विश्वकर्मा ने कहा, ‘राष्ट्रीय आयोग को हमने साफ बता दिया है कि हम उसके पिछड़े वर्गांे के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण को तीन भागों में बांटने के प्रस्ताव से सहमत नहीं हैं। सच तो यह है कि यदि हम चाहें तो भी हम राष्ट्रीय आयोग की सिफारिश को नहीं मान सकते क्योंकि हमारे पास पिछड़े वर्ग में शामिल जातियों का जातिवार जनगणना का आंकड़ा ही नहीं है। न ही हमारे पास यह जानकारी है कि 1994 से मण्डल आयोग की सिफारिश के आधार पर 27 प्रतिशत आरक्षण के लाभार्थियों की संख्या कितनी है। हम राष्ट्रीय आयोग के सुझाव पर विचार कर सकते हैं बशर्ते हमें केंद्र सरकार द्वारा जातीय जनगणना का आंकड़ा उपलब्ध करा दिया जाए।’
उत्तर प्रदेश के पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के भूतपूर्व मंत्री अम्बिका चौधरी कहते हैं कि लगता है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण विरोधी बयान से बिहार विधानसभा चुनाव में नुकसान उठाने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी ने कोई सबक नहीं लिया है और उसका पिछड़ों के लिए आरक्षण समाप्त करने का अभियान जारी है।
उन्होंने कहा, ‘जाति आधारित जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक किए बगैर यह कहना आधारहीन है कि पिछड़े वर्गांे को आरक्षण का लाभ उत्तर प्रदेश में केवल यादव जाति तक सिमट गया है। यह सर्वज्ञात है कि मनमोहन सिंह की सरकार के दौर में लोकसभा में जाति आधारित जनगणना कराए जाने के लिए कितना संघर्ष किया गया था। स्थापित परम्परा और कानून के अनुसार जनगणना केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन जनगणना आयुक्त द्वारा कराई जाती है, लेकिन जाति आधारित जनगणना का काम केंद्र सरकार ने ग्राम्य विकास, नगर विकास आदि अनेक मंत्रालयों के बीच बांट दिया। लगता है कि जातिवार आंकड़ों को संकलित करने में ही एक सदी बीत जाएगी। पिछड़ोंं के आरक्षण को तीन भागों में बांटना भारतीय जनता पार्टी की मात्र साजिश है।’

फिर वही प्लानिंग
फरवरी 2017 में उत्तर प्रदेश विधान सभा का चुनाव होना है। पंद्रह वर्ष पूर्व इसी माह 2002 में भारतीय जनता पार्टी सत्ता से बाहर हुई थी। 2002 का चुनाव भाजपा ने राजनाथ सिंह के नेतृत्व में जातिगत राजनीति को नया नाम देते हुए सोशल इंजीनियरिंग के मुद्दे पर लड़ा था।
1990 के रामजन्मभूमि आन्दोलन और उसी साल अक्टूबर में अयोध्या में हिंसक कारसेवा से उत्पन्न जबरदस्त रामलहर और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के सहारे 1991 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहली बार बहुमत प्राप्त कर सरकार बनाने वाली भाजपा को 2002 के विधानसभा चुनाव में सौ से भी कम सीटें मिलीं। 2002 का विधानसभा चुनाव भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग के मुद्दे पर लड़ा था। 2012 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की सीटों की संख्या 50 के नीचे आ गई। 2017 का चुनाव निकट आ रहा है और 15 साल बाद भाजपा को भरोसा है कि सोशल इंजीनियरिंग के भरोसे उसकी नैया पार लगेगी।
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और उत्तर प्रदेश के प्रभारी ओम माथुर ने कहा कि पिछले कई विधानसभा चुनाव से भाजपा तीसरे और चौथे स्थान के लिए संघर्ष करती आई थी। लेकिन 2017 के चुनाव में आश्चर्यजनक परिणाम आएंगे। हम सोशल इंजीनियरिंग के मुद्दे पर चुनाव में उतरेंगे और जातिगत राजनीति के आधार पर उत्तर प्रदेश की राजनीति में प्रभावी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को परास्त करेंगे। केवल टिकट बंटवारे में ही नहीं, प्रदेश के डेढ़ लाख पोलिंग बूथ स्तर तक हम सामाजिक समीकरणों के आधार पर सांगठनिक ढांचा बना रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग में 79 जातियां शामिल हैं और अनुसूचित जाति में 66 जातियां शामिल हैं। सितम्बर 2001 में उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी की सरकार के समय गठित सामाजिक न्याय समिति ने पिछड़े वर्ग के 27 प्रतिशत आरक्षण को तीन भागों में बांटा था- पिछड़े, अतिपिछड़े और सर्वाधिक पिछड़े। स्वाभाविक था कि आरक्षण का सर्वाधिक लाभ प्राप्त करने वाला यादव वर्ग इसके खिलाफ था।
इसी प्रकार अनुसूचित जाति में शामिल 66 जातियों का दो वर्गों में विभाजन किया गया जिसमें सर्वाधिक लाभ पाने वाली चमार धूसिया के लिए 11 प्रतिशत व अन्य 65 जातियों के लिए 11 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की थी। मायावती और मुलायम सिंह दोनों नेताओं के लिए यह खतरे की घंटी थी, क्योंकि दोनों का मुख्य वोट बैंक यादव और चमार/जाटव है। दोनों दलों ने इस रिपोर्ट के आधार पर बने कानून का विरोध किया। आरक्षण के नए फार्मूले को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई जिसने इस पर रोक लगा दी। इसका असर यह हुआ कि आरक्षण का कानून समाप्त हो गया और प्रदेश में पिछड़ी और अनुसूचित जातियों को आरक्षण की सुविधा समाप्त हो गई। मई 2002 में भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से सरकार बनाकर मायावती ने पहला काम इस अधिनियम को समाप्त कर पुराने फार्मूले के आधार पर आरक्षण की सुविधा को बहाल करने का किया।
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य ने कहा कि यदि उनका दल 2017 में सत्ता में आता है तो 2001 में गठित सामाजिक न्याय समिति की संस्तुतियों को लागू किया जाएगा ताकि आरक्षण की सुविधा पिछड़े व दलित वर्ग की कुछ जातियों में न सिमटकर सभी जातियों तक इसका लाभ पहुंच सके।
भाजपा की रणनीति से आशंकित समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने अभी से सोशल इंजीनियरिंग को पिछड़ों, दलितों और आरक्षण के खिलाफ साजिश करार दिया है। समाजवादी पार्टी ने आरोप लगाया कि भाजपा सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर पिछड़े वर्ग को पिछड़ी और अति पिछड़ी जाति में बांटकर उनके हितों पर कुठाराघात करने की योजना बना रही है। प्रदेश की जनता अब बहुत जागरूक है और इस तरह की किसी भी साजिश को वह सफल नहीं होने देगी।
सेंटर फॉर आॅफ सोसाइटी एण्ड पॉलिटिक्स के निदेशक डॉ. ए.के. वर्मा का कहना है कि 2002 से अब तक प्रदेश की राजनीति में बहुत परिवर्तन आ चुका है। 2012 में समाजवादी पार्टी ने अपने बल पर सरकार जरूर बना ली थी लेकिन भारत के संसदीय इतिहास में पहली बार किसी पार्टी ने कुल मतदान का सबसे कम यानी 29.1 प्रतिशत वोट प्राप्त कर सरकार बनाई। घनघोर यादववादी राजनीति के चलते समाजवादी पार्टी को अतिपिछड़ी जातियों का समर्थन तो मिलना दूर की बात है यादवों के लगभग समकक्ष पिछड़ी जातियां लोध और कुर्मी भी दूर ही रहेंगे।
डॉ. वर्मा ने कहा कि भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग नीति का विरोध करना समाजवादी पार्टी के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि पिछड़े वर्ग में शामिल सभी जातियां अब अपने हितों के लिए बहुत जागरूक हो चुकी हैं। अतिपिछड़ी जातियों के महत्व को इसलिए भी नहीं नकारा जा सकता क्योंकि उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों की कुल आबादी में इनका हिस्सा लगभग 40 प्रतिशत है।
यही समस्या मायावती के सामने है क्योंकि केवल जाटव वोट के आधार पर वो दलित नेता नहीं बनी रह सकतीं और आरक्षण का विरोध करना उनके लिए भी आसान नहीं होगा। डॉ. वर्मा ने कहा कि अतिपिछड़े और अतिदलित के लिए अलग अलग कोटा निश्चित किए जाने के लिए यदि दोनों दलों ने विरोध किया तो इसका नुकसान झेलना पड़ सकता है।
समाजवादी पार्टी पिछड़ों के 27 प्रतिशत आरक्षण को एक से अधिक श्रेणी में विभाजित किए जाने के तो सख्त खिलाफ है लेकिन वह स्वयं 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति के कोटे में शामिल कराने के लिए पिछले दस साल से एड़ी चोटी का जोर लगाए है।
संविधान की व्यवस्था के अनुसार राज्य सरकार अनुसूचित जाति की आरक्षण सूची में किसी जाति को बिना केंद्र सरकार की सहमति के शामिल नहीं कर सकती। फिर भी 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने ‘उत्तर प्रदेश सार्वजनिक सेवाओं में (अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्ग) आरक्षण अधिनियम’ में संशोधन कर 17 पिछड़े वर्ग की जातियों को अनुसूचित जाति वर्ग की सूची में शामिल कर दिया। अगले दो वर्षों में 17 जातियों के लगभग 50 हजार लोगों को प्रदेश भर में अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र भी जारी कर दिए गए। 2007 में मायावती ने चौथी बार प्रदेश की सत्ता संभालने के बाद 2005 के संशोधन अधिनियम को समाप्त किया।
समाजवादी पार्टी के इन प्रयासों को यूपीए और एनडीए दोनों ही केंद्र सरकारें नकार चुकी हैं। पिछले दस साल में केंद्र सरकार 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल किए जाने के प्रस्ताव को तीन बार नकार चुकी है लेकिन समाजवादी पार्टी ने अपनी हठधर्मिता को अपना रखा है। समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सदस्य विशम्भर निषाद ने कहा कि पार्टी पंद्रह अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल करने के अभियान को तेज करेगी।
गौरतलब है कि फरवरी 2014 के इलाहाबाद के उच्च न्यायालय के आदेश पर दो अतिपिछड़ी जातियों कुम्हार और प्रजापति को अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल कर लिया गया है।
मई 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सारे आकलन और पूर्वानुमानों को ध्वस्त करते हुए और स्वयं के पूर्वानुमानों से भी कहीं ज्यादा प्रदेश की कुल 80 लोकसभा सीटों में से 73 सीटें जीतीं। इसमें दो सीटें भाजपा के सहयोगी ‘अपना दल’ की हैं। 1991 की रामलहर में भाजपा का वोट प्रतिशत 33 प्रतिशत से आगे नहीं गया था लेकिन 2014 में एक नया कीर्तिमान स्थापित हुआ और भारतीय जनता पार्टी को 43 प्रतिशत वोट मिले। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रदेश विधानसभा की 403 सीटों में 335 एसेम्बली सेग्मेन्ट में सबसे आगे रही थी। वहीं सत्ताधारी दल समाजवादी पार्टी केवल 37 विधान सभा सीटों पर ही बढ़त बना पाई। बहुजन समाज पार्टी केवल 9 स्थानों पर और कांग्रेस को 13 विधानसभा सीटों पर बढ़त मिली थी। उत्तर प्रदेश की एक लोकसभा सीट के अन्तर्गत औसतन 5 विधानसभा सीटें आती हैं।
2017 का विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए एक कठिन चुनौती है। मई 2014 के लोकसभा चुनाव के तीन माह बाद भाजपा के 14 विधायकों के लोकसभा सदस्य निर्वाचित होने के कारण हुए उपचुनाव में भाजपा केवल दो सीटें जीत सकी। बाकी 12 सीटें सत्ताधारी समाजवादी पार्टी ने झटक लीं।