पुलिस वालों पर एक तरफ प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी कायम रखने का दबाव है तो दूसरी ओर अवैध शराब पकड़े जाने पर निलंबन का डर। इससे सरकार और पुलिस में टकराव की स्थिति है। पुलिस एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष मृत्युंजय कुमार से ओपिनियन पोस्ट ने इस बारे में बातचीत की:

शराबबंदी कानून लागू होने से पहले प्रदेश के सभी थानाध्यक्षों ने लिखित में दिया था कि उनके थाना क्षेत्र में अवैध शराब का निर्माण या उसकी बिक्री नहीं हो रही है। अब जब उनके क्षेत्र में मामलों का पता चल रहा है और इस पर उनका निलंबन हो रहा है तो हंगामा क्यों?हम हंगामा नहीं कर रहे हैं। हमें अपनी सही बात कहने का पूरा हक है। यह सही बात है कि कानून लागू होने से पहले सभी थानाध्यक्षों ने लिखित में माना था कि उनके थाना क्षेत्र में वर्तमान समय में शराब का अवैध निर्माण और बिक्रीनहीं हो रही है। कानून लागू होने के बाद जिन थानाध्यक्षों को निलंबित किया गया है उनके मामलों में वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा है कि चूंकि थानाध्यक्षों ने लिखित में माना है कि उनके क्षेत्र में शराब का अवैध कारोबार नहीं है, बावजूद इसके उनके क्षेत्र में शराब का अवैध कारोबार हुआ, इसलिए वे निलंबन के हकदार हैं। सच्चाई यह है कि थानाध्यक्षों ने लिखित में जो दिया था उसमें तत्कालीन समय का जिक्र करते हुए शराब का अवैध कारोबार नहीं होने की बात कही थी।

तो आप पुलिसकर्मियों के निलंबन को सही नहीं मानते हैं?
हम शराबबंदी कानून का स्वागत करते हैं। मगर इस कानून में उलझना नहीं चाहते। पुलिस हर संभव शराबबंदी को सफल बनाने का प्रयास कर रही है। लेकिन इस प्रयास में ही थानाध्यक्षों को निलंबित किया जा रहा है। उनके क्षेत्र में अगर अवैध कारोबार होता है तो यह थाने की विफलता और अगर पकड़ी जाती है तो थानाध्यक्ष का निलंबन, यह ठीक नही है। एसोसिएशन ने डीजीपी के सामने अपनी बात रखी है। डीजीपी ने कहा है कि जो पुलिसकर्मी खुद को दोषी नहीं मानते वे आवेदन करें। दोषी नहीं पाए जाने पर उनका निलंबन वापस लेने की बात कही गई है। मगर एसोसिएशन मानती है कि थानाध्यक्षों में डर का माहौल है। कोई भी पुलिस वाला थानों की जिम्मेवारी लेने को राजी नहीं है।

शराबबंदी रोकने में सफल रहने वाले पुलिसकर्मियों को पुरस्कृत भी किया जा रहा है। क्या आप इससे संतुष्ट नहीं हैं?
जवाबदेही थानेदार की और पुरस्कृत हो रहे हैं बड़े अधिकारी। अब तक पांच लोगों को अवैध शराब के निर्माण व बिक्रीरोकने के लिए पुरस्कार दिया गया है। पुरस्कार पाने वाले एसपी हैं। गोपालगंज कांड के बाद नगर थाना के सभी 25 पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया। एसोसिएशन का मानना है कि अगर किसी थाना क्षेत्र में शराब का अवैध कारोबार हो रहा है तो इसके लिए बड़े अधिकारी भी जिम्मेवार हैं। यह उनकी भी विफलता है। अगर एसपी, डीएसपी भी दोषी हैं तो उन पर भी कार्रवाई हो।

कुछ पुलिस वालों का मानना है कि अवैध शराब की रोकथाम के लिए आबकारी विभाग को जिम्मेवारी लेनी चाहिए?
प्रदेश की पुलिस शराब के हर तरह के अवैध कारोबार को रोकने के लिए मुस्तैद है। मगर हम भी यह मानते हैं कि आबकारी विभाग के पास वो तमाम संसाधान हैं जिससे वे बिहार को ड्राई स्टेट बना सकते हैं। पुलिस के पास और भी बहुत सारे काम हैं। थानों में संसाधानों की भी कमी है।

थानों में संसाधनों की क्या कमी है?
प्रदेश का हर थाना किसी न किसी संसाधन के अभाव में ही चल रहा है। कहीं पर्याप्त पुलिस बल नहीं है तो कहीं गाड़ियों का अभाव है। अगर कहीं पर्याप्त संख्या में गाड़ियां हैं भी तो पर्याप्त तेल नहीं मिलता। ऐसे और भी उदाहरण हैं। एक थाना का क्षेत्रफल औसतन तीस किलोमीटर होता है। संसाधानों की कमी को पूरा किए बगैर पुलिस पर दबाव बनाना ठीक नहीं है।