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ओपिनियन पोस्ट ब्यूरो

व्यक्ति केंद्रित पार्टियों के साथ जिस बात की आशंका होती है वही आशंका अब अन्नाद्रमुक के भविष्य को लेकर है। यहां भी नेताओं की कोई मजबूत दूसरी पंक्ति नहीं दिख रही है, जो आनेवाले हालात को संभालने में सक्षम दिखता हो। जयललिता के सबसे वफादार रहे मुख्यमंत्री पनीरसेल्वम पर किसी को भरोसा नहीं है कि वह पार्टी को अपने नियंत्रण में कर आगे सरकार चलाएंगे। माना जा रहा है कि जया की बेहद करीब रही शशिकला जल्द ही पनीरसेल्वम को कुर्सी से हटाकर खुद या अपने किसी परिजन को मुख्यमंत्री बनाना चाहेगी। कुल मिलाकर कोई एकमत का नेता नहीं होने कारण अन्नाद्रमुक में टूट की आशंका है। इस पर प्रमुख विरोधी दल द्रमुक के साथ साथ कांग्रेस और भाजपा की भी निगाह रहेगी।

व्यक्ति के इर्द गिर्द खड़ी होनेवाली पार्टियों साथ यह डर होता है कि अगर वह व्यक्ति अगर बिना सत्ता हस्तातंरण किए चला जाता है तो वह पार्टी किसके साथ आगे बढ़ेगी। या तो वह खत्म हो जाएगी या फिर तेलगुदेशम की तरह नए केंद्र का सहारा लेकर आगे बढ़ेगी। राजद, बसपा, जद यू जैसी पार्टियों के साथ भी यही स्थिति है। सपा में मुलायम सिंह यादव ने पारिवारिक कलह के दौरान अखिलेश को सत्ता हस्तांतरण को कामयाबी के साथ संपन्न कराया है। इसी तर्ज पर लालू यादव अपने पुत्र तेजस्वी को स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। तमिलनाडु की राजनीति के एक जानकार का कहना है कि यह स्थिति केंद्र में बेहद मजबूती से शासन कर रही भाजपा के लिए तमिलनाडु में सत्ता तक पहुंचने का एक बड़ा आधार बन सकता है। हो सकता है कि यहां भी अरूणाचल की तरह अन्नाद्रमुक का एक गुट राज्य के विकास के लिए मदद के  नाम पर भाजपा के साथ चला जाए। जयललिता को श्रद्धांजलि देने पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने पनीरसेल्वम को गले लगाया तो शशिकला के सिर पर हाथ रखकर सांत्वना दी। तमिलनाडु के भाजपा नेता सुब्रमणियम स्वामी का भी मानना है कि छह महीने में तमिलनाडु में राजनीतिक परिवर्तन की आशंका है। देखना यह है कि इसका लाभ क्या द्रमुक को मिलेगा या भाजपा कांग्रेस जैसी राजनीतिक पार्टियों को।