नई दिल्ली। भारतीय क्रिकेट टीम का मुख्य कोच नहीं बनाए जाने से रवि शास्त्री ने सोशल मीडिया और सार्वजनिक तौर पर जो नाराजगी जताई थी उसकी रार थमने का नाम नहीं ले रही। इस रार में अब कई दिग्गज पूर्व क्रिकेटर भी कूद पड़े हैं। इससे जेंटलमैनों के इस खेल और इसकी राजनीति पर फिर से सवाल उठने लगे हैं। हद तो तब हो गई जब क्रिकेटर इस विवाद में अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने लगे। इस विवाद में मुख्य कोच चुने गए अनिल कुंबले, इस पद के दूसरे दावेदार रवि शास्त्री और तीन सदस्यीय चयन समिति के सदस्य सौरव गांगुली के अलावा पूर्व क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी, संजय मांजरेकर और गौतम गंभीर भी शामिल हो गए हैं। एक पक्ष शास्त्री का समर्थन कर रहा है तो दूसरा शास्त्री की नाराजगी को उनकी खीज या हताशा साबित करने पर तुला है।  

कैसे शुरू हुआ विवाद

यह विवाद तब शुरू हुआ जब रवि शास्त्री ने मुख्य कोच चुने जाने के लिए आयोजित इंटरव्यू से सौरव गांगुली की अनुपस्थिति पर सवाल उठाया। उन्होंने इशारों-इशारों में यह भी कह डाला कि मुख्य कोच नहीं बनाए जाने की वजह सौरव गांगुली ही हैं। इसके बाद तो जैसे जेंटलमैनों में एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ लग गई। पूर्व कप्तान बिशन सिंह बेदी ने इस मामले में रवि शास्त्री का पक्ष लेते हुए सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ट्विटर पर ट्‍वीट कर गांगुली पर निशाना साधा। उन्होंने लिखा- ‘कोच पद नहीं मिलने की बात छोड़ दो। रवि शास्त्री के पास नाराज होने की वाजिब वजह है क्योंकि सलाहकार समिति का एक सदस्य जिम्मेदारी से भागा है। वह बोर्ड से ऊपर तो नहीं हैं।’ बेदी का इशारा गांगुली की तरफ था जो शास्त्री के इंटरव्यू के दौरान मौजूद नहीं थे। वहीं पूर्व क्रिकेटर संजय मांजरेकर ने ट्‍वीट कर कहा कि शास्त्री को ठुकराए जाने का अनुभव नहीं है।

शास्त्री की हताशा

gautam gambhirपूर्व सलामी बल्लेबाज गौतम गंभीर ने भी एक टीवी न्यूज चैनल पर इस मसले पर बहस में हिस्सा लेते हुए शास्त्री के इस बयान पर आपत्ति जताई कि सौरव उनका अपमान कर रहे हैं। उन्होंने कहा – ‘शास्त्री का कमेंट उनकी हताशा जताता है। कुंबले सर्वश्रेष्ठ विकल्प है, वो कड़ी मेहनत करने वाले व्यक्ति हैं।’ उन्होंने कहा कि रवि शास्त्री जिस तरीके से बयानबाजी कर रहे हैं वह साफ दर्शाता है कि वे कितने ज्यादा हताश हैं। शास्त्री इस बात को पचा ही नहीं पा रहे हैं कि उन्हें कोच का पद नहीं मिला।  मुझे लगता है कि भारतीय टीम के कोच के लिए सबसे प्रोफेशनल और सबसे उपयुक्त इंसान अनिल कुंबले ही थे। बीसीसीआई ने जिस तरीके से कोच को चुनने की प्रक्रिया अपनाई थी उसमें कुंबले एकदम मुफीद उम्मीदवार हैं। उन्होंने कहा कि शास्त्री हमेशा इस बात का दम भरते हैं कि उनके कार्यकाल में भारतीय टीम ने जबरदस्त सफलता हासिल की। मगर वे कभी दक्षिण अफ्रीका से घर पर हारी हुई सीरीज या बांग्लादेश से पराजय के बारे में बात नहीं करते। उनके कार्यकाल में भारत ने दो विश्व कप खेले जिसमें से एक तो भारत की सरजमीं पर ही खेला गया था। इसमें विश्व कप में भारत सिर्फ सेमीफाइनल तक ही जगह बना पाया। गंभीर ने कहा कि वे साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके कार्यकाल में टीम इंडिया टी 20 और टेस्ट क्रिकेट में शीर्ष तक पहुंचने में कामयाब रही है। लेकिन देखा जाए तो न ही हम विदेशी धरती पर कोई सीरीज जीतने में कामयाब रहे और न ही कोई बड़ा टूर्नामेंट जीत पाए तो अगर रवि के कार्यकाल को देखा जाए तो भारत का प्रदर्शन केवल औसत ही रहा है।

यह स्थायी पद नहीं ः कुंबले

वहीं अनिल कुंबले ने कहा कि रवि शास्त्री को लेकर उनके मन में किसी प्रकार का खटास नहीं है। उन्होंने कहा कि भारतीय टीम का कोच बनना सम्मान की बात है लेकिन शास्त्री जानते थे कि यह स्थायी पद नहीं है। इस पद पर कोई स्थायी तौर पर नियुक्त हो ही नहीं सकता। शास्त्री के असंतुष्ट होने से जुड़े सवाल पर कुंबले ने कहा कि एक खिलाड़ी के तौर पर वह भी टीम से निकाले गए हैं लेकिन उन्होंने कभी किसी से शिकायत नहीं की। कुंबले ने कहा कि शास्त्री ने अच्छा काम किया। वह एक बेहतरीन भारतीय कोच के तौर पर जाने जाएंगे। यह अनिल कुंबले या फिर रवि शास्त्री के मुख्य कोच बनने का सवाल नहीं है, यह टीम के सभी खिलाड़ियों से जुड़ा मुद्दा है। शास्त्री ने मुझे बधाई दी है और कहा है कि मेरे पास एक बेहतरीन युवा टीम को प्रशिक्षित करने का मौका है।

कोच नहीं बन पाने के बाद रवि शास्त्री का दुखी होना स्वाभाविक था। उन्होंने एक अखबार को इंटरव्यू दिया जिसमें उन्होंने चयन प्रक्रिया में सौरव गांगुली की भूमिका पर सवाल उठाया। शास्त्री का कहना था कि इंटरव्यू के दौरान सौरव गांगुली मौजूद नहीं थे। फिर अलग-अलग अखबार में शास्त्री के इंटरव्यू आने लगे और सभी में वे सौरव पर नाराज होते नजर आए। उन्होंने यह मैसेज देने की कोशिश की कि वे गांगुली की वजह से कोच नहीं बन पाए। मीडिया ने भी गांगुली और शास्त्री के विवाद को ऐसे पेश किया जैसे दोनों के बीच महाभारत चल रही हो। रवि शास्त्री के इंटरव्यू में बहुत कुछ था लेकिन चर्चा सिर्फ शास्त्री और गांगुली के टकराव पर हुई।

मुर्खों की दुनिया में रह रहे शास्त्री ः गांगुली

souravgangulyरवि शास्त्री लगातार सौरव गांगुली पर हमले करते रहे। काफी समय तक तो गांगुली इसे टालते रहे मगर बुधवार को उन्होंने शास्त्री को करारा जवाब दे दिया।शास्त्री बार-बार इंटरव्यू में सौरव की अनुपस्थिति को लेकर सवाल उठा रहे थे। इसका जवाब देते हुए सौरव ने कहा, ‘अगर रवि शास्त्री सोचते हैं कि वह गांगुली की वजह से कोच नहीं बन पाए तो वे बेवकूफों की दुनिया में रह रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि उन्होंने बीसीसीआई को पहले ही सूचना दे दी थी कि इंटरव्यू के दिन 5 बजे लेकर 6.30 तक वे बंगाल क्रिकेट एसोसिशन की मीटिंग में व्यस्त रहेंगे। गांगुली का यह भी कहना था कि अगर वे इंटरव्यू में मौजूद नहीं थे तो रवि शास्त्री खुद भी मौजूद नहीं थे। उन्हें भारत आकर इंटरव्यू देना चाहिए था। दरअसल, शास्त्री ने स्काइप के जरिये इंटरव्यू दिया था क्योंकि इंटरव्यू के दौरान वे बैंकॉक में छुट्टी मना रहे थे।

शास्त्री का संकेत, बात और बढ़ेगी
यह बात यहीं खत्म होने वाली नहीं है। आगे इस तरह के टकराव और देखने को मिल सकते हैं क्योंकि रवि शास्त्री ने एक और तीर चला दिया है। उनका कहना है कि यदि अनिल कुंबले कोच के रूप में सफल होते हैं तब तो अच्छी बात है लेकिन यदि वे विफल होते हैं तो सवाल चयन समिति पर उठाए जा सकते हैं। यह तर्क भी दिया जा सकता है कि टीम डायरेक्टर के रूप में सफल हुए रवि शास्त्री को कोच क्यों नहीं बनाया गया? ऐसे में जो क्रिकेटर और क्रिकेट प्रेमी कुंबले को लेकर आज खुश हो रहे हैं, समय आने पर वे कुंबले की आलोचना करने से भी पीछे नहीं हटेंगे।
कुछ दिन पहले क्रिकेट प्रेमियों के बीच चर्चा का एक ही विषय था कि टीम इंडिया का नया कोच कौन होगा। सभी जानना चाह रहे थे कि कोच देसी होगा या विदेशी। टॉम मूडी को छोड़कर जब किसी बड़े विदेशी खिलाड़ी ने आवेदन नहीं किया, तभी यह लगभग तय हो गया था कि किसी भारतीय को ही कोच बनाया जाएगा। सब यही उम्मीद कर रहे थे कि टीम इंडिया के कोच रवि शास्त्री बनेंगे क्योंकि पिछले 18 महीने में उन्होंने टीम डायरेक्टर के रूप में अच्छा काम किया था, लेकिन अनिल कुंबले ने जब आवेदन किया तब समीकरण बदल गए। क्रिकेट प्रेमियों का जो सपोर्ट शास्त्री के लिए था, वह अनिल कुंबले की तरफ शिफ्ट होता गया। यह स्वाभाविक भी था क्योंकि कुंबले शास्त्री से अच्छे खिलाड़ी रहे हैं। सबसे बड़ा फैक्टर यह था कि कुंबले ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से 2008 में संन्यास लिया था, जबकि शास्त्री ने 1992 में। इसलिए कम उम्र और आधुनिक क्रिकेट की समझ अनिल कुंबले के फेवर में रही।