कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे पर हमला करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते। राहुल गांधी तो जब भी केंद्र सरकार पर बोलते हैं तो नरेंद्र मोदी ही उनके निशाने पर रहते हैं। कभी सूटबूट की सरकार, कभी फेयर एंड लवली और मोदी की उद्योगपति अडानी से दोस्ती आदि आरोप लगाते रहते हैं। लेकिन मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से संसद के जून 2014 में प्रथम सत्र से लेकर अब तक राहुल गांधी ने लोकसभा में एक बार भी इन रिपोर्टांे का मामला नहीं उठाया। नरेंद्र मोदी सरकार की हर नीति के बारे में राहुल गांधी कहते रहे हैं कि यह तो हमारी सरकार की नीति या निर्णय था। मोदी सरकार या तो उसकी नकल कर रही है या उसी पर चल रही है। लेकिन यह कभी नहीं कहा कि मनमोहन सिंह सरकार ने काले धन के बारे में तीन संस्थाओं से जो अध्ययन कराया था उसकी रिपोर्ट मोदी जी संसद के पटल पर क्यों नहीं रख रहे। राहुल गांधी 15 लाख हर एक के खाते में जमा करने के कथित वादे की तो मोदी को लगातार याद दिलाते रहे लेकिन लगभग ढाई साल का कार्यकाल पूरा कर चुकी मोदी सरकार से यह नहीं पूछा कि उन रिपोर्टांे पर क्या कार्यवाही की गई। जब सरकार ने 500 और 1000 के नोटों के चलन को बंद कर एक ठोस कदम उठाया तो राहुल गांधी सवाल उठा रहे हैं। वो किसके पक्ष में खड़े हैं?