प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का गुजरात के कबीर मठों से बहुत पहले से गहरा संबंध रहा है। वह गुजरात के कबीर मठों में अक्सर आते जाते हैं। उनके गांव में भी कबीरदास जी का मठ है। उनकी मां की उस मठ में गहरी आस्था है। प्रधानमंत्री आस्था के साथ ही यहां पर आए थे लेकिन कुछ लोगों को इसमें भी सियासत दिख रही है। कबीर साहेब के अनुयायियों पर मोदी जी के मगहर आगमन पर कुछ असर तो पड़ेगा ही। कबीरपंथी धारा को मानने वालों की संख्या लगभग चार करोड़ है, लेकिन यह आंकड़ा तकरीबन 10 वर्ष पहले का है। इसके अलावा कबीर के विचारों को मानने वाले लोगों की तादाद तकरीबन 40 करोड़ बताई जाती है। अनुयाई वे हैं जो निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार पूजापाठ आदि करते हैं, जबकि विचार मानने वाले वे लोग हैं जो निर्धारित धार्मिक व्यवस्था से परे हैं। कबीर के अनुयायियों की ज्यादा तादाद उत्तर भारत के मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, गुजरात, हरियाणा, राजस्थान पंजाब, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड में है। मगहर में मोदी के आने के बाद से मेरे पास बहुत से कबीर साहेब की गद्दियों के यहाँ से फोन आने लगे हैं। हरियाणा के झज्जर जिले के सुरानी धाम के दया सागर दास और उत्तर प्रदेश के बागपत के घीसा दास गद्दी के देवेंद्र दास के अलावा बड़ौदा, सूरत, बड़ोदरा, अहमदाबाद आदि जगहों से लगातार फोन आ रहे हैं।

गुजरात में कबीर साहेब की परंपरा के कुल 14 बड़े मठ हैं। इसमें बड़ोदरा में तीन मठ बहुत प्रसिद्ध हैं। पानी गेट मठ के महंत कमलेश दास जी हैं। इसके अलावा कबीर मंदिर नबी धरती के महंत महेश्वर दास और अमियारा कबीर मंदिर के महंत चेतन दास आदि लोगों ने कबीर के साखी, सबद, रमैनी का उजियारा वहां पर फैलाया है। अहमदाबाद के कबीर मंदिर घी काटा मठ के महंत शिवराज दास हैं जो वहाँ के समाज में प्रतिष्ठित हैं।
राजस्थान और गुजरात में गोस्वामी संप्रदाय भी कबीर की ही परंपरा में शामिल माना जाता है। चित्तौड़गढ़ के गोस्वामी संप्रदाय के बारे में कहा जाता है कि कबीर साहिब उधर से गुजर रहे थे, तभी गोस्वामी लोग अपने पूरे समाज के साथ उनके साथ शामिल हो गए। लेकिन गोस्वामी संप्रदाय की चार चीजों- तिलक, वेश, जनेऊ और गोस्वामी को नहीं छोड़ने को कहा गया था। यह समाज अपनी चारों चीजों को धारण करते हुए कबीर परंपरा के अनुयाई है। मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ में भी बहुत बड़ा केंद्र है।
छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में दामाखेड़ा में कबीर परंपरा की गद्दी है। यह मठ पारिवारिक परंपरा का है लेकिन इस गद्दी का गहरा संबंध मगहर से है। दरअसल यह माना जाता है कि दामाखेड़ा के धर्मदास साहेब को कबीर दास जी ने मथुरा में दर्शन दिया था। दामाखेड़ा मठ के महंत प्रकाश मणि राम पिछले कुछ वर्षों में आठ बार मगहर आए। दामाखेड़ा से लोग कबीर साहेब की निर्वाण स्थली मगहर आते रहते हैं। वहां की गद्दी से जुड़े कर्नल अमरनाथ सिंह और एक सीएमओ साहब की मगहर से गहरी आस्था है। कई बार आए और यहीं पर रुके भी। मगहर में कबीर मठ के पास तकरीबन 27 एकड़ जमीन है। कबीर समाधि की जमीन बलुआ गांव में और कबीर मजार की जमीन खलीलाबाद के पास करमुआ गाँव में हैं। मगहर में कबीर साहेब की टोपी, चौकी, खड़ाऊं और इकतारा है। कहा जाता है कि यह उन्हीं के समय का है और उन्हीं से जुड़ा हुआ है। कबीर साहिब से जुड़ी अन्य चीजें बनारस स्थित कबीर चौरा चली गईं क्योंकि यहां पर सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था नहीं थी। नरेंद्र मोदी ने यहाँ के प्रति आस्था दिखाई है। अकादमी बन जाने से कबीर साहेब से जुड़ी चीजें सुरक्षित हो जाएंगी।
(हुबहू जस का तस, जैसा कि महंत विचारदास ने बताया)