अभिषेक रंजन सिंह, नई दिल्ली।

राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। यहां न तो दोस्ती स्थायी होती और न ही दुश्मनी। यूं तो भारतीय राजनीति में नैतिकता और आदर्शों की काफी दुहाई दी जाती है,लेकिन सच तो यह है कि सियासी फायदे के लिए राजनेता इससे भी समझौता करमे में कोई गुरेज नहीं। नैतिकता और आदर्शों की दुहाई देकर राजनीति में आए आम आदमी पार्टी के सर्वोच्च नेता एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मुहिम चलाई थी। लेकिन अब उन्होंने भ्रष्टाचार के कई मामलों में घिरे राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव के रूप में एक सियासी भागीदार चुन लिया है।

पिछले दिनों राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बेटे और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और अरविंद केजरीवाल के बीच दिल्ली में तीन बार मुलाकात हो चुकी है। माना जा रहा है कि बिहार में महागठबंधन टूटने के बाद आम आदमी पार्टी राजद के चुनावी गठबंधन कर सकती है। फिलहाल बिहार में राजद और कांग्रेस के बीच गठबंधन है और लालू प्रसाद चाहते हैं कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले महागठबंधन का आकार बढ़ाया जाए। बात अगर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की करें तो कहने को वह दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं लेकिन उनकी पार्टी का उतना विस्तार दिल्ली के बाहर नहीं हो रहा है जिसकी उन्हें उम्मीद थी। पिछले साल पंजाब विधानसभा चुनाव में बेशक उनकी पार्टी राज्य की दूसरी बड़ी पार्टी बनी। लेकिन चुनाव से पूर्व ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि शायद आम आदमी पार्टी पंजाब में करिश्मा दिखा सकती है।

अन्ना आंदोलन के जरिए चुनावी राजनीति में उतरे अरविंद केजरीवाल को उम्मीद थी कि जिस तरह दिल्ली में उन्हें ऐतिहासिक जीत मिली उसी तरह देश के बाकी राज्यों में भी उन्हें समर्थन मिलेगा। इस बाबत उन्होंने गोवा और गुजरात में भी विधानसभा चुनाव लड़ने का एलान किया था। लेकिन गोवा में आम आदमी पार्टी का खाता तक नहीं खुला। वहीं गुजरात में आम आदमी पार्टी एक तरह से रस्मी तौर पर चुनाव लड़ रही है। सूबे की 182 सीटों में से आम आदमी पार्टी महज पंद्रह-सोलह सीटों पर चुनाव लड़ रही है। जबकि गुजरात में उनके कई बड़े नेता पार्टी का दामन छोड़ चुके हैं। ऐसे में आम आदमी पार्टी गुजरात में एक-दो सीटें भी निकाल ले इसकी संभावना नहीं के बराबर है।

कुल मिलाकर अरविंद केजरीवाल बिहार में लालू प्रसाद के बहाने अपनी पार्टी को विस्तार देना चाहते हैं। काफी हद तक मुमकिन है कि साल 2019 के संसदीय चुनाव से पहले राजद,कांग्रेस और आम आदमी पार्टी महागठबंधन के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।