विजय माथुर

अपने मन की करने के मामले में वसुंधरा राजे की बराबरी भाजपा का शायद ही कोई क्षत्रप कर सके? पिछले अप्रैल माह में जब भाजपा केन्द्रीय नेतृत्व ने उपचुनावों की पराजय से खफा होकर वसुंधरा राजे के सर्वाधिक भरोसेमंद प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी को हटाया था तो उनकी जगह लेने के लिए नए शख्स की राजनैतिक तस्वीर सत्तर दिनों तक धुंधली ही बनी रही। प्रदेश अध्यक्ष पद पर अपनी पसंद का नेता बैठाने की जद्दोजहद में दिल्ली में डेरा डाले रहे मुख्यमंत्री के समर्थकों को राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल ने समझाने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि, ‘प्रदेशाध्यक्ष कौन होगा? इसका फैसला तो पार्टी अध्यक्ष अमित शाह करेंगे।’ लेकिन मामले का पटाक्षेप इतनी आसानी से नहीं हो पाया, क्योंकि इसी अखाड़े में चुनावी टिकट बंटवारे का दंगल होना था। बेशक केन्द्रीय नेतृत्व ने अपने पसंदीदा नेता गजेन्द्र सिंह शेखावत का नाम पाले में फेंककर तसल्ली कर ली कि, ‘शेखावत के अलावा कोई और नाम कबूल नहीं।’ बावजूद इसके इस मुद्दे पर वसुंधरा राजे आत्मविश्वास से कितनी लबरेज थीं? इसका मुजाहिरा तो उन्होंने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात के बाद मीडिया के सवाल पर कर दिया था कि, ‘आप मेरा चेहरा देखिए…’ इसके साथ ही राजे मुस्कुराते हुए निकल गर्इं। आखिरकार पार्टी संगठन के नेता व सांसद भूपेन्द्र यादव, किरोड़ी लाल मीणा और ओम माथुर के साथ लंबे बहस-मुबाहसों के बाद नए प्रदेश अध्यक्ष का नाम मदनलाल सैनी पर आकर टिका, भले ही यह नाम कभी सुर्खियों में ढला हुआ नहीं रहा, लेकिन प्रिंट मीडिया का कयास सही निकला जिसमें कहा गया था कि नया प्रदेश अध्यक्ष जो भी होगा अन्य पिछड़ा वर्ग से होगा।
मदनलाल सैनी की तैनाती कैसे हुई और इनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि क्या है? सूत्रों का कहना है कि प्रदेश अध्यक्ष को लेकर उत्पन्न विवाद पर भाजपा नेता ओम माथुर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर हस्तक्षेप का आग्रह किया था, साथ ही मशविरा दिया था कि अगर गजेन्द्र सिंह शेखावत मुख्यमंत्री को स्वीकार्य नहीं तो किसी और की नियुक्ति की जाए। नतीजतन भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की बात मानी और शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की जिद छोड़ दी। बहरहाल जो हुआ ओम माथुर के किए हुआ। इसका नतीजा यह भी हुआ कि ओम माथुर की कोशिशों से वसुंधरा राजे के साथ उनके बीच की बरसों की कड़वाहट धुल गई। मदनलाल सैनी की जमीनी हकीकत समझें तो, ‘सैनी को हाल ही में राज्यसभा का सदस्य बनाया गया था। वे संघ परिवार के अग्रिम संगठन भारतीय मजदूर संघ के नेता थे, लिहाजा उन्हें किसी गुट का मानने का सवाल ही नहीं था। लेकिन जनाधार की बात करें तो उनके अपने घर शेखावटी में भी उन्हें कोई नहीं जानता। प्रश्न है कि चुनावी सन्निकटता को देखते हुए क्या भाजपा के पास इतना समय है कि उन्हें जनसंपर्क की मचान पर बिठाने के लिए लोकप्रियता के पायदान पर लाया जाए? जबकि प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका सेनापति की होती है, जब सेना ही उन्हें नहीं जानेगी तो ‘पति’ कैसे बन पाएंगे? सूत्रों का कहना है कि सैनी चुनावों में वोटों को प्रभावित कर पाएं, ऐसी कोई क्षमता उनमें नहीं है। सूत्रों का कहना है कि, फिलहाल तो गजेन्द्र सिंह को नकारने से भाजपा को राजपूत वोट बैंक से हाथ धो लेने के लिए तैयार रहना चाहिए। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि, ‘चुनावी फिजां में प्रदेश अध्यक्ष पद पर वसुंधरा राजे ने सैनी नामक ‘मोहरा’ तो चुन लिया, लेकिन उसमें परनामी जितनी पकड़ भी तो नहीं है? अलबत्ता दंडवत करने के मामले में उन्हें परनामी का लघु संस्करण अवश्य कहा जा सकता है। विश्लेषक कहते हैं कि अभी फौरी तौर पर प्रदेश अध्यक्ष को बूथ कमेटियों पर पकड़ बनानी है, जबकि वे तो इनकी परिभाषा से भी वाकिफ नहीं हैं। प्रदेश के संभागों का दौरा करेंगे तो क्या वहां की राजनीतिक स्थितियां समझे बगैर? विश्लेषक खुलकर कहते हैं, ‘राजे ने अपनी जिद में बड़ा महंगा सौदा किया है। एक मोहरे की खातिर पार्टी नेतृत्व की नाराजगी को न्यौता दे दिया, जो उनके भविष्य के लिए घातक हो सकता है।’
सैनी ने प्रदेश अध्यक्ष का कार्यभार संभालने के साथ जिन बातों की जुगाली की, उन्होंने सबसे पहले पार्टी कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियोंं के बीच अपनी तैनाती की इन शब्दों में पैरवी की कि, ‘‘कोई भी व्यक्ति ‘परफेक्ट’ नहीं होता, क्या फेरबदल पर राष्ट्रहितों को बलि चढ़ा देनी चाहिए?’’ उन्होंने वसुंधरा राजे के प्रति आभार और निष्ठा का प्रदर्शन भी किया कि, ‘जिसका आज है, उसी का राज है…। जाहिर है उन्होंने भविष्यवाणी कर दी कि, चुनावों में वसुंधरा राजे के आज की ही वापसी होगी। भाषण में कुछ परम्परागत जुमले भी थे कि, ‘सरकार को कोसना बंद करो, जो काम सरकार ने किए हैं उन्हें जन-जन तक पहुंचाओ …! तो क्या अब तक सरकार के काम जन-जन तक नहीं पहुंचाए गए थे। कोई उनसे कितनी उम्मीदें रखे? इस बात का खुलासा उन्होंने यह कहते हुए कर दिया कि, ‘मैं किसी पार्टी के लिए नहीं विचार के लिए काम करता हूं, जिस विचार को स्थापित करने में कई पीढ़ियां गुजर गर्इं।’ मदन लाल सैनी को इस ओहदे पर लाने के पीछे संदेश का खुलासा करते हुए वसुंधरा राजे का कहना था, ‘छोटे से कार्यकर्ता को सबसे ऊंचे पद पर पहुंचाने का काम भाजपा ही कर सकती है। खुद सैनी को ही विश्वास नहीं रहा होगा कि वे इस ओहदे पर पहुंच सकते हैं। इस मौके पर टोकरा भर तारीफ के हकदार तो निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी ही रहे।’ राजे ने पता नहीं परनामी की तारीफ की या उनकी फरमाबरदारी पर तंज कसा कि, ‘इस्तीफा देने की बात आई तो परनामी ने एक मिनट भी नहीं लगाया।’
प्रदेश के मुखिया और कार्यकर्ता तथा पदाधिकारियों ने इस नवागंतुक नेतृत्व का अभिवादन तो कर दिया, लेकिन अभी अपनी बैठकों में बिठाकर नवाजा नहीं है, इसीलिए पार्टी के विभिन्न कार्यक्रमों, यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी की अगवानी की तैयारियों में अशोक परनामी तो अपने उसी तेवर से दिखाई देते हैं। लेकिन मदनलाल सैनी जलवाफरोश होते हों, ऐसा कहीं नहीं लगता। अब सवाल उठता है कि पार्टी कार्यकर्ता और जनता मदनलाल सैनी को कितना जान पाते हैं? ऐसे में उन्हें पहचान ही नहीं मिलेगी तो उनकी क्षमता की परख होगी तो कैसे? उधर प्रदेश अध्यक्ष की तैनाती की उठापटक के बीच मुख्यमंत्री खेमे से जुड़े वन एवं पर्यावरण मंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर के पुत्र धनंजय सिंह ने गजेन्द्र सिंह शेखावत के पक्ष में मुहिम शुरू कर दी है। राजनीतिक हल्कों में इसे चुनाव से पहले टिकटों की मारामारी से भी जोड़कर देखा जा रहा है। यह स्थिति उस समय बन रही है, जब केन्द्रीय नेतृत्व विधानसभा चुनावों में मौजूदा 90 विधायकों के टिकट काटने को तैयार बैठा है तो प्रदेश संगठन से 90 फीसदी पदाधिकारियों की भी छुट्टी होनी तय है। मदनलाल सैनी तो यह गणित नहीं समझ पाएंगे, लेकिन राजे क्या इस फेरबदल को हजम कर पाएंगी? अलबत्ता अपनी पसंद का प्रदेश अध्यक्ष तय करने की वसुंधरा राजे की कवायद नई नहीं है। उनके पिछले कार्यकाल में ओम माथुर इस बात को भुगत कर इस्तीफा दे चुके हैं। विश्लेषकों का कहना है कि प्रदेश अध्यक्ष को लेकर चले लंबे एपीसोड ने एक बात तो तय कर दी कि सियासत की जाजम पर वसुंधरा राजे अपनी पसंद को लेकर किसी भी हद तक जा सकती हैं। विश्लेषक कहते हैं कि, ‘क्या ऐसा करके वे अपने ही राजनीतिक भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं कर रही हैं?’ 