आर. मनोज।

हमारे पास कोई जादू की छड़ी नहीं है, जो घुमाया और सबकुछ ठीक हो गया’, बाच्चा मल्लिक ने टाटा की नैनो प्लांट के लिए घेरी गई अपनी जमीन पर अफसोस जताते हुए कहा। उसे पता चला है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उसकी जमीन शायद उसे वापस मिल जाएगी, फिर भी उसके चेहरे पर खुशी कम, परेशानी ज्यादा दिख रही, ‘यह जमीन करीब दस वर्षों से ऐसी ही पड़ी है। बहुत समय और मेहनत लगेगी। फिर भी क्या भरोसा?’

यह कहानी सिर्फ बाच्चा मल्लिक की नहीं, बल्कि जयमोल्ला, चक्काबुढ़ी, जामपुकुर और बेराबेड़ी मौजाओं के उन तमाम किसानों की है, जिनकी जमीन सिंगूर में टाटा के नैनो प्लांट के लिए ली गई थी। फैक्टरी की उन नीली दीवारों के पीछे उनकी उपजाऊ जमीन है, जिसकी अब सूरत बदल चुकी है। करीब तीन फुट राख और बालू गिराकर अब इस जमीन को समतल बना दिया गया है। किसानों की शिकायत है कि बंजर बन चुकी इस जमीन को कृषि योग्य बनाने में ही एक साल लगेगा। तीन-चार साल बाद ही ठीक से फसल उग पाएगी।

सरकार आश्वस्त, किसान पस्त
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कृषि सलाहकार प्रदीप मजूमदार का मानना है कि अत्याधुनिक मशीनों और वैज्ञानिक तकनीकों से जल्दी ही सिंगूर में फसलें लहलहाने लगेंगी। लेकिन इसके पीछे पानी की तरह पैसा भी बहाना होगा।

तृणमूल सरकार के नुमाइंदे जितना भी ढोल पीट लें, पर किसान हकीकत से वाकिफ हैं। सिंगूर परियोजना के लिए ली गई करीब 1000 एकड़ भूमि के एक-तिहाई हिस्से पर बालू व राख गिराई गई थी। यहां दुकानें व एसेंबली लाइन बनाने के लिए लाया गया काफी सामान भी पड़ा सड़ रहा है। उसकी भी सफाई करवानी होगी। करीब आधी जमीन (500 एकड़) तीन फसली और 300 एकड़ दो फसली थी। यूं कह सकते हैं कि सिंगूर ‘ग्राम बांग्ला’ की सबसे अच्छी तस्वीर पेश करता था। कोलकाता से 45 किमी दूर सिंगूर की जमीन पर अब भी फैक्टरी का शेड-नुमा ढांचा खड़ा है।

ममता का कार्यक्षेत्र
सिंगूर से ही तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी का जमीन से जुड़ा आंदोलन शुरू हुआ था। फिर इससे नंदीग्राम और लालगढ़ भी जुड़े। सिंगूर आंदोलन के दम पर ही ममता 2011 के विधानसभा चुनाव में वाममोर्चा की 34 वर्ष पुरानी सरकार को पटखनी देते हुए सत्ता पर काबिज हुई थीं।

2006 से 2016 के बीच (कब क्या हुआ)

मई, 2006 : टाटा मोटर्स ने किया सिंगूर में नैनो कार कारखाना लगाने का एलान
दिसंबर, 2006 : किसानों की जमीन अधिग्रहण के खिलाफ तृणमूल का आंदोलन, भूख हड़ताल पर बैठीं ममता बनर्जी
जनवरी, 2007 : टाटा मोटर्स ने कारखाने का निर्माण शुरू किया
जनवरी, 2008 : कलकत्ता हाईकोर्ट ने अधिग्रहण को सही करार दिया। फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी गई चुनौती
अगस्त, 2008 : ममता का नैनो कारखाने के बाहर बेमियादी धरना
2 सितंबर, 2008 : नैनो कारखाने में काम बंद
5 सितंबर, 2008 : राज्य सरकार और तृणमूल कांग्रेस के बीच बैठक विफल
अक्टूबर, 2008 : टाटा मोटर्स का सिंगूर छोड़ने व गुजरात जाने का एलान
20 मई, 2011 : मुख्यमंत्री बनते ही ममता बनर्जी ने किसानों को उनकी 400 एकड़ भूमि लौटाने का लिया फैसला
जून, 2011 : बंगाल विधानसभा में सिंगूर भूमि पुनर्वास व विकास विधेयक पारित। टाटा ने हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया
जून, 2012 : हाईकोर्ट ने टाटा मोटर्स की अपील पर इस विधेयक को निष्प्रभावी किया
अगस्त, 2016 : सुप्रीम कोर्ट ने किसानों और एनजीओ द्वारा दायर अपील सुनवाई के लिए स्वीकार की

क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला

बीते दिनों दूरगामी नतीजेवाले एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सिंगूर में 2006 में तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार द्वारा टाटा मोटर्स को नैनो कार उत्पादन संयंत्र स्थापित करने के लिए 997.11 एकड़ जमीन के विवादास्पद अधिग्रहण को निरस्त कर दिया। अदालत ने किसानों को उनकी जमीन 12 हफ्ते के अंदर लौटाने का भी निर्देश दिया। साथ ही किसानों को मिला मुआवजा भी वापस नहीं लेने को कहा है। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों की पीठ ने सुनाया। पीठ के दोनों सदस्यों न्यायमूर्ति वी गोपाल गौड़ा और न्यायमूर्ति अरुण मिश्र ने अपना फैसला अलग-अलग लिखा। कुछ मुद्दों पर एक-दूसरे से असहमति भी जताई। हालांकि भूमि अधिग्रहण को निरस्त करने के महत्वपूर्ण मुद्दे पर सहमति जताई। शीर्ष अदालत ने बंगाल सरकार को निर्देश दिया कि वे अधिगृहीत की गई जमीन का इस्तेमाल बदलें और उसे किसानों को लौटाएं, जो पिछले एक दशक से अपनी जमीन के कब्जे से वंचित थे।

सरकार के पक्ष में था हाईकोर्ट का फैसला
कलकत्ता हाईकोर्ट ने वाम मोर्चा सरकार के अधिग्रहण को सही ठहराया था, जिसके खिलाफ किसानों की ओर से गैर सरकारी संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। हाइकोर्ट के आदेश के खिलाफ केदारनाथ यादव समेत विभिन्न किसानों और एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। आरोप लगाया गया कि भूमि का अधिग्रहण, भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के प्रासंगिक प्रावधानों और अन्य नियमों के खिलाफ था। सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा था कि लगता है सरकार ने प्रोजेक्ट के लिए जिस तरह जमीन का अधिग्रहण किया, वह जल्दबाजी में लिया गया फैसला था।

ऐतिहासिक फैसले पर झूमा सिंगूर
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दिन सिंगूर के तृणमूल समर्थक किसानों ने एक-दूसरे के चहेरे पर अबीर लगा कर खुशी जताई। महिलाओं ने नृत्य और शंख ध्वनि कर अपनी खुशी का इजहार किया। सिंगूर के किसानों का कहना है कि उन्हें ममता बनर्जी पर पूरा भरोसा था, इसलिए उन्होंने अपनी जमीन की कीमत नहीं ली और उनके आंदोलन में शरीक रहे। वे इस फैसले को देश के किसानों और जमीन अधिग्रहण कानून के लिए ऐतिहासिक बता रहे हैं।

टाटा को झटका, कहा : नो कमेंट्स
उधर, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से टाटा मोटर्स को करारा झटका लगा है। टाटा मोटर्स ने हाल में सिंगूर में हुई क्षति के लिए राज्य से मुआवजे के तौर पर 1400 करोड़ रुपये की मांग की थी। गौरतलब है कि बंगाल में सिंगूर को लेकर उग्र होते आंदोलन के बाद टाटा मोटर्स ने नैनो प्रोजेक्ट को सिंगूर से गुजरात स्थानांतरित कर दिया था। टाटा मोटर्स ने कहा कि वह सिंगूर पर उच्चतम न्यायालय के फैसले पर कोई टिप्पणी करने से पहले उसका अध्ययन करेगी। कंपनी ने एक बयान में कहा कि जिस मामले में फैसला आया है, वह टाटा मोटर्स को पट्टे पर दिये जाने से पहले पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा जमीन के अधिग्रहण से जुड़ा है। बयान में कहा गया, ‘हमारा मामला 2011 के सिंगूर कानून से संबंधित है और उस पर अभी शीर्ष अदालत को सुनवाई करनी है। हम इस फैसले पर कोई टिप्पणी करने से पहले उसका विस्तार से अध्ययन करेंगे।’

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कांग्रेस खुश
कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताई है। विधानसभा में विपक्ष के नेता व पार्टी विधायक अब्दुल मन्नान ने कहा कि किसानों को उनकी जमीन मिलेगी, इससे वे खुश हैं। सिंगूर पर फैसले का हम स्वागत करते हैं। आंदोलन में हम भी साथी थे। वहीं, असंतुष्ट कांग्रेस विधायक और पीएसी चेयरमैन मानस भुर्इंया ने भी इस फैसले को ऐतिहासिक करार दिया है। माकपा पर बरसते हुए भुर्इंया ने कहा कि सिंगूर का फैसला वाममोर्चा सरकार की भ्रामक नीति की हार है। अब उन्हें विरोध भूल कर मुख्यमंत्री की सहायता करनी चाहिए। गौरतलब है कि 2016 के राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और वाम मोर्चा ने मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें करारी हार झेलनी पड़ी थी।

अब शांति से मर सकती हूं : ममता 

सिंगूर फैसले के बाद भावुक मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कह दिया कि अब वे शांति से मर सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद राज्य सचिवालय ‘नवान्न’ में एक प्रेस कांफ्रेंस में ममता ने कहा कि इस क्षण के लिए उन्होंने दस वर्ष तक इंतजार किया। हम पर काफी अत्याचार हुए। पुलिस भी परेशान करती थी। मुझे रास्ते पर कितनी बार रोका गया था। मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्हें इस समय महाश्वेता देवी की बहुत याद आ रही है। आज अगर वह जिंदा होतीं तो ‘हजार चौरासी की मां’ बेहद खुश होती। इस आंदोलन में तापसी मलिक समेत 14 लोग शहीद हुए थे। इस अवसर पर मैं उन सभी को याद कर रही हूं। पूर्व की वाम मोर्चा सरकार ने अवैध रूप से जमीन का अधिग्रहण किया था, वह उनकी ऐतिहासिक भूल नहीं बल्कि ऐतिहासिक आत्महत्या थी। टाटा के साथ भविष्य के रिश्तों के बारे में मुख्यमंत्री ने कहा कि उनके दिल में किसी के लिए किसी तरह के बदले की भावना नहीं है। टाटा के साथ एक मुद्दे पर विवाद था। इसका मतलब यह नहीं है कि उनके साथ हमारे संपर्क खत्म हो गए हैं। अगर वह राज्य में निवेश के लिए आते हैं, तो उनका स्वागत है।

किसानों व उद्योग जगत को पहुंचा धक्का : भाजपा
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा है कि दादा (तत्कालीन सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य) और दीदी (ममता) की जिद के कारण बंगाल में किसान व उद्योग जगत दोनों को धक्का लगा है, जिसका परिणाम हमें भविष्य में देखने को मिलेगा। बुद्धदेव भट्टाचार्य ने उद्योग लाने का प्रयास किया, लेकिन किसानों से जबरन जमीन का अधिग्रहण किया गया जो गलत था। इसी प्रकार सिंगूर में टाटा के नैनो कारखाना के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने आंदोलन किया था, वह भी एक जिद थी। राजनीतिक पार्टियों के जिद्दी रवैये के कारण किसानों के साथ गलत व्यवहार हुआ और उद्योग जगत में भी बंगाल के प्रति छवि खराब हुई।’

पाठ्यपुस्तक में शामिल होगा सिंगूर आंदोलन
सिंगूर मामले में अपने हक में फैसला आने के बाद से तृणमूल कांग्रेस ने दो सितंबर को राज्यभर में सिंगूर दिवस मनाया। गौरतलब है कि उसी दिन परिवहन हड़ताल भी थी, लेकिन यहां हड़ताल का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। तृणमूल कांग्रेस की ओर से राज्य के प्रत्येक ब्लॉक, नगरपालिका, नगर निगम सहित अन्य क्षेत्रों में सिंगूर दिवस मनाया गया। उधर, सिंगूर के भी गोपालनगर, सानापाड़ा, खासेड़बेड़ी, पूवार्पाड़ा, जयमोल्ला, जंमपुर, घोषपाड़ा, बाजेबेलिया व बेड़ाबेड़ी तक जुलूस निकाले गए। इतना नहीं, राज्य सरकार ने सिंगूर आंदोलन को पाठ्यपुस्तक में शामिल करने की घोषणा की है।

बहरहाल, सिंगूर की स्थिति जस की तस है। किसान दस साल से बर्बाद हैं और उनके सामने सरकारी उत्सव व समारोह करना उन्हें मुंह चिढ़ाने जैसा है। सिंगूर को दो बार सुनहरा ख्वाब दिखाया गया। दस साल पहले इलाके में लखटकिया कार कारखाना लगाने के नाम पर और अब किसानों की जमीन वापसी के नाम पर। ‘आबाद होने से पहले ही उजड़ गया चमन’ जुमले की तर्ज पर सिंगूर सिर्फ बंगाल का एक न भुलानेवाला इतिहास बन कर रह गया है।’