विजय माथुर

बुलंद इमारत लगने वाली वो कोठी शहर के बाहरी इलाके में थी। वहां बड़ी-बड़ी और भी कोठियां थी। वहां के लोगों का रहन-सहन इतना आत्मकेंद्रित था कि रौनक और चहल-पहल नहीं थी जो शहर के भीतरी भाग की घनी गलियों और बाजारों में थी। उसी कोठी के एक हिस्से में शहर का नामचीन सोनोग्राफी डायग्नोस्टिक सेंटर था। उस सजे-धजे सेंटर में शीशे के पार बने चैंबर में एक थुलथुल और भारी-भरकम शरीर वाला व्यक्ति मसनदी आढ़तिए की तरह बैठा अपने आपको बेहद व्यस्त दिखाने की कोशिश कर रहा था। सेंटर के हालनुमा कमरे में काउंटर पर एक खूबसूरत लड़की बैठी थी जो शायद रिसेप्शनिस्ट थी। उसकी नजर कोठी के मुख्य दरवाजे की तरफ ज्यादा थी। शायद वो यह जानने की फिराक में थी कि अब कोई मरीज तो नहीं आ रहा।
काउंटर के सामने लगी बेंच पर अपनी गर्भवती बीवी के साथ बैठे नौजवान सरदार जी की निगाह शीशे के केबिन की बगल में बने चंैबर की तरफ थी। वो लगातार बेचैनी से पहलू बदल रहे थे। पति की बेचैनी को उनकी बीवी बखूबी समझ रही थी। तभी उसने आंखों के इशारे से तसल्ली देने की कोशिश की। पति ने उसके इशारे को समझा लेकिन उसके चेहरे पर बेचैनी के भाव कम नहीं हुए। तभी बगल वाले केबिन का दरवाजा खुला। पर्दे की ओट से किसी को तलाशती वो शायद लेडी डॉक्टर थी। सरदार जी ने भांप लिया, वो फौरन उस तरफ लपक लिए। लेडी डॉक्टर के चेहरे पर मुस्कुराहट के भाव आए। उन्होंने बुदबुदाते हुए कहा, ‘प्लस’। सरदार जी के चेहरे पर राहत के भाव आए। उनके हाथ कृतार्थ भाव से आसमान की ओर के सजदे में उठ गए ‘धन्न करतार’। उनके मुंह से दुआओं का सैलाब सा निकल पड़ता, अगर लेडी डॉक्टर के लफ्जों ने फौरन उस पर बे्रक न लगाया होता, ‘जल्दी करो और पेशेंट देखने हैं।’ सरदार जी ने फौरन जेब में रखी नोटों की गड्डी निकाली और लेडी डॉक्टर को थमा दी। डॉक्टर ने नोट की गड्डी लेकर फटाक से दरवाजा यूं बंद किया जैसे अब वो कोई अवांछित व्यक्ति हो गया था। अचानक बेरुखी में तब्दील हुए डॉक्टर के रवैये को देख फूल कर कुप्पा हुए सरदार जी ने बीवी को साथ लिया ओर तेजी से बाहर की तरफ बढ़ गए। नतीजा जानने के लिए उत्सुकता से मरी जा रही बीवी को तभी जवाब दिया जब वे उस कोठी से बाहर आ गए, ‘लड़का होगा।’ सरदारनी पुलक भाव से मुस्कुराई और बोली, ‘वाहे गुरू दी मेहर……।’ रिसेप्शन काउंटर पर बैठी लड़की के लिए शायद यह कोई नया दृश्य नहीं था। वो बड़ी हिकारत के साथ बुदबुदाई, ‘एक और बकरा कट गया…..।’
अल्ट्रासाउंड के जरिये गर्भस्थ शिशु का लिंग जानने और बताने का सिलसिला राजस्थान के किसी एक सेंटर का नहीं है। एक तयशुदा रकम की एवज में गर्भस्थ शिशु का लिंग बताने का अमानवीय और दुर्दांत कारोबार राजस्थान में धड़ल्ले से चल रहा है। डॉक्टर के मुखौटे में हैवानियत का कारोबार करने वाले ज्यादा से ज्यादा पैसा बटोरने की चाह में यह गैर-कानूनी धंधा बेखौफ होकर चला रहे हैं। चिकित्सा विभाग को इस अनैतिक धंधे को रोकने के लिए कानूनी अधिकार भी दिए गए हैं लेकिन कार्रवाई करने में उन्हें जैसे लकवा मार गया है। इसे अभिशाप कहें या परंपराओं से उपजी समस्या कि लड़कियों के प्रति आम आदमी की सोच ही इस घृणित धंधे को बढ़ावा दे रही है।
भू्रण परीक्षण पर पाबंदी का कानून बनाने वाला राजस्थान देश का तीसरा राज्य है। इससे पहले पंजाब और महाराष्ट्र में यह कानून लागू हुआ था। जिस समय राजस्थान में यह कानून लागू हुआ था उस समये के चिकित्सा मंत्री राजेंद्र सिंह राठौर ने एक बयान में कहा था कि भू्रण परीक्षण के नाम पर अगर कन्या भू्रणों की हत्या कोख में जारी रही तो इसमें कोई संदेह नहीं कि आगे चलकर सामाजिक संतुलन बुरी तरह गड़बड़ा जाएगा। कानून के तहत भू्रण परीक्षण के दोषी लोगों को कम से कम तीन वर्ष का कारावास और दस हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान है। इतना ही नहीं, लिंग निर्धारण परीक्षण से संबंधित प्रचार-विज्ञापन करने वालों के लिए दस हजार रुपये का जुर्माना मुकर्रर किया गया है। लेकिन किसी को इस कानून का कोई डर नहीं है और हर शहर में यह कारोबार बड़े मजे में चल रहा है। पुख्ता जानकारी के अनुसार लिंग परीक्षण के लिए सोनोग्राफी सेंटर 40 से 50 हजार रुपये तक ले रहे हैं। प्रदेश का चिकित्सा विभाग इस बात का रोना रोता है कि जब तक उन्हें सख्ती बरतने के अधिकार नहीं दिए जाएंगे यह घिनौना कारोबार यूं ही जारी रहेगा। फिलहाल तो अधिकारों और उनके इस्तेमाल में ही काफी झोल है।
प्रसव पूर्व नैदानिक तकनीकी एक्ट की धारा 17 (5) के अनुसार प्रदेश में प्रत्येक ऐसे व्यवसाय का पंजीकरण कराना आवश्यक है जिसमें सोनोग्राफी की जरूरत पड़Þती हो। जेनेटिक क्लिनिक या जेनेटिक लेबोरेट्री के लिए भी यह जरूरी है। आश्चर्य की बात है कि इस व्यवसाय में लगे लोगों की संख्या तो काफी है लेकिन सोनोग्राफी के रजिस्ट्रेशन के लिए केवल गिने-चुने लोगों ने ही आवेदन किया है। चिकित्सा विभाग के अधिकृत सूत्रों के अनुसार प्रसव पूर्व नैदानिक तकनीकी एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए प्रदेश के सभी सोनोग्राफी केंद्रों को पत्र लिखे गए थे लेकिन अधिकांश ने इसका जवाब देना तक जरूरी नहीं समझा। इनमें से ऐसे केंद्रों की संख्या ज्यादा रही जिन्होंने साफ इनकार कर दिया कि वे यह काम करते ही नहीं। जबकि हकीकत में वे यह काम धड़ल्ले से करते आ रहे हैं । चिकित्सा विभाग का कहना है कि जब ये केंद्र बुनियादी सूचना देने में ही कन्नी काटते हैं तो इनके घिनौने कारोबार पर लगाम कैसे लगे? कानून के सामने सबसे बड़ी अड़चन यह है कि सब कुछ होने के बाद भी कोई सबूत नहीं मिल पाता क्योंकि न तो करवाने वाला इसकी गवाही देता है और न ही करने वाला कोई सबूत छोड़ता है। ग्राहक को लिखित में कुछ देने की बजाय सोनोग्राफी सेंटर सांकेतिक शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। चिकित्सा विभाग ने प्रदेश के आठ चिकित्सा केंद्रों को ही गर्भपात कराने की अनुमति दे रखी है लेकिन वास्तव में दो हजार से ज्यादा जगहों पर यह काम चोरी छिपे चल रहा है। नर्स और दाइयां भी अपने-अपने स्तर पर इस अवैध कारोबार में जुटी हैं। जब कोई रंगे हाथ पकड़ा जाता है तो इस तंत्र के सूत्र नए सिरे से खुलने लगते हैं।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान के झुंझनू प्रवास के दौरान ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के मुद्दे पर लोगों की संवेदनाओं को झकझोरा तो लगा कि लोग मुस्कान में घुलती कड़वाहट को समझेंगे। लेकिन जिस समय मोदी झुंझनू में बेटी बचाने के धर्मयुद्ध का आह्वान कर रहे थे, पीसीपीएनडीटी टीम कोटा में लिंग परीक्षण करने वाले डॉक्टर और दलाल को रंगे हाथ दबोच रही थी।
लिंग परीक्षण और गर्भपात के लिए मांगे गए 50 हजार रुपये में से 15 हजार रुपये टीम ने बरामद कर लिए जबकि 35 हजार की रकम लेकर दलाल भाग गया। यह मामला इसलिए भी चकित करता है कि लिंग परीक्षण के मामले में सोनोलॉजिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. मुकुल कोकास को पकड़ा गया था जो इस बात पर मुहर लगाने वाली घटना थी कि जब बाड़ ही खेत को खा रही हो तो कोई क्या करे? डॉ. कोकास के लिए बारां जिले का झोला छाप डॉक्टर आमीन खान दलाली कर रहा था। आमीन खान ही वो दलाल था जो 35 हजार रुपये लेकर भागने में कामयाब हो गया था। सूत्रों का कहना है कि डॉ. कोकास पर निगरानी टीम की बहुत पहले से ही निगाह थी लेकिन रंगे हाथ तो इस बार ही पकड़ा जा सका।
पीसीपीएनडीटी टीम ने लिंग परीक्षण से जुड़ी दाई शांतिबाई को भी रंगे हाथ दबोचा। जेके लोन अस्पताल में दो साल तक एएनएम की ट्रेनिंग ले चुकी शांतिबाई अपने घर पर ही गर्भपात करवाने का कारोबार कर रही थी। उसके सूत्र ऐसे डॉक्टरों से भी जुड़े हुए थे जो इस धंधे में सक्रिय हैं। सूत्र कहते हैं कि इस गैर-कानूनी पेशे में घरेलू दाइयों के तार दूर-दूर तक फैले हुए हैं। अगर इन्हें नहीं दबोचा गया तो प्रदेश में इनका साम्राज्य स्थापित हो जाएगा। सूत्रों का कहना है कि इस धंधे में मोटी रकम तो बिचौलए ही निचोड़ रहे हैं। पिछले तीन महीने में ये तेरहवां मामला है जो पकड़ में आया है। सूत्रों का कहना है कि प्री-कांसेप्शन एंड प्री-मेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक एक्ट (पीसीपीएनडीटी) की कार्रवाई की कामयाबी के पीछे गर्भवती महिलाओं का आगे आना है। पीसीपीएनडीटी सेल के प्रमुख और वरिष्ठ आईएस अधिकारी नवीन जैन का कहना है, ‘राजस्थान में पिछले साल सबसे ज्यादा 42 ऐसे आॅपरेशन चलाए गए जिसमें गर्भवती महिलाएं टीम के साथ इन केंद्रों पर जांच कराने पहुंची और जाल बिछाकर ऐसे गिरोह का भंडाफोड़ किया। बगैर महिलाओं के ऐसी कार्रवाई संभव नहीं है।’ सूत्रों का कहना है कि गर्भपात रैकेट पकड़वाने के लिए अपनी कोख को खतरे में डालने वाली तीन महिलाओं सुनीता राठौर, सीमा राठौर और डोली कंवर की बड़ी भूमिका रही। नतीजतन प्रदेश के कई शहरों में उन रैकेटों पर हाथ डाला जा सका। लेकिन समाजशास्त्रियों का कहना है कि यह जाल इतना व्यापक है कि मामूली संसाधनों से काबू किया जाना बेहद मुश्किल है। राजस्थान में आज लिंगानुपात की स्थिति समझें तो 33 में से 20 जिलों में लिंग अनुपात नीचे जा चुका है।

मेनका के बयान पर बवाल
कुछ महीने पहले केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने लिंग परीक्षण को अनिवार्य किए जाने का बयान देकर भले ही पूरे देश में बहस छेड़ दी हो लेकिन राजस्थान सरकार में चिकित्सा महकमा संभाल चुके राजेंद्र सिंह राठौड़ का कहना है कि राज्य में फिलहाल लिंग परीक्षण की जरूरत नहीं है। प्रदेश में पीसीपीएनडी एक्ट बखूबी लागू है। केंद्रीय आरोग्य मंत्रालय में नेशनल इन्सपेक्शन एवं मॉनिटरिंग कमेटी की सदस्य वर्षा देशपांडे का कहना है कि यह विचार समाज के जमीनी हकीकत के खिलाफ है। हमारे समाज में बेटियों को लेकर जो सोच है वैसे में गर्भ में क्या है इस बात का पता लगते ही महिला के साथ प्रताड़ना शुरू हो जाएगी। गर्भवती की हत्या की आशंका बढ़ जाएगी। क्या सरकार के पास इसे रोकने का इन्फ्रास्ट्रक्चर है? ऐसे में फायदा डॉक्टरों को ही होगा। केंद्र के मौजूदा कानून में संशोधन के लिए मेनका गांधी ने गर्भवती महिला के भू्रण की जांच के बाद रजिस्ट्रेशन कर उसके ट्रैकिंग तक का सुझाव दिया था। रिसर्च सेंटर फॉर वुमेन डेवलपमेंट स्टडी के डॉ. साबू जार्ज का भी यही कहना है कि मेनका गांधी के सुझाव से सिर्फ डॉक्टरों और अस्पताल चलाने वालों को ही फायदा होने वाला है। देश में 50 हजार पंजीकृत सोनोग्राफी सेंटर हैं उनकी ही निगरानी ढंग से नहीं हो पा रही। आखिर कैसे सरकार हर साल गर्भवती होने वाली 29 लाख महिलाओं की ट्रैकिंग कर पाएगी? 