प्रियदर्शी रंजन

ब्रजेश ठाकुर आज भले ही देश के सबसे बदनाम लोगों में शुमार हो गया हो लेकिन बालिका गृह कांड से पहले शासन-प्रशासन से गठजोड़ की बदौलत उसने अकूत दौलत कमाई और राजनीति में भी नाम कमाया। कह सकते हैं कि शासन-प्रशासन के दोस्तों के बूते ही उसने वह सब अर्जित किया जो उसके लिए कलंक बन गया। ‘प्रात: कमल’ नाम से उसका अपना अखबार भी है जिसे उसके पिता ने शुरू किया था। इसके जरिये भी उसने शासन-प्रशासन में खूब पैठ बढ़ाई। इस कांड के उजागर होने से पहले न तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को उसके साथ मंच साझा करने पर एतराज था और न ही मुख्यमंत्री रहते लालू यादव को। कई मंत्रियों से उसके सीधे संबंध थे तो कई आईएएस, आईपीएस अधिकारी उससे दोस्ताना संबंध रखते थे। सरकारी कार्यक्रमों में उसे अतिथि बनाया जाता था। राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष व सदस्य ब्रजेश के घर मेहमानबाजी का लुत्फ उठाते थे। इस कांड के उजागर होने से कुछ दिनों पहले ही राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष दिलमणी देवी और आयोग की अन्य सदस्यों ने बतौर मेहमान ठाकुर के भोज का लुत्फ उठाया था। यह बात और है कि आज सभी उससे कन्नी काट रहे हैं और पीड़ित बच्चियों के साथ खड़े होने की दुहाई दे रहे हैं।
कभी ब्रजेश से घरेलू संबंध रखने वाली पूर्व मंत्री मंजू वर्मा के लिए वह अब मुसीबत बन चुका है। उसकी वजह से ही मंजू वर्मा को समाज कल्याण मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा। इस कांड में मंजू वर्मा के पति चंदेश्वर वर्मा की संदिग्ध भागीदारी की बात लगातार कही जा रही है। चंदेश्वर वर्मा पर आरोप है कि वह बार-बार मुजफ्फरपुर के बालिका गृह जाता था। बच्चियों के यौन शोषण में वह भी शामिल है। मंजू वर्मा के इस्तीफे के बाद अब कभी भी चंदेश्वर वर्मा की गिरफ्तारी हो सकती है। विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा पर भी ब्रजेश के साथ संबंध होने के साथ कुछ संगीन आरोप लगाए थे जिससे क्षुब्ध मंत्री ने तेजस्वी को कानूनी नोटिस भेजने बात कही है। कई और मंत्रियों और रसूखदारों के साथ ब्रजेश की तस्वीर को भी गैरवाजिब गठजोड़ के तौर पर देखा जा रहा है। दरअसल, ब्रजेश ठाकुर ने समाजसेवा की आड़ में जो साम्राज्य खड़ा किया वह एनजीओ और अखबार के माध्यम से राजनेताओं और शासन-प्रशासन के अधिकरियों के सहयोग से ही फला फूला। एनजीओ की आड़ में ब्रजेश ने जिस्म का जो काला कारोबार शुरू किया उसने उसे दौलत की नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया। क्या मंत्री क्या संतरी, सब उसके इशारे पर नाचने लगे। कई आईएएस और आईपीएस से घनिष्ट संबंध रखने वाले ब्रजेश का पटना स्थित सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के प्रधान कार्यालय में वही रुतबा था जो यहां पदस्थापित बड़े अधिकारियों का था। पीआरडी के तत्कालीन प्रधान सचिव ब्रजेश मेहरोत्रा से उसके घनिष्ट संबंध थे। इसे एक घटनाक्रम से भी समझा जा सकता है। 16 नवंबर, 2016 को सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा प्रेस दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम में अलिखित तौर पर उसे विशिष्ट अतिथि के रूप में बुलाया गया। ब्रजेश मेहरोत्रा की मौजूदगी में ब्रजेश ठाकुर ने ही दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन किया। पीआरडी में उसकी इतनी पहुंच थी कि छोटे अखबार तो दूर बड़े अखबार भी सरकारी विज्ञापन के लिए उससे ही संपर्क करते थे।
53 वर्षीय ब्रजेश ने वर्ष 1995 में महज 30 साल की उम्र में कुढ़नी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा जिसमें उसे कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद वह बाहुबली आनंद मोहन की पार्टी पीपुल्स पार्टी में शामिल हो गया। वर्ष 2000 में उसने इसी पार्टी के टिकट पर दोबारा कुढ़नी विधानसभा सीट से पर्चा भरा। इस चुनाव में भी वह 16 हजार मतों से हार गया। वर्ष 2001 में उसने जिला परिषद का पर्चा भरा। उसका सीधा मुकाबला इलाके के बाहुबली शाह आलम शब्बू से था जो फिलहाल मुजफ्फरपुर के नवरुणा हत्याकांड में सलाखों के पीछे है। शब्बू ने राजनीतिक दुश्मनी निकालने के लिए ब्रजेश पर उसके गांव पचदही में एके-47 जैसे घातक हथियार से हमला किया था। सैकड़ों बुलेट फायर होने के बावजूद ब्रजेश बाल-बाल बच गया मगर वह चुनावी हार नहीं बचा पाया। मुजफ्फरपुर के राजनीतिक मामलों के जानकार प्रमोद कुमार के मुताबिक, ‘अपनी चुनावी असफताओं को भुलाकर ब्रजेश ने वर्ष 2005 के बाद भाजपा और जदयू के लिए काम करना शुरू कर दिया। वर्ष 2013 में ब्रजेश के एनजीओ को बालिका गृह चलाने का ठेका मिलने के पीछे उसका भाजपा-जदयू के करीब होना ही था। इसके लिए सरकार उसे हर साल 30 लाख रुपये का भुगतान करती थी।’

पिता ने भी फैलाया था मकड़जाल
ब्रजेश के पिता राधामोहन ठाकुर के बारे में यह बात कही जाती थी कि उन्होंने समाजसेवा को कारोबार के तौर पर चलाया। वे अपने समय में मुजफ्फरपुर के सबसे रसूखदार लोगों में से एक थे। वरिष्ठ पत्रकार देवांश मिश्रा कहते हैं कि राधामोहन ठाकुर ने अखबारी कागज का कारोबार शुरू किया था। जो कागज सरकार की ओर से रियायती दर पर हासिल होता था उसे बाजार में अन्य छोटे-बड़े अखबारों को ऊंचे दाम पर बेच कर बड़ा मुनाफा कमाया जाता था। बाद में जब सरकार की ओर से रियायती कागज पर सख्ती बढ़ी तो ब्रजेश ने विज्ञापन से कमाई का रास्ता चुना। बालिका गृह कांड में ब्रजेश के कारनामों को अंजाम देने वाली उसकी सबसे बड़ी राजदार मधु भी राधामोहन ठाकुर की ही खोज थी।

कौन है मधु?
मुजफ्फरपुर के बालिका गृह के संचालन की जिम्मेदारी ब्रजेश ने मधु को सौंप रखी थी। मधु ही वहां की बच्चियों को जोर जबरदस्ती यौन पिपासुओं के सामने परोसने के लिए तैयार करती थी। जो लड़की इसके लिए तैयार नहीं होती थी उसकी पिटाई भी की जाती थी। पीड़ित लड़कियों के बयान और बालिका गृह से जुड़े अन्य लोगों के मुताबिक, यौन शोषण कराने में मधु मुख्य किरदार निभाती थी। मुजफ्फरपुर और पटना से लेकर नई दिल्ली तक में अधिकारियों और नेताओं के पास लड़कियों को पहुंचाने में मधु की भूमिका अहम थी। उसके बारे में मिल रहे अहम सुराग ने पुलिस को चौंका दिया है। खबरें मिल रही हैं कि सीबीआई ने नेपाल के वीरगंज में उसे गिरफ्तार कर लिया है। सीबीआई की जांच में भी मधु अहम होगी। ब्रजेश की मदद से मधु के तार भी सियासी और प्रशासनिक महकमों में दूर तक फैले थे। ठाकुर की गैर मौजूदगी में वही उसके एनजीओ सेवा संकल्प एवं विकास समिति का कामकाज भी देखती थी। वकालत की पढ़ाई कर चुकी मधु को टेंडर हथियाने वाली महिला के तौर पर भी जाना जाता है।
वही वो राजदार है जो पिछले 30 साल से ब्रजेश के सबसे नजदीक रही है। मधु की जिंदगी कठिनाइयों के बीच गुजरी। पिता का साया जल्दी उठने के बाद वह अपनी मां के साथ मुजफ्फरपुर के चर्चित चतुर्भुज स्थान में रहने लगी जो रेड लाइट एरिया है। नब्बे के दशक में ब्रजेश और मधु करीब आए। तब ब्रजेश की शादी नहीं हुई थी। उसे पहचान दिलाने के लिए चतुर्भुज स्थान में ही वामा शक्ति वाहिनी नाम से ब्रजेश ने एक और एनजीओ बनाया और मधु को इसका निदेशक बना दिया। मधु को लेकर ब्रजेश का पारिवारिक जीवन भी खतरे में रहा। कई बार उसे लेकर ब्रजेश की पत्नी ने झगड़ा भी किया।