एन. के. सिंह।

स्वतंत्र भारत के इतिहास में बहुत ही मुश्किल से ऐसे क्षण आते हैं जिन्हें युग प्रवर्तक क्षण कहा जा सकता है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पांच सौ और एक हजार रुपये के नोट बंद करने के इस कदम को हम आमतौर पर दूसरे डिमॉनिटाइजेशन (विमुद्रीकरण) के रूप में लेते हैं। इसमें सिर्फ इतना ही नहीं है कि नोट बंद कर दिए गए हैं। बल्कि इससे पूरी ब्लैक मनी पर जो आज हमारी जीडीपी का पैंसठ प्रतिशत है, एक विराम लगेगा और यह विराम शायद शाश्वत (परमानेंट) होगा। ब्लैक मनी पर रोक के अलावा इसके दूसरे फायदे भी हैं। देश से भ्रष्टाचार खत्म करने का इससे बड़ा कदम शायद कोई दूसरा नहीं हो सकता। हमें अन्ना हजारे का आंदोलन याद है जिससे भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सामूहिक चेतना जगी थी। लेकिन शासन के एक एक्शन से भ्रष्टाचार जैसे रोग से निजात पाने में ऐसा प्रभावी कदम सराहनीय है। प्रधानमंत्री का यह कदम मैं नहीं मानता कि उनकी पार्टी के लोगों का कदम हो सकता है। यह शुद्ध रूप से उनकी सोच और दृढ़ता की उपज है। मैं समझता हूं कि यह कदम उठाने की वजह से मोदी को युगपुरुष के रूप में जाना जाएगा।

जहां तक राजनीति की बात है तो आमतौर पर यह माना जाता है कि राजनीति से समाज सुधार नहीं होता। लेकिन अगर राजनीति से या सत्ता में जो पार्टी है उसके नेता के एक फैसले से इतना बड़ा सुधार हो सकता है तो सीधी सी बात है कि इसका राजनीतिक लाभ मिलता है। और यह लाभ केवल एक दो चुनाव तक नहीं मिलता बल्कि हो सकता है कि बीजेपी को लंबे दौर तक इसका फायदा मिले। हो सकता है देश की जनता को शुरू के दिनों में कुछ परेशानियां आ रही हों लेकिन फिर भी जनता ने इसको पूरी तरह से स्वीकार किया है और इस्तकबाल किया है।

प्रो. अरुण कुमार के आंकड़े के हिसाब से भारत की जीडीपी इस समय करीब 2.3 ट्रिलियन डॉलर है उसका पैंसठ प्रतिशत ब्लैक मनी है। वहीं आजादी के बाद शुरू के पांच वर्षांे में देश की जीडीपी का केवल पांच प्रतिशत पैसा कालेधन के रूप में परिवर्तित होता था। तो कालेधन की इतनी बड़ी समानांतर अर्थव्यवस्था पर प्रधानमंत्री के एक फैसले से अंकुश लगाना, ऐसा देश में पिछले सत्तर सालों में कभी नहीं हुआ। और मुझे नहीं लगता कि दुनिया के किसी भी देश में इतना प्रभावी कदम एक झटके से उठाया गया हो।

ऐसा नहीं है कि यह कदम पिछली सरकारों को मालूम नहीं था। ऐसा भी नहीं है कि पिछली सरकारें जानती नहीं थीं कि ब्लैक मनी कितना है, कहां है। तमाम रिसचर्रों ने और प्रो. अरुण कुमार ने अपनी किताब में कालाधन के स्वरूप और व्यापकता पर विस्तार से चर्चा की है। इसका पता लगाने के लिए चार कमेटियां गठित हुई थीं। उन सभी का निष्कर्ष है कि आजादी के चार साल बाद जीडीपी का करीब चार प्रतिशत तक ब्लैक मनी के रूप में हो जाता था। लेकिन यह लगातार बढ़ता रहा। 1970 में ब्लैक मनी बढ़कर तीस प्रतिशत तक हो गई। प्रो. अरुण कुमार के आंकड़ों के अनुसार आज हम देखें तो पैंसठ प्रतिशत तक हमारी जीडीपी का कालाधन हो जाता है।

कालाधन वह धन है जो लाभ में आया है और उस पर टैक्स नहीं दिया गया है। कालाधन दो प्रकार का होता है। एक- जो विदेशों में जमा करते हैं टैक्स बचाने के लिए और दूसरा- जो देश में ही रहता है। कुल कालेधन का दस प्रतिशत ही विदेशों में जमा होता है। बाकी नब्बे प्रतिशत देश में ही रहता है।

‘इकोनोमिस्ट’ के दिए एक आंकड़े के अनुसार अगर भारत में पिछले दस सालों में ब्लैक मनी न जनरेट हुई होती तो भारत की प्रति व्यक्ति आय स्विट्जरलैंड की प्रति व्यक्ति आमदनी से ज्यादा होती। मतलब देश की खुशहाली के बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं है। तो क्या वजह थी कि बाकी सरकारें यह नहीं कर पाती थीं। अब यह स्पष्ट हो गया है कि दरअसल उनके नेतृत्व में विल पावर (इच्छाशक्ति) नहीं थी। दूसरा कारण यह था कि शायद तत्कालीन सरकार का नेतृत्व ब्लैक मनी के प्रभाव में था। चूंकि मोदी ‘एकला चलो रे’ के भाव में रहते हैं तो अगर उनकी पार्टी में कुछ लोगों के पास कालाधन हो भी तो यह उन्हें प्रभावित नहीं कर सकता। उनका व्यक्तित्व अलग है। अगर प्रधानमंत्री के इस कदम के राजनीतिक परिणाम की बात करें तो वह बेहद संजीदा होगा। पहली बार लोगों को लग रहा है कि देश में राज्य के माध्यम से भी परिवर्तन आ सकता है। अब तक शायद यह विश्वास नहीं होता था।

इसका सबसे बड़ा फायदा यह होने जा रहा है कि हमारा अपनी अर्थव्यवस्था, समस्त अभिकरणों और नेतृत्व में विश्वास बढ़ेगा। और सबसे महत्वपूर्ण यह कि दूसरे देशों का विश्वास भारत के प्रति बढ़ेगा। अभी तक यह कहते थे कि ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के करप्शन इंडेक्स यानी भ्रष्ट देशों की सूची में भारत काफी आगे रहता है। लेकिन अब जो करप्शन इंडेक्स बनेगा उसमें शायद हम स्कैंडिनेवियाई देशों, जिनको बहुत अच्छा माना जाता है, की श्रेणी में होंगे। हो सकता है शुरू के सबसे कम भ्रष्टाचार वाले बीस देशों में हों।

इस कदम का राजनीतिक लाभ तो एक अलग पक्ष है लेकिन समाज के सुधार में यह बहुत कारगर कदम होने जा रहा है। कुल मिलाकर इस कदम को हम इस रूप में देखें कि इसकी व्यापकता कितनी है। पूरे देश में हमारा मनी सर्कुलेशन अठारह लाख करोड़ का है। इसमें साढ़े सोलह लाख करोड़ पांच सौ और एक हजार रुपये के नोटों के रूप में होता है जो लगभग 87.6 प्रतिशत है। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, जिसे इनकम टैक्स अथॉरिटी ने बनाया है, संपूर्ण कालेधन का नब्बे प्रतिशत हिस्सा पांच सौ और एक हजार के नोट के रूप में होता है। तो अगर आप इसे अचानक डि-रिकग्नाइज करते हैं तो सीधी सी बात है कि जैसे चूहे को चूहेदानी में फंसा दिया जाता है, उसी तरह ब्लैक का पैसा रखने वाले भी चूहेदानी में फंस गए। वे सोना भी नहीं खरीद सकते क्योंकि उसके लिए भी पैसा देना पड़ेगा। फिर वे जमीन भी नहीं खरीद सकते तो कुल मिलाकर पांच सौ और एक हजार के नोटों को बंद करना हमें करप्शन के चंगुल से छुटकारा दिलाएगा और अर्थव्यस्था को भारी नुकसान पहुंचाने वाली समानांतर चल रही कालेधन की समानांतर अर्थव्यवस्था को खत्म करेगा।

इतिहास में वे क्षण कम आते हैं जब सरकारें प्रशासनिक दृढ़ता दिखाती हैं। मुझे लगता है कि पिछले सत्तर साल के इतिहास में यह पहला क्षण है जब तमाम राजनीतिक दबावों को दरकिनार करते हुए, जिसमें संभव है कि पार्टी का भी दबाव हो, एक नेतृत्व ने बड़ा फैसला लिया है। इस फैसले के अगले कुछ दिनों में शेयर मार्केट गिरने सरीखे हल्के-फुल्के प्रभाव देखने को मिलेंगे, लेकिन देश से कालाधन खत्म करने का आगाज तो हो ही चुका है। ध्यान रहे कि तीस सितंबर तक ब्लैक मनी को व्हाइट कराने की स्कीम दी गई थी। मोदी ने चेतावनी दी थी कि इसके बाद ब्लैक मनी रखने वाले लोग रात को सो नहीं पाएंगे। और हुआ भी वही। ब्लैक मनी रखने वाले शायद अगले कुछ दिन तक सो भी नहीं पाएंगे क्योंकि पांच सौ और एक हजार के नोटों के रूप में रखा उनका कालाधन या तो बेकार होगा या फिर वे जेल जाने के लिए तैयार रहें। जो नया कानून बना है उसमें कालेधन की स्वैच्छिक घोषणा करने की मियाद बीतने के बाद से कालेधन की घोषणा करने पर सिर्फ इतना ही नहीं है कि आपको तीस-चालीस प्रतिशत या जो भी निर्धारित पेनाल्टी है वह देनी होगी, बल्कि जेल भी हो सकती है। भारत जैसे देश में जिस दिन कालाधन रखने वाला जेल जाएगा उस दिन देशवासी मोदी को सिर आंखों पर बैठा लेंगे।

राजनीति और कालाधन
इस देश में जब आम चुनाव होते हैं तो उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार लगभग दस हजार करोड़ रुपये का कालाधन उसमें अपनी ‘भूमिका’ निभाता है। उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इनमें उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा भी शामिल हैं। उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा राज्य होने की वजह से वहां चुनाव में ब्लैक मनी का प्रचलन बेहद ज्यादा होता है। हम प्रधानमंत्री के इस फैसले को इस रूप में नहीं देखते हैं कि यह किसी पोलिटिकल बूम या राजनीतिक उछाल के लिए लिया गया है, क्योंकि यह एक बड़े उद्देश्य के लिए किए गए सद्प्रयास को बहुत ही घटिया मानसिकता से सोचना होगा। लेकिन उसका लाभ मिल रहा है। प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद यूपी के चुनाव में ब्लैक मनी अब पहले जैसी भूमिका नहीं निभा पाएगी। सारे पॉलिटिशियंस के पास ब्लैक मनी पांच सौ और एक हजार रुपये के नोटों के रूप में ही है। तो यूपी में ब्लैक मनी द्वारा चुनाव को प्रभावित करने की जो प्रक्रिया सत्तर साल से चल रही थी अब वह पूरी तरह खत्म हो जाएगी। पंजाब में भी चुनाव में ब्लैक मनी का काफी रोल देखने को मिलता है। करोड़ों रुपये कैश पकड़े जाते हैं। उत्तराखंड में भी इलेक्शन होने जा रहा है। तो बेहद मुश्किल होगा इस बार चुनाव में ब्लैक मनी इस्तेमाल कर पाना। वैसे सभी पार्टियां चुनाव में ब्लैक मनी का इस्तेमाल करती हैं। लेकिन बीजेपी की केंद्र सरकार ने इसे रोकने की पहल की है इसलिए इसका लाभ और श्रेय बीजेपी को मिलेगा। ब्लैक मनी इस्तेमाल न कर पाने की वजह से तमाम पार्टियां परेशान होंगी और वे शायद उतना आगे नहीं बढ़ पाएंगी। क्योंकि अभी तक जो उनका तसव्वुर था वे ब्लैक मनी के ही माध्यम से कैडर का नेटवर्क खड़ा करती थीं, प्रचार करती थीं, इमेज बदलती थीं। तो यह एक बड़ा नुकसान होने जा रहा है बाकी पार्टियों को। ध्यान रहे कि अगर यूपी का चुनाव बीजेपी जीतती है तो राष्ट्र फिर से एक बार उसी भाव में चला जाएगा जो 2014 में मोदी के प्रति जनता का था। हम कह सकते हैं जो यह फैसला हुआ है उसका पूरा क्रेडिट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है। क्योंकि मोदी बीजेपी के हैं इसलिए उसे लाभ मिलेगा इसमें कोई दो राय नहीं। देश में अगला आम चुनाव जब होगा तो भाजपा को जबरदस्त लाभ मिलेगा। पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के तुरंत बाद जनता का रुझान पता करने वाली दो संस्थाओं ने सर्वे किया था और जनता में बीजेपी के प्रति जबरदस्त रुझान देखने को मिला था। माना जा रहा है कि यह जो इकोनोमिक या फाइनेंशनल सर्जिकल स्ट्राइक हुआ है इससे बीजेपी के प्रति जनता की स्वीकार्यता अचानक बढ़ जाएगी और इसका यूपी में जबरदस्त लाभ मिलने जा रहा है।

आगे की राह
एक फैसले से इतनी बड़ी सामाजिक संतुष्टि मिले यह हमने सत्तर साल के भारत के इतिहास में नहीं देखा, न ही दुनिया के किसी अन्य बड़े लोकतांत्रिक देश में देखा है। भ्रष्टाचार हटाने के लिए सिंगापुर को सर्वश्रेष्ठ उदाहरण के रूप में रखा जाता है। मैं तो यह कहूंगा कि यदि और दो तीन साल हम यही प्रक्रिया पूरी दृढ़ता से करते रहे तो सिंगापुर के करप्शन हटाने के जज्बे को किनारे धकेलकर हम बहुत आगे निकल जाएंगे। अब अगला कदम यह होगा कि अब आगे से ब्लैक मनी जनरेट न हो। अब तक की ब्लैक मनी तो हम पकड़ लेंगे। लेकिन पांच सौ और दो हजार के नोटों की जो नई करंसी आ रही है उसमें भी ब्लैक मनी जेनरेट न हो उसके लिए आप क्या करने जा रहे हैं। मेरे ख्याल से केंद्र सरकार को उसके भी उपाय करने होंगे।

आम लोगों की परेशानी
इस स्कीम की एक खराबी जरूर है कि आप शायद यह भूल गए कि प्रतिदिन दस हजार करोड़ रुपये का खुदरा मार्केट है। एक बुढ़िया धनिया बेचकर पेट पालती है। उसके पास पांच सौ रुपये के कुछ नोट हैं जो पेट काटकर की गई बचत है। शाम को जाती है तो दुकानदार से आटा खरीदती है। फिर रोटी बनाती है और पेट भरती है। आज जो क्राइसिस अचानक हुई है तो वह बुढ़िया जब पांच सौ का नोट लेकर दुकानदार के पास जाएगी तो उसको खाना खाने के लिए अनाज नहीं मिलेगा, आटा नहीं मिलेगा। हम चूंकि शहरी लोग हैं तो इसे इस रूप में देखते हैं कि बैंक जाकर चार हजार रुपये तक के नोट कनवर्ट करा सकते हैं। लेकिन जरा गांवों की सोचिए। जिसके यहां शादी होनी है उसका काम चार हजार रुपये से नहीं होगा। शादियां चार हजार में नहीं होती हैं। यह एक समस्या बड़ी आएगी शादीवाले घर में साठ किलो पनीर खरीदने के लिए ग्वाले को पैसे देने हैं तो वह कैसे मैनेज करेगा। एक तो उसके पास बैंक अकाउंट नहीं होता और अगर होता भी है तो वह जानता नहीं है कि यह कैसे आॅपरेट होता है। तो बड़ा संकट ग्रामीण परिवेश में वहां के लोगों के लिए आएगा जहां खुदरा बाजार में दस हजार करोड़ रुपये का रोजाना लेनदेन होता है। इसमें से छह हजार करोड़ रुपये का लेनदेन गरीब लोग करते हैं। वे अपनी रोजी रोटी के लिए परेशान रहते हैं।
मेरे ख्याल से इन तबकों को राहत देने के लिए सरकार को दो उपाय तत्काल करने चाहिए। बैंकों की छोटी छोटी एक्सटेंशन शाखाएं बड़ी संख्या में खोलें ताकि नोट आसानी से बदले जा सकें। ग्रामीण व्यवस्था में यह ब्लॉक के आधार पर हो सकता है और ग्राम पंचायतों को भी इसमें शामिल करना चाहिए। वहां दस दस रुपये और सौ सौ रुपये के नोट रखे जाने चाहिए ताकि लोग अपने पांच सौ के नोट वहीं पर तत्काल बदल सकें। और गांव के लोगों को यह मालूम हो कि किसने कितना बदला है। यह तत्काल करना पड़ेगा। दूसरा उपाय यह कि अगर कोई शादी का कार्ड दिखाता है तो उसके लिए ऐसी व्यवस्था हो कि वह एक बैंक से एक लाख रुपये तक तत्काल ले सकता है। यह नहीं करेंगे तो संकट बना रहेगा और आम लोगों तथा गरीबों को, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में काफी तकलीफ हो सकती है। और एक अच्छा प्रयास केवल कुछ व्यावहारिक समस्याओं के कारण लोगों की नजरों में उतना नहीं चढ़ पाएगा। हालांकि अभी तो आम आदमी जो परेशान है वह भी इसकी तारीफ कर रहा है लेकिन ये उपाय करने बहुत जरूरी हैं।

मैं कहूंगा कि यह कदम न केवल भ्रष्टाचार के कैंसर को जड़ से खत्म करने की दिशा में एक युगान्तरकारी कदम हो सकता है बल्कि देश को नैतिकता की राह पर चलने को प्रेरित कर सकता है, खासकर राजनीतिक वर्ग को। अब तक राजनीतिक वर्ग चुनाव लड़ने के नाम पर ब्लैक मनी लेता था और उसको खर्च करता था। कालाधन पूरी चुनाव व्यवस्था को प्रभावित करता था। तो इस कदम से सामाजिक जीवन और राजनीति में शुचिता आएगी और सबसे बड़ी बात कि देश की अर्थव्यवस्था एक नए ट्रैक पर चलेगी क्योंकि तब विदेशियों का भी विश्वास भारत में काफी ज्यादा बढ़ेगा।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें न निगलते बनता है, न उगलते बनता है। हमारा भारतीय प्रजातंत्र द्वंद्वात्मक है या दूसरे शब्दों में हम कहें तो एडवर्सेरियल डेमोक्रेसी माना जाता है। जिसमें सत्ता पक्ष होता है, फिर विपक्ष होता है, मीडिया होती है। और ये सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करते हैं और अगर नीतियां नहीं हैं तो उन्हें बनाने का दबाव डालते हैं। लिहाजा एक आदत होती है विपक्ष की कि वह सरकार की गलतियों को उजागर करता है। लेकिन चाहे वे सरकार के हों या विपक्ष के, कुछ कदम ऐसे होते हैं जिनकी बुराई करने पर आप जनता की नजरों से स्वयं गिरने लगते हैं। आज किसी विपक्षी दल की यह हिम्मत नहीं होगी कि वह सरकार के हजार और पांच सौ के नोट बंद करने के कदम को गलत बताए क्योंकि उसका सीधा मतलब होगा कि आप चाहते हैं कि देश में भ्रष्टाचार और कालाधन बना रहे। यह सत्तापक्ष का वह कदम है जिसकी विपक्ष बुराई भी नहीं कर सकता और तारीफ करना उसकी आदत में नहीं है। एक शेर है- ‘जीने भी नहीं देते मरने भी नहीं देते, क्या तुमने मोहब्बत की हर रस्म उठा डाली।’ आज विपक्ष की सांप छछूंदर की गति हो गई है। न निगलते बन रहा है, न उगलते। यही वजह है कि कांग्रेस का यह कहना जनता को बहुत अजीब सा लगा कि यह राजनीतिक लाभ के लिए किया गया है। मेरा कांग्रेस से पूछने का मन है कि अगर इस कदम से राजनीतिक लाभ मिलना था तो 2014 में आपने भी ले लिया होता! तो आज आप सत्ता में होते। और फिर अगर किसी अच्छे काम से राजनीतिक लाभ मिलता है तो यह कोई बड़ी गंदी चीज नहीं है। आपको भी लेना चाहिए था। तो आज कांग्रेस या विपक्ष बहुत दूर तक ‘सस्टेन’ कर ले, जन अपेक्षाओं पर खरा उतरकर अपनी जन स्वीकार्यता बढ़ा पाए। लिहाजा उसको इसकी तारीफ करनी पड़ेगी। यही वजह है कि नीतीश कुमार को हर हाल में इसकी प्रशंसा करनी पड़ी। प्रधानमंत्री के इस कदम की घोषणा करने के बारह घंटे के भीतर ही वह पब्लिक में आए और मीडिया से कहा कि यह एक बहुत अच्छा कदम है, इससे भ्रष्टाचार रुकेगा। और यह मजबूरी है कांग्रेस की भी कि थुथुन पर लाठी वाली हालत से बचना चाहती है तो उसे भी कहना पड़ेगा कि यह अच्छा कदम है। अगर नहीं कहते तो जनता शायद यह समझेगी कि टूजी स्पेक्ट्रम में जो एक लाख छिहत्तर हजार करोड़ रुपये थे, वे संभवत: अभी भी कांग्रेस के गले के नीचे फंसे हुए हैं और वह उगल नहीं पा रही है। तो सरकार की नीयत और प्रधानमंत्री की सोच में जो सकारात्मक प्रयास था मैं समझता हूं कि उसने विपक्ष को भी चारों खाने चित्त कर दिया है।

आठ नवंबर की शाम जब बताया गया कि प्रधानमंत्री राष्ट्र के नाम संदेश देंगे तो मुझे याद है कि उसके चार घंटे पहले ही वे तीनों सेनाओं के अध्यक्षों से मिले थे। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से मिले थे। पाकिस्तान की ओर से गतिविधियों पर बात हुई थी। ऐसे में राष्ट्र के नाम संदेश आने से सीधा लग रहा था कि पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय सेना कोई कड़ा कदम उठाने जा रही है। लेकिन जब पांच सौ और हजार के नोटों को बंद करने की घोषणा हुई तो यह लगा कि प्रधानमंत्री मोदी का दिमाग आम राजनीतिक लोगों से अलग हटकर काम करता है। चूंकि मैंने लगभग दो दशकों से मोदी जी से इन्टरेक्ट किया है तो यह कह सकता हूं कि विकास की और उसके अवरोधों को दूर करने की जितनी समझ मैंने उनमें देखी है उतनी भारत के किसी अन्य नेता में नहीं देखी। मुझे लगता है कि आने वाली पीढ़ियां इस बात पर ताज्जुब करेंगी कि इतनी शक्ति से भारतीय राजसत्ता कैसे यह काम कर पाई।

 (जैसा अजय विद्युत को बताया)