राजीव थपलियाल । देश के एक और राज्य से कांग्रेस का शासन चला गया। बहुमत के दावे के बावजूद हरीश रावत अपनी सरकार नहीं बचा सके। राज्यपाल के निर्देश पर उन्हें 28 मार्च को विधानसभामें बहुमत साबित करना था लेकिन एक दिन पहले ही उनकी सरकार बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। अरुणाचल प्रदेश के बाद उत्तराखंड से कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। अब अटकल यह लगाई जा रही है कि अगला नंबर मणिपुर का होगा या हिमाचल प्रदेश का। अरुणाचल, उत्तराखंड और मणिपुर में एक समानता है। तीनों ही राज्यों में मुख्यमंत्री विधायकों के असंतोष का सामना कर रहे हैं। हिमाचल में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह आय से अधिक संपत्ति के विवाद में फंसे हैं। हो सकता है उनका नंबर पहले आ जाए। पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व इस आसन्न संकट को भांप ही नहीं पाया। दोनों राज्यों का मामला विधानसभासे निकल अदालत में पहुंच गया है।

इन सभी मामलों में कांग्रेस की मुश्किल बढ़ाने में भाजपा की सीधी और साफ भूमिका है। कांग्रेस इसे जनतंत्र की हत्या बता रही है तो भाजपा का कहना है कि कांग्रेस अपना घर नहीं संभाल पा रही है। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने नाम लिए बिना राहुल गांधी पर हमला किया है। उनका कहना है कि कांग्रेस की इस हालत का कारण कमजोर नेतृत्व है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में संवैधानिक व्यवस्था चरमरा गई थी। इन सभी राज्यों में विधायक दल में समस्या है यह बात किसी से छिपी नहीं है। राहुल गांधी से विधायकों की बात छोड़िए, बड़े नेताओं की भी मुश्किल से मुलाकात होती है। दरअसल इसके लिए उनके आसपास के लोग ज्यादा जिम्मेदार हैं जो लोगों को राहुल गांधी तक पहुंचने ही नहीं देते।

कांग्रेस की सरकारों के साथ जो हो रहा है उसे भाजपा और कांग्रेस की राज्यसभाकी लड़ाई के विस्तार के रूप में भी देखा जा सकता है। कांग्रेस ने राज्यसभामें सरकार को नाकों चने चबवा दिए हैं। सरकार के सामने दो रास्ते थे। एक कांग्रेस के सामने समर्पण कर दे या फिर लड़ाई को संसद से बाहर ले जाए। भाजपा ने कांग्रेस की कमजोर कड़ियों पर ध्यान केंद्रित किया। राज्य नेतृत्व से पार्टी कार्यकर्ताओं व विधायकों की नाराजगी, केंद्रीय नेतृत्व की उदासीनता और सत्ता का लोभ उनसे अपनी ही पार्टी के विरोध में काम करवा रहा है। भाजपा न केवल इसे हवा दे रही है बल्कि इसका भरपूर लाभ भी उठा रही है। मई 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे तो कांग्रेस ग्यारह राज्यों में सत्तारूढ थी। कुछ सरकारें मतदाता ने बदल दीं और कुछ विधानसभामें बदल रही है। अब कांग्रेस शासित राज्यों की संख्या सात रह गई है। इनमें से दो केरल और असम में विधानसभाचुनाव हो रहे हैं। दोनों राज्यों में कांग्रेस के लिए सत्ता में वापसी का रास्ता बड़ा कठिन है।

अरुणाचल की तुलना में उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार की मुश्किल ज्यादा बड़ी थी क्योंकि राष्ट्रपति शासन के औचित्य पर बहस से पहले सवाल है कि राज्य का बजट पास हुआ या नहीं। विधानसभाअध्यक्ष ने 27 मार्च को कांग्रेस के नौ बागी सदस्यों की सदस्यता रद्द कर दी तो 18 मार्च को ये सदन के सदस्य थे। उन्होंने यह भी माना है कि विनियोग विधयेक पर मत विभाजन की मांग की गई थी लेकिन उन्होंने इसे ध्वनिमत से पास कराया। इससे निष्कर्ष तो यही निकलता है कि विनियोग विधेयक पास नहीं हुआ। ऐसी हालत में सरकार तो उसी दिन गिर गई। लेकिन यह बात समझना मुश्किल है कि राज्यपाल ने इस मुद्दे को विधानसभाअध्यक्ष और मुख्यमंत्री के सामने क्यों नहीं उठाया।

अब सवाल है कि आगे क्या होगा। इसका पहला दबाव तो अदालत से मिलेगा। लेकिन उससे पहले संसद के बजट सत्र के दूसरे हिस्से में सदन का सामना करने के लिए मोदी सरकार को तैयार रहना होगा। राज्यसभामें इस प्रस्ताव को गिरने से बचाने के लिए भाजपा के पास अरुणाचल वाली नीति के अलावा ज्यादा विकल्प नहीं हैं। उसे 25 अप्रैल से पहले सरकार बनाने का प्रयास करना पड़ेगा। सरकार बनाने की कोशिश में कम फजीहत नहीं होने वाली। अब गेंद भाजपा के पाले में है।

रावत के लिए शुभ नहीं रहा 9 का आंकड़ा

– उत्तराखंड में राष्टÑपति शासन लागू हुआ 27 मार्च को, योग 2+7=9

– सरकार अल्पमत में आई 18 मार्च को, योग 1+8=9

– सरकार का आखिरी बजट सत्र शुरू हुआ 9 मार्च को

– कांग्रेस के बागी विधायक हैं 9

– सदन में बीजेपी के विधायक थे 27, योग 2+7=9

– प्रदेश में धारा 144 लागू थी, योग 1+4+4=9

– उत्तराखंड राज्य भी बना था 9 तारीख को।

यों गए हरीश रावत

भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य धनसिंह रावत कहतें हैं कि बोया पेड़ बबूल का आम कहां से होय। जो हरीश रावत ने विजय बहुगुणा के लिए किया था, वहीं उन्हें भी मिला है। हरीश रावत ने विजय बहुगुणा के कार्यकाल के दौरान रोज नए सियासी मुद्दों पर पत्र लिखकर अपनी ही सरकार से जबाव मांगे। हरीश रावत अपने समर्थक विधायकों के साथ विद्रोही भूमिका में रहे। हरीश रावत समर्थकों की बहुगुणा हटाओ-हरीश लाओ मुहिम से भयभीत कांग्रेस हाईकमान ने आखिर विजय बहुगुणा के स्थान पर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बना दिया। हरीश रावत ने जो किया, बहुगुणा और उनके समर्थकों ने वैसा हंगामा तो नहीं किया, लेकिन 18 मार्च 2016 को एक ही बार में हरीश रावत को चारों खाने चित्त करने की पटकथा लिख दी। कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत सदैव मुख्यमंत्री विरोधी भूमिका में ही रहे, चाहे विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री रहे हों या फिर हरीश रावत। मुख्यमंत्री पद गंवाने के बाद हरीश रावत ने कहा भी कि हरक सिंह रावत हमेशा लालच से भरे रहे। हर काम में पैसा देखते थे।

खैर! बहुगुणा ने बगैर किसी शोर-शराबे के अपने गुट के विधायकों के साथ हरक सिंह रावत को लेते हुए भाजपा से गुप्त समझौता कर लिया। विधानसभामें बजट सत्र के दौरान 18 मार्च को विपक्ष ने जब विनियोग विधेयक पर स्पीकर से मतदान की मांग करते हुए हंगामा किया तो बहुगुणा और उनके आठ साथी भाजपा के पाले में जा खड़े हुए। हालांकि बहुगुणा के कुछ सहयोगियों ने इस पाला बदल से ऐन मौके पर मुंह मोड़ लिया। भाजपा-कांग्रेस के हंगामे के बाद बहुगुणा और हरक सिंह रावत समेत 9 विधायक 26 बीजेपी विधायकों के साथ एक ही बस में राजभवन पहुंचे, जहां उन्होंने बजट फेल होने की जानकारी देते हुए सरकार के अल्पमत में आने की बात कही। फिर सभी 35 विधायक भाजपाइयों के साथ चार्टर्ड विमान में बैठकर दिल्ली निकल गए। इसके अलावा इन 35 विधायकों ने स्पीकर और डिप्टी स्पीकर पर भी अविश्वास जताया था। 19 मार्च को मुख्यमंत्री राजभवन गए, जहां राज्यपाल ने उन्हें 28 मार्च को बहुमत साबित करने को कहा।

मुख्यमंत्री हरीश रावत की अल्पमत सरकार को लेकर छिड़ी चर्चाओं के बीच 19 मार्च को विधानसभा स्पीकर ने 9 विधायकों को दलबदल कानून के तहत नोटिस देते हुए जवाब के लिए 26 मार्च तक का समय दिया। इस नोटिस पर भी सवाल उठे। वरिष्ठ भाजपा नेता बृजभूषण गैरोला कहते हैं कि एक तरफ विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने बजट को पास मान लिया तो फिर विधायकों ने व्हिप का उल्लघंन नहीं किया और यदि विधायकों ने सदन में पाला बदला तो फिर बजट पास नहीं हुआ। किसी भी सरकार का बजट पास न हो तो उसे भी मान लिया जाता है। हालांकि कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष जोत सिंह बिष्ट ने कहा कि उनकी सरकार का बजट पास हुआ। बागी विधायकों के विधानसभा में ही खुलेआम विपक्षी दल के साथ मिल जाने की जानकारी मिलने पर पार्टी सचेतक की मांग पर स्पीकर ने नोटिस जारी किया।

होली की छुट्टियों के बाद बागी विधायकों ने हाईकोर्ट में स्पीकर के नोटिस के खिलाफ याचिका डाली, जो खारिज हो गई। हरीश रावत इसे अपनी जीत के रूप में देख रहे थे कि 26 मार्च को दिल्ली में हरक सिंह रावत और सुबोध उनियाल ने एक पे्रस कांफ्रेंस में हरीश रावत द्वारा विधायकों की खरीद फरोख्त का स्टिंग जारी कर दिया। स्टिंग ने हरीश रावत के आत्मविश्वास पर हमला किया और वे करीब-करीब शहीद की भूमिका में आ गए। उन्होंने तत्काल कहा कि वे जनता के बीच जाएंगे।

राज्यपाल की रिपोर्ट और सीएम के स्टिंग ने केंद्र सरकार को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने का आधार दे दिया। 27 मार्च को उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने की जानकारी देते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि राज्य में अल्पमत की सरकार बार-बार संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन कर रही थी। देश के इतिहास में पहली बार कोई मुख्यमंत्री सीधे विधायकों की खरीद-फरोख्त करता दिखा। राज्य में शासन व्यवस्था की विफलता की आशंका के चलते राष्ट्रपति को सिफारिश भेजी गई थी, जिसे उन्होंने मंजूर कर लिया।

हरीश का प्लान फेल

मुख्यमंत्री हरीश रावत के हावभाव बता रहे थे कि वे कुछ ऐसा करेंगे, जिससे जनता की सहानुभूति उनकी ओर हो। वे बहुमत साबित करने से ऐन पहले 13 दिन की अटल सरकार की तरह या भाजपा नेता राजेश्वर प्रसाद पैन्यूली की मानें तो केजरीवाल की तरह इस्तीफा देकर चुनाव की सिफारिश करने वाले थे। इससे उनकी सरकार को अस्थिर करने का आरोप भाजपा पर लगता और सहानुभूति में हरीश रावत को फायदा मिलता। लेकिन स्टिंग ने उनका सारा खेल बिगाड़ दिया। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी कहते हैं कि हार्स ट्रेडिंग करते पकड़े गए हरीश रावत का खेल अब खत्म हो चुका है। अपनी सरकार बचाने के लिए विधायकों की खरीद-फरोख्त करने वाले से पहले तो जनता उनके भ्रष्ट आचरण के बारे में सवाल करेगी। भाजपा के पूर्व महामंत्री सुरेश जोशी कहते हैं कि हार्स ट्रेडिंग करते मिले हरीश रावत और उनके समर्थकों को जनता के सवालों का जवाब देना बेहद मुश्किल होगा।

मोदी, शाह, बहुगुणा, हरक पर बरसे हरीश

राष्ट्रपति शासन लगने को मुख्यमंत्री ने सरकलम करने की संज्ञा दी। उन्होंने कहा कि भाजपा पहले से ही सरकार गिराने का षड्यंत्र रच रही थी। भाजपा की केंद्र सरकार पहले दिन से ही मेरी सरकार और मेरे खून की प्यासी थी। भाजपा रावत सरकार के अच्छे कामो से बेचैन थी। भाजपा की बेचैनी और बढ़ गयी जब राज्य का बजट पेश किया गया जिसमें गरीबों, गांवों, किसानों महिलाओं, बेरोजगारों , नौजवानों व सभीवर्गों को फायदा पहुंचाने की बात थी। भाजपा को कांग्रेस सरकार का बजट रास नही आया। रावत ने कहा की हमें 28 मार्च को अपना बहुमत साबित करना था लेकिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह की सरकार ने एक दिन पहले ही सूबे में राष्ट्रपति शासन लगा दिया। ये सरकलम सरकार का नहीं है बल्कि जनता का, संविधान का और अंबेडकर के उसूलों का कत्ल हुआ है।

बागी हरक सिंह रावत पर भड़ास निकालते हुए हरीश रावत ने कहा कि वे जब भी कोई बात करते तो लालच की बात करते थे। हरीश रावत ने कहा कि मेरे जीवन का दुखद पहलू है कि मुझे ऐसे मंत्री के साथ काम करना पड़ा, जो हर समय हर जगह धन देखता था। साथ ही उन्होंने हरक सिंह रावत की संपत्तियों पर सवाल उठाते हुए स्टिंग बनाने वाले पत्रकार पर भी हमला बोला। उन्होंने कहा दोनों की सम्पति की जाँच अब राज्यपाल कराएं।

हरीश रावत ने कहा कि अब चुनाव के बाद कांग्रेस पूर्ण बहुमत में आएगी। कोई हरक और विजय बहुगुणा पैदा नहीं होगा जो कांग्रेस की सरकार बनने से रोक सके। अभी कोर्ट का रास्ता खुला है, लेकिन जनता के बीच जाना ज्यादा पसंद करूंगा। उत्तराखंड के लोगों को बताऊंगा कि मोदी ने सरकार की ‘हत्या’ इसलिए करवाई कि इसका मुख्यमंत्री गांव की, गरीब की बात कर रहा था।

अभी एक टूट और तय

राष्ट्रपति शासन लगने के बाद राज्य के सियासी समीकरण बदलने तय हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही के विश्वस्त सूत्र बता रहे हैं कि कांग्रेस की स्थिति ठीक नहीं होने के कारण अब सरकार के गठबंधन में टूट होनी तय है। कांग्रेस की यह टूट भाजपा के पाले में फायदे के रूप में बताई जा रही है। इस संभावित टूट में विजय बहुगुणा अहम किरदार निभाने वाले हैं। बताया गया कि कांग्रेस से पहले सतपाल महाराज टूटकर आए, फिर नौ बागी विधायक और अब कुछ और लोग बीजेपी में आने के लिए संपर्क में हैं।

स्पीकर और राज्यपाल की भूमिका पर सवाल

विधानसभा स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल की ओर से बागी विधायकों को नोटिस भेजने पर सवाल उठे हैं। उपनेता प्रतिपक्ष मदन कौशिक ने स्पीकर पर विरोधाभासी कदम उठाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि विपक्ष बजट पर मतदान की मांग कर रहा था, लेकिन स्पीकर ने नहीं माना। इसके उलट 35 विधायकों के बजट का विरोध करने के बावजूद स्पीकर ने बजट को ध्वनिमत से पारित बता दिया। दूसरी ओर स्पीकर ने अपनी पार्टी के नौ विधायकों को बजट में सरकार के खिलाफ जाने का नोटिस भी थमा दिया। कोई एक ही बात सही होनी चाहिए। साथ ही कौशिक ने कहा कि भाजपा ने स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास जता दिया तो कुंजवाल अपना अधिकार खो चुके थे। हालांकि सारे प्रकरण में कुंजवाल ने कहा उन्होंने कानून के हिसाब से अपने अधिकारों का इस्तेमाल किया। इस पर बागी विधायक सुबोध उनियाल ने सीधे कहा कि जो स्पीकर मुख्यमंत्री के साथ डांस करता हो, उसकी निष्पक्षता पर विश्वास किया भीकैसे जा सकता था।

केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेतली ने भी स्पीकर की भूमिका पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि बीजेपी के एक विधायक के पार्टी विरोधी कार्य करने की सूचना देने के बाद भी स्पीकर ने उसका नोटिस तक नहीं लिया, इसके विपरीत कांग्रेस ने उस भाजपा विधायक को सरकारी पद पर बैठा दिया। स्पीकर को यह सब नहीं दिखा लेकिन जब कांग्रेस के विधायकों ने सरकार पर उंगली उठाई तो उन्हें नोटिस थमा दिया।

इस प्रकरण में राज्यपाल केके पॉल की भूमिका पर ही सवाल उठाया गया। पहले भाजपाइयों ने तो अंत में हरीश रावत ने। 18 मार्च को 35 विधायकों की परेड के बावजूद राज्यपाल ने हरीश रावत को लंबी अवधि का समय 28 मार्च तक का बहुमत साबित करने को दिया। जबकि जानकारों का कहना है कि राज्यपाल को अल्पमत की सरकार की जानकारी मिलते ही सरकार बर्खास्त करने की सिफारिश कर देनी चाहिए थी। बाद में हरीश रावत ने भी आरोप लगाया कि केंद्र सरकार की धमकी मिलने के बाद राज्यपाल ने राज्य में राष्टÑपति शासन लगाने की सिफारिश की।

अकेले चले तो अकेले भुगता

हरीश रावत पर मंत्रिमंडल के सदस्यों की अनदेखी का आरोप लगातार लगता रहा। वे अकेले चले तो सबकुछ अकेले ही मैनेज करने की जिम्मेदारी भी मिली। संकट में घिरे हरीश रावत को हाईकमान का दो टूक निर्देश रहा कि खुद इस मुसीबत से निकलो। राज्य में भी इंदिरा हृदयेश के सिवा कोई उनके साथ बचाव में नहीं आया। इंदिरा भी संसदीय कार्यमंत्री होने के नाते जबरन उनके बचाव में थीं। अन्यथा बताया जा रहा है कि बागी विधायकों का नोटिस दो बार रोका गया। मंत्रिमंडल के कुछ सदस्यों ने योजना बनाई कि नाराजगी हरीश रावत से है। हरीश को हटाकर इंदिरा को सीएम बनाते हैं तो बागी लौट आएंगे। लेकिन हरीश गुट ने इससे इनकार कर दिया, जिसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस सरकार चली गई। इसलिए आने वाले दिनों में इंदिरा भी हरीश रावत पर सियासी खुन्नस उतारने से नहीं चूकेंगी। इसके अलावा दिल्ली से भी कोई बड़ा नेता हरीश रावत को बचाने के लिए जूझता नजर नहीं आया।

राज्य के लोगों ने अच्छा नहीं माना

सूबे के सियासी हालातों पर लोगों में कड़ी प्रतिक्रिया है। लोग सत्ता के लालच में राज्य के विकास के बजाय कुर्सी का खेल खेल रहे नेताओं के प्रति आक्रोशित हैं। सोशल मीडिया में भाजपा हो या कांग्रेस अथवा यूकेडी-बसपा सभी के लिए लोग अभद्र भाषा और कार्टून बनाकर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं।