गुलाम चिश्ती

बीते 5 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने गौहाटी हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि एनआरसी में नाम शामिल कराने के लिए पंचायत के प्रमाण-पत्र समर्थित दस्तावेज के रूप में वैध होंगे। इसके साथ ही लाखों लोगों के नाम राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) में शामिल होना आसान हो गया। बता दें कि एनआरसी में नाम शामिल कराने के लिए लगभग 29 लाख लोगों ने पंचायत प्रमाण-पत्र जमा कराए थे। गौहाटी हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ कई याचिकाओं के जरिये सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने मूल वासिंदों (ओआई) के मसलों पर भी कहा कि यह अप्रासंगिक है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रंजन गोगोई और आर फली नरीमन की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया। मनोवारा बेबा नाम की एक महिला पर गौहाटी उच्च न्यायालय का जो फैसला आया था, उससे 30 लाख से अधिक महिलाओं की नागरिकता खतरे में पड़ गई थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लोगों ने राहत की सांस ली है। पार्टी और संगठनों ने भी इसका स्वागत किया है। अखिल असम छात्र संघ (आसू) ने स्वागत करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रही इस प्रक्रिया से अवैध बांग्लादेशियों से मुक्त एक शुद्ध एनआरसी तैयार होगी। आसू के अध्यक्ष दीपांक कुमार नाथ और महासचिव लुरीन ज्योति गोगोई ने कहा कि पंचायत प्रमाण-पत्रों को पुनरीक्षण करने का अदालत ने निर्देश दिया है। इसके बाद ही यह मान्य होगा। वहीं मूल वासिंदे के मसले पर आसू ने कहा कि ये उनके और 28 जनगोष्ठी संगठनों के अनुसार जरूरी कदम था। इस पर गलतफहमी पैदा करने की जरूरत नहीं है। दूसरी ओर एआईयूडीएफ अध्यक्ष बदरुद्दीन अजमल ने कहा कि पार्टी ने मनोवरा बेबा और रुपजान बेगम का मामला सुप्रीम कोर्ट में चलाया और इसके नतीजे आए। इसके लिए हम अदालत की खंडपीठ को तहेदिल से धन्यवाद देते हैं। अल्पसंख्यक संगठन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अपने-अपने दावे कर रहे हैं। मनोवरा बेबा और रुपजान बेगम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में मामला चलाने की हिम्मत हममें नहीं थी। अजमल ने बुलाकर मदद दी। तभी यह संभव हो पाया। वहीं डॉ. हीरेन गोहार्इं समेत कई बुद्धिजीवियों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से भाजपा-आरएसएस का षड्यंत्र विफल हो गया है। बुद्धिजीवियों ने सुप्रीम कोर्ट की राय का स्वागत करते हुए कहा कि जिन मुद्दों पर हम आवाज उठाते आए थे, उन्हें सर्वोच्च न्यायालय ने सही ठहरा दिया है। वहीं दूसरी ओर, असम प्रदेश कांग्रेस समिति (एपीसीसी) ने राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) अद्यतन को लेकर सुप्रीम कोर्ट के उस ऐतिहासिक फैसले का स्वागत किया है, जिसमें कहा गया लिंकेज डाक्यूमेंट्स के रूप में पंचायत सचिव और राजस्व अधिकारी की ओर से जारी प्रमाण पत्र मान्य होंगे, जबकि गौहाटी हाईकोर्ट ने पूर्व में उन दस्तावेजों को मान्यता देने से इंकार कर दिया था। हाई कोर्ट के फैसले आने के बाद लाखों वैवाहिक महिलाओं के सामने एनआरसी में जगह न पाने की समस्या आ खड़ी हुई थी। इस संबंध में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रिपुन बोरा का कहना है कि गौहाटी हाईकोर्ट के फैसले के कारण लगभग 27-30 लाख विवाहित महिलाओं के नाम एनआरसी में शामिल नहीं हो पा रहे थे, परंतु सुप्रीम कोर्ट के उक्त फैसले के बाद उन महिलाओं के नाम अब एनआरसी में शामिल हो जाएंगे। प्रदेश कांग्रेस प्रमुख ने इस फैसले को ऐतिहासिक करार दिया। साथ ही उन्होंने मांग की कि 31 दिसंबर को प्रकाशित होने वाले प्रारूप एनआरसी में उन सबके नाम शामिल किए जाएं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने इसके लिए लड़ाई ही नहीं लड़ी, बल्कि उनके नाम शामिल करवाने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से 10 लाख ऐसी महिलाओं से व्यक्तिगत तौर पर भारत के मुख्य न्यायाधीश के पास अलग-अलग पत्र भिजवाया गया, जिसमें भावुक- सा सवाल किया गया था कि क्या कोई लड़की अपने पिता का घर छोड़कर पति के घर में आ जाती है तो क्या उसके नाम एनआरसी में शामिल होने के योग्य नहीं रह जाते। उन्होंने कहा कि ऐसे पत्र भिजवाने में प्रदेश कांग्रेस की अहम भूमिका थी। साथ ही उन्होंने उन दल-संगठनों का भी आभार व्यक्त किया, जिन्होंने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। बोरा ने कहा कि एनआरसी अद्यतन का काम कांग्रेस के समय शुरू हुआ था। पार्टी का मानना है कि इसका काम शीघ्र और शुद्ध रूप से किया जाए ताकि किसी भी विदेशी का नाम इसमें शामिल होने से न छूट पाए, परंतु कई दल संगठनों की ओर से अप्रत्यक्ष रूप से इसे बाधित करने की कोशिश की गई। कारण कि वे नहीं चाहते कि इस समस्या समाधान हो। ऐसा होने पर उनकी राजनीतिक दुकानें बंद हो जाएंगी। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री सोनोवाल बार-बार चेतावनी दे रहे हैं कि यदि किसी ने एनआरसी के कार्य में बाधा डालने की कोशिश की तो उसके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि शुरू से लेकर अब तक इस प्रक्रिया को बाधित करने में एनआरसी,असम के समन्वय प्रतीक हाजेला की अहम भूमिका रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि हाजेला इसको लेकर शुरू से अब तक गलतफहमी फैलाते रहे हैं, जिसके कारण यह कार्य एक साल पीछे हो गया। हाजेला मूल निवासी और गैर मूल निवासी, पंचायत सार्टिफिकेट, अधिकांश संख्या में नकली दस्तावेज मिलने और समय पर कार्य न होने के नाम पर इस प्रक्रिया को बाधित करते रहे हैं। ऐसे में इस पूरी प्रक्रिया में उनकी भूमिका संदेहास्पद रही है तो क्या मुख्यमंत्री हाजेला के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। असम विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के उपनेता रकिबुल हुसैन ने कहा कि अखिल भारतीय संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (एआईयूडीएफ) शुरू से इस प्रक्रिया को बाधित करता आ रहा है, जब राज्य सरकार की ओर से बरपेटा और छयगांव में पायल्ट प्रोजेक्ट शुरू किया गया था, उस समय एआईयूडीएफ ने इसका विरोध कर इस प्रक्रिया को बाधित करने का प्रयास किया था। सदन में पार्टी के मुख्य सचेतक वाजेद अली चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना की और कहा कि एनआरसी केंद्र पर बड़ी संख्या में सुरक्षा बल तैनात करने की जरूरत नहीं है। कारण कि कोर्ट का फैसला आने के बाद इस प्रक्रिया में किसी भी तरह की बाधा नहीं आएगी। दूसरी ओर नेता प्रतिपक्ष देवब्रत सैकिया ने कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) की ओर से जारी एक बयान में कोर्ट के फैसले की जमकर सराहना की। उन्होंने कहा कि कोर्ट के इस फैसले से केंद्र और राज्य सरकार की कलई खुल गई है, जो पंचायत अधिकारियों की ओर से जारी सार्टिफिकेट को लिंकेज दस्तावेज के रूप में मान्यता देने के पक्षधर नहीं थे। उन्होंने कहा कि कोर्ट के फैसले से राज्य की उन लाखों महिलाओं को न्याय मिल गया, जिनका नाम अकारण एनआरसी में शामिल होने से रुक रहा था। उन्होंने राज्यवासियों के बीच एनआरसी में मूल और अमूल जैसी श्रेणी न होने के कोर्ट के फैसले की भी सराहना की। कारण कि सभी भारतीय नागरिक बराबर हैं। साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने भी कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है। इस मुद्दे पर भले ही राज्य की सत्ताधारी पार्टी कुछ नहीं बोल रही है, परंतु वह कोर्ट के फैसले से खुश नहीं नजर आ रही है।