केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) धर्मेंद्र प्रधान जब गुवाहाटी में राज्य के बारह तेल क्षेत्रों की नीलामी की घोषणा कर रहे थे उन्हें पता नहीं था कि वे एक राजनीतिक विवाद को जन्म दे रहे हैं। असम में सोनोवाल सरकार ने बीते 25 जून को एक महीने का अपना कार्यकाल पूरा किया। इस मौके की पूर्व संध्या पर धर्मेंद्र प्रधान ने राज्य के 12 छोटे आॅयल फील्डों की नीलामी की घोषणा की। प्रधान की यह घोषणा अब सोनोवाल सरकार के गले की हड्डी बन गई है। इस मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकार का राज्य भर में विरोध शुरू हो गया है। सोनोवाल की जननी संस्था अखिल असम छात्र संघ (आसू) के तेवर इस मामले में तीखे दिख रहे हैं। जिस आसू ने आईएमडीटी कानून को रद्द कराने में अहम भूमिका निभाने के लिए सोनोवाल को जातीय नायक की संज्ञा दी थी, उसी ने दुलियाजान स्थित आॅयल इंडिया कार्यालय के सामने सोनोवाल के पुतले फूंके। बताते चलें कि सोनोवाल आसू के अध्यक्ष और बाद में उसके सलाहकार भी रह चुके हैं।

हर चुनाव में आसू कार्यकर्ता उनकी जीत के लिए विशेष रूप से तत्पर रहते हैं ताकि उनकी जीत सुनिश्चित हो सके मगर उनके सीएम बनने के महज एक महीने के बाद ही आसू की ओर से उनका पुतला फूंका जाना और उनके खिलाफ हाय-हाय का नारा लगाना कई सवाल खड़े करता है। उल्लेखनीय है कि इस नीलामी प्रक्रिया की मुखालफत सिर्फ आसू ही नहीं बल्कि कृषक नेता अखिल गोगोई के नेतृत्व वाली कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस), अखिल असम ताई आहोम छात्र संघ (अटासू) और अखिल असम मोरान छात्र संघ सहित अन्य स्थानीय और जातिवादी दल- संगठन भी कर रहे हैं। बताते चलें कि ये वही संगठन हैं जिन्होंने राज्य में सत्ता परिवर्तन में अहम भूमिका निभाई थी। धर्मेंद्र प्रधान की ओर से नीलामी की घोषणा के बाद कृषक नेता अखिल गोगोई अपने सैकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ गुवाहाटी स्थित होटल रेडिसन ब्लू पहुंच गए जहां प्रधान बैठक कर रहे थे। यहां की स्थिति बिगड़ती देख पुलिस ने अखिल गोगोई और उनके 15 सहयोगियों को हिरासत में लिया। इसका वहां मौजूद लोगों ने विरोध किया तो पुलिस ने जमकर लाठी भांजी जिसमें दर्जन भर लोग बुरी तरह घायल हो गए।

इस नीलामी का विरोध सिर्फ जातीय संगठन ही नहीं कर रहे बल्कि मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने भी इसके विरोध में स्वर तेज कर दिए हैं। असम प्रदेश कांग्रेस की ओर से आनन-फानन में बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन में पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने कहा कि हम इस नीलामी का विरोध करते हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस चाहती है कि इन छोटे आॅयल फील्डों के उत्खनन और उत्पादन की जिम्मेवारी राज्य सरकार के अधीन कार्यरत असम हाइड्रो कार्बन एंड एनर्जी कंपनी लिमिटेड को दी जाए। उल्लेखनीय है कि इस कंपनी का गठन तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने 2006 में किया था। उसी समय से असम सरकार मांग करती आ रही है कि इन 12 छोटे आॅयल फील्डों के उत्खनन और उत्पादन की जिम्मेवारी राज्य सरकार के अधीन कार्यरत कंपनी को दी जाए मगर तत्कालीन मनमोहन सरकार और बाद में सत्ता में आई मोदी सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया।

ये ऐसे आॅयल फील्ड हैं, जिनका आॅयल इंडिया और ओएनसीजी उत्खनन और उत्पादन करना नहीं चाहती। उनका मानना है कि यह उनके लिए लाभदायक साबित नहीं हो सकता। आॅयल इंडिया और ओएनजीसी के इनकार के बाद वर्ष 2006 में गोगोई ने असम हाइड्रो कार्बन एंड एनर्जी कंपनी लिमिटेड को इसकी जिम्मेवारी सौंपने की मांग की थी। पेट्रोलियम मंत्री का कहना है कि ‘इनका उत्खनन और उत्पादन नहीं होने की स्थिति में करीब 17 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति यूं ही पड़ी है। यदि इस कार्य को आगे बढ़ाया जाता है तो इसका प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लाभ असम सरकार और राज्यवासियों को मिलेगा। ऐसे में बेरोजगारी दूर होगी और राज्य सरकार के राजस्व में बढ़ोतरी होगी। उनका कहना है कि आकार में छोटा होने के कारण आॅयल इंडिया और ओएनजीसी आदि कंपनियां इन फील्डों में उत्पादन में रुचि नहीं दिखा रही हैं। पिछले 25 वर्षों से ये फील्ड बिना उत्पादन के पड़े हुए हैं। ऐसे में 15 जुलाई से आॅयल फील्डों की नीलामी प्रक्रिया शुरू होगी और 31 अक्टूबर तक चलेगी। तेल उत्खनन का अधिकार हासिल करने वाली कंपनियों को जनवरी 2017 से कामकाज शुरू करना होगा। इन कंपनियों को असम के ढांचागत विकास और अन्य मदों में चार हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने होंगे। संबंधित आॅयल फील्डों की नीलामी के चलते असम में खनिज तेल का उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ रोजगार के भी अवसर प्राप्त होंगे।’

मगर मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस और जातिवादी संगठन प्रधान के तर्क से सहमत नहीं हैं। कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) प्रमुख अखिल गोगोई का कहना है कि मोदी सरकार असम की संपति का मालिक पूंजीपतियों को बनाना चाहती है मगर हम ऐसा होने नहीं देंगे। इसका अंतिम दम तक विरोध करते रहेंगे। आसू अध्यक्ष दीपांक कुमार नाथ और महासचिव लुरिन ज्योति गोगोई ने कहा कि केंद्र को राज्य के आॅयल फील्डों के उत्खनन और उत्पादन में आॅयल इंडिया और ओएनजीसी जैसी कंपनियों को उन्नत तकनीकी के जरिये आगे आना चाहिए था। इसके विपरीत आॅयलों फील्डों की नीलामी के जरिये केंद्र ने असम विरोध का हथकंडा अपनाया जिसे हम कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे। आसू के संगठन सचिव अनिल गोगोई, डिब्रूगढ़ जिला समिति के अध्यक्ष मधु कुमार गोगोई, महासचिव शरद कोंवर, उपाध्यक्ष महेंद्र दत्त व शिक्षा सचिव यदुमनि दत्त का कहना है कि केंद्र के इस फैसले को हम कतई लागू नहीं होने देंगे। असम के आॅयल फील्डों पर असमवासियों का ही नियंत्रण रहेगा। आसू नेताओं ने इस सिलसिले में राज्य के 14 सांसदों और दुलियाजान के विधायक से समुचित पहल की मांग की।

मुख्यमंत्री सोनोवाल पर हमला बोलते हुए आसू नेताओं ने कहा कि आॅयल फील्ड की नीलामी की घोषणा के समय पेट्रोलियम मंत्री के पास उनका बैठे रहना शर्मनाक है। इस विरोध के बीच सोनोवाल सरकार में साझीदार असम गण परिषद (अगप) और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) का कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। जानकार बताते हैं कि आगामी दिनों में सोनोवाल सरकार कई स्थानीय मुद्दों जैसे बड़े नदी बांध और हिंदू बांग्लादेशियों को नागरिकता देने के मुद्दे पर इन जातीय संगठनों के निशाने पर आ सकती है। ऐसे में इन समस्याओं से निपटने के लिए मुख्यमंत्री सोनोवाल और उनके प्रमुख सहयोगी डॉ. हिमंत विश्वशर्मा क्या रुख अख्तियार करते हैं वह देखने लायक होगा। दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई नई सरकार को जिस तरह से विभिन्न मुद्दों पर घेर रहे हैं वह भी राज्य सरकार के लिए कम चिंता का विषय नहीं है। हिमंत विश्वशर्मा एक सार्वजनिक बयान में गोगोई से मांग कर चुके हैं कि वर्तमान सरकार को कम से कम छह महीने का समय दें उसके बाद गुण-दोष को देंखे। 