नई दिल्ली। दिग्गज अभिनेता और थिएटर आर्टिस्ट ओमपुरी का जितना योगदान पैरलल सिनेमा को रहा उससे कहीं ज्यादा वह मेनस्ट्रीम फिल्मों के साथ रहे। ओमपुरी ने लगभग 300 अलग-अगल भाषाओं की फिल्में की, जिनमें हिंदी से साथ कन्नड़,  मराठी,  मलयालम,  हॉलीवुड और ब्रिटिश फिल्में थीं।

फिल्म ‘आक्रोश’ 1980 की सबसे महत्वपूर्ण फिल्मों में से एक रही। कहा जाता है यह फिल्म हिंदी सिनेमा की उन 60 फिल्मों में एक है जो हिंदी सिनेमा के लिए टर्निंग प्वांइट साबित हुई। इस फिल्म में ओमपुरी के साथ अमरीश पुरी और नसीरुद्दीन शाह भी साथ आए। ओमपुरी को ‘आक्रोश’ के लिए सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला।

फिल्म ‘आरोहण’ के लिए ओमपुरी को नेशनल अवार्ड से नवाजा गया। जमींदारों के हाथों मजबूर एक गरीब किसान ‘हरी’  के दास्तां बयां करती ये फिल्म ओमपुरी के लिए मील का पत्थर साबित हुई थी।

वहीं गोविंद निहलानी की ‘अर्धसत्य’ में ओमपुरी एक लाचार पुलिस अफसर के किरदार में व्यवस्था से लड़ते नजर आए। उनकी इस अदाकारी को हिंदी सिनेमा में अभि‍नय का एक पड़ाव माना जाता है।

‘माचिस’ में पंजाब के एक सिख आंतकवादी के किरदार में हमने उन्हें देखा। फिल्म 1984 के सिख दंगों और इंदिरा गांधी की हत्या से जुड़ी कहानी थी। इसमें भी उनके चेहरे के भाव दर्शकों को हिला गए थे।

केतन मेहता की फिल्म ‘मिर्च मसाला’ में ओमपुरी के साथ स्मिता पाटिल और नसीरुद्दीन शाह भी थे। उन्होंने एक बहादुर गार्ड की दमदार भूमिका निभाई। इस फिल्म को महिला सशक्त‍िकरण पर बनी फिल्मों में एक खास नाम माना जाता है।

फिल्म ‘आस्था’ भी ओमपुरी की बेहतरीन फिल्मों में एक है। भ्रष्टाचारी आहूजा के रोल में ओमपुरी की 1983 में बनी ‘जाने भी दो यारों’ एक बेहतर पॉलि‍टिकल सटायर थी।  ओमपुरी की कई फिल्में हिंदी सिनेमा के लिए मिसाल रहीं। ओमपुरी पैरलल ही नहीं कई मेनस्ट्रीम फिल्मों के लिए भी याद किए जाएंगे। अक्षय कुमार की ‘हेरा फेरी’ में और फिल्म ‘सिंह इज किंग’ के रंगीला को हर किसी ने पसंद किया।

रितिक रोशन के साथ ओमपुरी फिल्म ‘लक्ष्य’ में नजर आए थे। युवाओं को दिशा दिखाने वाली इस फिल्म में ओमपुरी के किरदार को खूब सराहा गया था। सलमान खान की ‘बजंरगी भाईजान’ में वह पाकिस्तानी मौलवी के किरदार में दिखे थे। उनके इस किरदार को बहुत तारीफ मिली थी। भले ही ओम कम समय के लिए पर्दे पर आए थे, लेकिन दर्शकों के दिलों में एक गहरी छाप छोड़ गए थे।