अजय विद्युत

ज़माने के बड़े बड़े सूरमा जब वक़्त गाढ़ा पड़ता है तो औरतों के पल्लू की आड़ लेते देखें गए हैं। यूपी की सियासत में यह मर्दवादी राजनीति की वर्चस्व ना छोड़ने की ज़िद के तहत है। उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकायों के चुनाव होने हैं। कब होने हैं यह तय नहीं है। न पार्टियों ने उम्मीदवार घोषित किए हैं। लेकिन लखनऊ में पोस्टरबाजी से माहौल ऐसा बनाया जा रहा है जैसे कल ही चुनाव हो। और असली ड्रामा तो उन सीटों पर है जो पुरुषों की थीं लेकिन अब महिलाओं के खाते में चली गर्इं। मर्द अपनी सल्तनत यूं ही कैसे छोड़ दें।
कभी बड़े बुजुर्ग कहा करते थे उसकी पत्नी तो गाय जैसी है। यानी भोली भाली, पति के पीछे चलने वाली और पति की हर बात मानने वाली। समाज बदला, महिलाओं ने पुरुषों को कहीं पीछे छोड़ दिया। लेकिन पॉलिटिक्स में आज भी वैसा ही है। ‘राबड़ी राज’ पत्नी के नाम पर पति के राज का सबसे हिट उदाहरण है।

रतन मणि लाल
रतन मणि लाल

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार रतन मणि लाल बताते हैं, ‘कुछ साल पहले कांस्टीट्यूशन एमेंडमेंट किया गया था जिसके जरिए स्थानीय निकाय या लोकल बॉडीज में कुछ सीटें तो महिलाओं की आरक्षित हैं और कुछ सीटें पुरुषों की महिलाओं में बदल जाती हैं या इसका उल्टा भी होता है। यूपी में यह पूरी तरह लागू है।’ वह बताते हैं, ‘पांच साल पहले तक देखें तो चुनावों में सीट महिला खाते में चले जाने पर प्रधान या पार्षद उस सीट पर अपनी पत्नी को लड़ा देते थे। प्रधान पति शब्द भी खूब प्रचलित है जिसका व्यावहारिक अर्थ है कि उसकी पत्नी प्रधान है, लेकिन काम वही देखता-करता है। तो ये सब पहले से रहा है। आसान तरीका निकाल लिया था कि सीट अपने ही परिवार में रखें । हम नहीं खड़े हो सकते तो पत्नी को खड़ा कर देंगे। यह कॉमन प्रैक्टिस रही है।’
लाल ने बताया कि ‘यूपी में लोकल बॉडीज चुनाव पहले जुलाई मेंfoto 2 होने की संभावना थी। अब कुछ विलम्ब होगा ऐसा लग रहा है। किसी पार्टी ने चुनाव के लिए अपनी नीति तय नहीं की है। यानी पार्टी के नाम पर चुनाव लड़ा जाएगा या नहीं अभी तय नहीं है। यह पोस्टरबाजी इसलिए है कि अगर ऐसा हुआ तो वे अपना दावा मजबूत कर रहे हैं। हालांकि सपा व अन्य तमाम पार्टियों में ऐसा है लेकिन खासकर देखें तो भाजपा सत्ता में है तो ज्यादातर लोग उससे जुड़ना चाह रहे हैं। उसके चुनाव निशान और नेताओं के फोटो पोस्टरों पर लगाए गए हैं। यह अलग बात है कि पार्टी इसे पसंद करेगी या नहीं। यह खुले तौर पर चापलूसी का तरीका है। हालांकि कुछ लोगों को यह पीएम सीएम के प्रति अपनी वफादारी दिखाने का तरीका लगता है। इससे अभी माहौल बना दिया अपने पक्ष में। काम आया तो ठीक वरना दूसरा फार्मूला।’
जिस यूपी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ महिलाओं के अधिकारों और विकास की नई इबारत लिखने में जुटे हैं वहीं लगभग सभी दलों के वार्ड स्तर के राजनीतिक अपनी मानसिकता बदलने को तैयार नहीं हैं। तमाम पोस्टरों पर पत्नी को उम्मीदवार बताया है लेकिन उससे प्रमुखता से उसके वर्तमान पार्षद पति की तस्वीर, नाम और मोबाइल नंबर है। लाल ने कहा कि इस तरह वे दिखाना चाह रहे हैं कि हम जीत सकते हैं तो हमारी पत्नी भी जीत जाएगी।
कुछ पोस्टरों में तो उम्मीदवार की फोटो foto 3तक नहीं है। उसके पूर्व पार्षद पिता और पार्षद बड़े भाई की फोटो है। और लिखा है- पार्षद की छोटी बहन को जिताएं। मुलायम अखिलेश के फोटो और साइकिल निशान भी पास्टरों पर खूब हैं। रतन मणि लाल ने कहा, ‘मुझे भी बड़ा दिलचस्प लगा कि कंडीडेट का सिर्फ नाम और फोटो में बाप भाई। पर ये भी पार्टी में अपनी जगह पक्की करने का एक तरीका है। यूपी में स्थानीय निकाय चुनाव का माहौल इसी तरह बनाया जाता है। मोहल्ला स्तर पर यही सब होता है।’
अपना अनुभव लाल ने कुछ इस तरह सुनाया, ‘ हमारी देखी बात है। बाहर पत्नी की नेमप्लेट लगी होती थी। कमरे में जाएं तो सारा काम पति देखते थे। जब कार्रवाई के बाद कागज पर साइन कराने की बात आती तो कहते थे कि आप बाद में आएं। चाहे पत्नीIMG_20170607_130507-1 पढ़ी लिखी हो या न हो। वे मानकर चलते हैं कि पूरा कामकाज वही देखेंगे। अब तो इसमें बहन आदि भी जोड़ दी गई हैं।’
अब पहली तस्वीर को देखें
अब सबसे ऊपर शीर्षक से साथ दी गई तस्वीर को गौर से देखिए। लखनऊ में बड़े मंगल की बड़ी मान्यता है। पांच मंगलवार तमाम हनुमान मंदिरों में भक्तों की ऐसी भीड़ लगती है कि पूछिए मत। पूरे शहर में हजारों की संख्या में शर्बत के प्याऊ और भंडारे। पहली नजर में लगता है कि यह महिला लोगों को बड़े मंगल की शुभकामनाएं दे रही है। गौर से देखें तो यह महिला नगर निगम चुनाव में एक वार्ड से पार्षद पद की उम्मीदवार होने की आकांक्षा रखती हैं। सीता मां को भूधराकार स्वरूप दिखाने वाले बजरंगबली पोस्टर में लोगो साइज में हैं और महिला उनसे कहीं विराट आकार में। साथ में भाजपा का निशान कमल भी है छोटा सा।
रतन मणि लाल कहते हैं, ‘किसी भक्त को बुरा भी लग सकता है कि आप श्रद्धा से नहीं बल्कि वोट पाने के लिए बजरंगबली को इस्तेमाल कर रहे हैं। एक छोटी सी फोटो में उनका लोगो के तौर पर इस्तेमाल किया है। और अपना स्टेचर बजरंगबली से भी बड़ा दिखा रहे हैं। कोई कसर रह जाए तो साथ में कमल भी है। दरअसल पॉलिटीशियन बहुत आशावादी होता है। टिकट मिलने तक सारे गुनाह माफ। बाद में अगर किसी ने आपत्ति की और बात बढ़ी तो माफी भी मांग लेंगे। कहो तो किसी के पैरों पर भी गिर पड़े कि गलती हो गई।’