ARARIYA-BIHAR

ARARIYA-BIHARअररिया लोकसभा क्षेत्र को एमवाई समीकरण की प्रयोगशाला माना जाता है. वाई (यादव) अगर एम (मुस्लिम) के साथ गए, तो लालटेन जलेगी और अगर हिंदुत्व की बयार के साथ रहे, तो कमल खिलेगा. वोटों का अंकगणित उतना ही रोचक है, जितनी अररिया के नामकरण की कहानी. नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र अररिया के नामकरण की कहानी बड़ी रोचक है. ब्रिटिश हुकूमत के दौरान उत्तर- पूर्वी सीमांचल में अररिया की विशाल परती जमीन पर अंग्रेज जनरल फॉब्र्स ने अपना डेरा डाला और कोठी बनाकर इलाके को ‘रिजर्व एरिया’ घोषित कर दिया. संक्षेप में लोग उसे आर एरिया कहने लगे, जो बाद में अररिया हो गया. कोसी नदी के रास्ता बदलने से परती बनी जमीन पर बसा अररिया साल 1967 में संसदीय क्षेत्र घोषित हुआ और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया. 1967 से लेकर 1984 तक हुए पांच संसदीय चुनावों में 1977 को छोड़ कर कांग्रेस ने किसी भी दल की दाल नहीं गलने दी. लेकिन, 1989 के आम चुनाव में कांग्रेस का बोरिया-बिस्तर ऐसा बंधा कि दोबारा उसकी वापसी नहीं हो सकी. 1991 के बाद तो कांग्रेसी उम्मीदवारों को कई बार जमानत तक बचाने के लाले पड़ गए.

2009 में नए परिसीमन के बाद अररिया संसदीय क्षेत्र का गणित पूरी तरह बदल गया. अररिया सामान्य सीट घोषित हुई, तो 40 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका अहम हो गई. 60 प्रतिशत हिंदू मतदाता गोलबंद हुए, तो भाजपा उम्मीदवार प्रदीप सिंह ने 2009 के चुनाव में बाजी मार ली, लेकिन 2014 में भाजपा का गणित गड़बड़ा गया. देश भर में मोदी लहर के बावजूद अररिया में सीमांचल के चर्चित मुस्लिम नेता तस्लीमुद्दीन ने बतौर राजद उम्मीदवार जीत दर्ज की. भाजपा उम्मीदवार प्रदीप सिंह को दो लाख 61 हजार 474 और तस्लीमुद्दीन को चार लाख सात हजार 998 मत मिले. भाजपा और राजद को मिले मतों का अंतर बहुत बड़ा था, लेकिन उसमें एक पेंच यह था कि नीतीश कुमार की पार्टी जदयू भाजपा से अलग थी. जदयू उम्मीदवार विजय कुमार मंडल को भी दो लाख 21 हजार 769 मत मिले थे. अगर 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और जदयू उम्मीदवारों को मिले मत आपस में जोड़ दिए जाएं, तो आंकड़ा चार लाख 83 हजार 243 पर ठहरता है. यानी राजद उम्मीदवार तस्लीमुद्दीन से ७५ हजार अधिक मत भाजपा और जदयू उम्मीदवारों ने मिलकर झटके थे.

राजद के सांसद तस्लीमुद्दीन के निधन से रिक्त हुई अररिया सीट के लिए 2018 में उपचुनाव हुआ, तब तक नीतीश कुमार भाजपा के साथ आ चुके थे. उपचुनाव में भाजपा-जदयू गठबंधन के उम्मीदवार बने प्रदीप सिंह. वहीं राजद ने तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम को अपना उम्मीदवार बनाया. सरफराज जोकीहाट से जदयू के विधायक थे. उन्होंने लोकसभा चुनाव लडऩे के लिए जदयू से इस्तीफा दे दिया. इस उपचुनाव में माहौल भाजपा-जदयू गठबंधन उम्मीदवार प्रदीप सिंह के पक्ष में लग रहा था, लेकिन नतीजा राजद के पक्ष में गया. प्रदीप को कुल चार लाख 47 हजार 346 मत मिले और राजद उम्मीदवार सरफराज ने पांच लाख नौ हजार 334 मत हासिल कर 61 हजार 988 मतों के अंतर से अपनी जीत दर्ज कराई. आंकड़े बताते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव की तुलना में 2018 के उपचुनाव में भाजपा-जदयू गठबंधन उम्मीदवार प्रदीप सिंह को 35 हजार 867 मत कम मिले, वहीं राजद के पक्ष में 1,01,356 मत बढ़ गए. उपचुनाव के आंकड़े से साफ था कि भाजपा-जदयू खेमे के वोट भी राजद में चले गए. अररिया संसदीय क्षेत्र में 40 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं, जिन्होंने गोलबंद होकर राजद उम्मीदवार सरफराज आलम का साथ दिया. वहीं 60 प्रतिशत हिंदू मतदाताओं में एक बड़ा हिस्सा यादवों का है. आंकड़े बताते हैं कि बड़ी संख्या में यादव मतदाताओं ने राजद की लालटेन का बटन दबाया. यानी 2018 के उपचुनाव में एमवाई समीकरण कामयाब रहा. लेकिन, 2019 के लोकसभा चुनाव में अगर भाजपा हिंदुत्व के नाम पर मतदाताओं को गोलबंद करने में सफल रही, तो वह राजद से अररिया सीट छीन सकती है.