अटल जी की राजनीतिक विरासत को इस तरह समझ सकते हैं कि राजनीति को संभावना का खेल बताया जाता है। जो संभव है वह राजनीति है। जो असंभव है वह राजनीति नहीं है। इसी में यह बात भी आती है कि राजनीति शुद्ध रूप से कोई आदर्शवाद नहीं है। वह दैनिक व्यवहार है, जनता और सत्ता के बीच का व्यवहार है। हर वक्त वह आदर्श नहीं हो सकता। लेकिन आदर्शहीन राजनीति सही राजनीति नहीं हो सकती। आज जिस तरह से हम राजनीति से आदर्श और संस्कार हटा रहे हैं, अलग कर रहे हैं वह सही नहीं है। अटल जी कभी उसको स्वीकार नहीं करते। इसी वजह से आज राजनीति का जनता के बीच अवमूल्यन हुआ है। लोगों को लगता है कि राजनीति में मूल्यों की कोई कद्र नहीं रही। और भारत ही क्यों सभी देश की आम जनता अपने नेता में आदर्श, नैतिकता और संस्कार चाहती है- चाहे वह अमेरिकन जनता ही क्यों न हो जिसे आदर्शवादी या नैतिक वादी तो नहीं कहा जा सकता। अमेरिकी परिवारों और समाज में इस तरह की नैतिकता तो बहुत कम दिखाई देती थी। लेकिन हर अमेरिकी चाहता है कि उसका सीनेटर या प्रेसिडेंट नैतिक हो- यह परिवारवादी हो, गुरु की कद्र करे, बच्चों से स्नेह करे और मार्गदर्शन दे- यह सब वह चाहता है। जबकि वह स्वयं शायद यह नहीं करता पर अपने नेता में वह आदर्श, नैतिकता और संस्कार चाहता है। तो बिना आदर्शांे, संस्कारों, मूल्यों के जो राजनीति की जाती है वह कभी स्थायी नहीं हो सकती। उससे न तो स्थायी भला हो सकता है, न राजनीतिकों की लोकप्रियता स्थायी हो सकती है।

कोई भी अच्छी नीति वही होती है जो वर्तमान की परिस्थितियों में बनी हो यानी व्यावहारिक हो लेकिन उसकी पहुंच आगे आने वाले समय तक हो। अगर उसकी पहुंच आगे आने वाले समय तक नहीं है तो आगे आने वाली पीढ़ी उससे कुछ नहीं सीख सकती। अगर मेरे आदर्श मेरे बेटे के लिए अप्रासंगिक बन जाते हैं तो वह क्या करेगा उनका? वह उनको नहीं मानेगा। इसलिए नीति तो वही है जो मेरे लिए भी सही हो और मेरे बेटे के लिए भी सही हो। आगे आने वाली पीढ़ी के लिए भी सही हो। खासकर भारतीय जनता पार्टी के लिए अटल जी का यह आदर्श बहुत महत्वपूर्ण है। यही उनके चिर अस्तित्व के लिए आवश्यक है।