निशा शर्मा

लखनऊ के त्रिवेणीनगर स्थित ब्राइटलैंड स्कूल में गुरुग्राम के रेयान पब्लिक स्कूल जैसी घटना सामने आई है। पहली कक्षा के एक छात्र को छठी कक्षा की छात्रा ने चाकू मार कर गंभीर रूप से घायल कर दिया। घायल छात्र ने कहा है कि स्कूल में एक दीदी प्रिंसिपल से मिलने के बहाने उसको टॉयलेट में ले गई। वहां उसके मुंह में कपड़ा ठूंसा और उसके हाथ पैर बांध दिए और चाकू से गोद दिया। छात्र ने बताया कि दीदी को जब रोकना चाहा तो वह कह रही थी कि तुम नहीं मरोगे तो स्कूल में छुट्टी कैसे होगी?
बच्चे कभी छुट्टी के लिए तो कभी आपसी दुश्मनी निकालने के लिए अपने सहयोगी या अपने से उम्र में छोटे बच्चों पर प्रहार कर रहे हैं। दिल्ली के जीवन ज्योति पब्लिक स्कूल में भी नौंवी कक्षा के छात्र की रहस्यमय मौत ने सोचने पर मजबूर कर दिया है कि बच्चे दिन ब दिन अक्रामक क्यों होते जा रहे हैं? आक्रामकता के कारण बच्चे अपने सहयोगी की जान लेने तक से नहीं हिचकिचा रहे हैं।

दिल्ली की घटना
उत्तर-पूर्वी दिल्ली इलाके के जीवन ज्योति पब्लिक स्कूल में नौवीं कक्षा में पढ़ने वाले तुषार (सोलह साल) की रहस्मय परिस्थितियों में मौत हो गई थी। पुलिस को सीसीटीवी फुटेज में दिखा था कि कुछ छात्र तुषार को पीट रहे हैं। पुलिस के मुताबिक ये एक ‘दादागीरी टाइप’ मारपीट थी। सभी एक ही क्लास के हैं। ये झगड़ा क्लास में शुरू हुआ था और इसके बाद बाहर जाकर तुषार की जिंदगी पर खत्म हुआ।

लखनऊ की घटना
पहली कक्षा के छात्र पर छठी कक्षा की छात्रा ने चाकू से वार किया और जख्मी हालत में उसे टॉयलेट के अंदर बंद कर दिया। उसी वक्त टॉयलेट के पास से गुजर रहे एक अध्यापक ने छात्र की आवाज सुनी। अध्यापक ने दरवाजा खोला तो देखा कि छात्र खून से लथपथ पड़ा है। उन्होंने स्कूल प्रशासन को सूचित किया। आनन-फानन में घायल छात्र को अस्पताल में भर्ती कराया गया। छात्र के बयान के आधार पर छात्रा की पहचान कर ली गई। मामला कानूनी दांव पेच में उलझ गया है, लेकिन जख्मी बच्चे के बयान के मुताबिक इतना तो तय है कि कक्षा एक के बच्चे पर स्कूल के दौरान एक छात्रा ने जानलेवा हमला किया है। मनोवैज्ञानिक बता रहे हैं कि ऐसा बिहैवियर पैटर्न की वजह से हो रहा है। इस दौरान बच्चे का व्यवहार अक्रामक होता जाता है और वह हर ऐसी चीज पर प्रतिक्रिया देता है जो उसे उसके स्वभाव के अनुकूल नहीं लगती।

इन घटनाओं के बाद सवाल उठने लगे हैं कि कोई बच्चा हमलावर कैसे हो सकता है? इसके जवाब में ब्रेन बिहैवियर रिसर्च फाउंडेशन आॅफ इंडिया के चेयरमैन डॉ. आलोक के. मिश्रा कहते हैं कि बच्चे ने ऐसा एकदम से नहीं किया है। अगर ऐसा कहा जा रहा है तो वह गलत है। दरअसल, बच्चे की गतिविधियां और उसका व्यवहार माहौल से अलग होना शुरू हुआ होगा लेकिन उस तरफ किसी ने समय रहते ध्यान नहीं दिया होगा। फिर यही व्यवहार धीरे-धीरे आक्रामकता की ओर बढ़ा होगा। या तो उसके व्यवहार को शह मिली होगी या फिर उसे नजर अंदाज किया गया होगा। इस वजह से उसने इतना बड़ा कदम उठाया है।

बच्चों के इस तरह के व्यवहार के पीछे पारिवारिक कारण भी होते हैं। जैसे जब घर में नया बच्चा आ जाता है तो पहले बच्चे पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता और दूसरे बच्चे को ज्यादा तरजीह दी जाती है। कई बार ऐसा भी होता है कि माता-पिता कोई भेदभाव नहीं करते लेकिन बच्चे को लगता है कि उसे कम प्यार किया जा रहा है और उसके भाई/बहन को ज्यादा प्रेम किया जाता है। इस दौरान कई बच्चों में द्वेष का भाव घर कर जाता है। कई बार बच्चे चिड़चिड़े भी हो जाते हैं और उनके विरोध को कोई समझ नहीं पाता। कुछ समझदार माता-पिता की बात करें तो वे बड़े बच्चे के सामने छोटे की और छोटे बच्चे के सामने बड़े की तारीफ नहीं करते, ताकि उनमें कोई दुर्भावना न पैदा हो।
दरअसल, आज के समय में एकल परिवार का चलन बढ़ गया है और माता-पिता अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते हैं। बच्चे जो कुछ भी सीख रहे हैं वह मीडिया यानी टेलीविजन, फोन, लैपटॉप आदि संसाधनों से सीख रहे हैं। ऐसे में वे किस चरित्र (कैरेक्टर) को खुद से जोड़ लेते हैं या उसे ग्रहण करने लगते हैं, पता नहीं लगता। जिस किरदार से वे जुड़ जाते हैं, उसी के अनुरूप बर्ताव करने लगते हैं। हालांकि उन्हें पता नहीं होता कि वे क्या कर रहे हैं। इनके व्यवहार को समझना बहुत जरूरी है। अगर बच्चा हमला करता है तो मुमकिन है कि उसे यह हिम्मत घर या समाज से ही मिली हो। ऐसा भी संभव है कि उसे अपराध से जुड़े कार्यक्रम पसंद हों और उसके परिवार की ओर से उसकी इस गतिविधि की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया हो।

डॉ. आभा सिंह एक क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट हैं। वह डॉ. आलोक मिश्रा की बातों से इत्तफाक तो रखती हैं लेकिन वह कहती हैं कि किसी भी बच्चे पर कुछ कहने से पहले हमें उसके परिवार और स्कूल को लेकर बात करनी चाहिए। किसी भी बच्चे पर अगर हम इस समय कोई तमगा लगाते हैं तो वह उसके लिए ताउम्र की बात हो जाएगी। इसलिए जरूरी है कि बच्चों से पहले अभिभावकों की काउंसेलिंग की जाए ताकि पता चले कि समस्या की जड़ कहां है।

वहीं आलोक मिश्रा कहते हैं कि लड़कियों की बारह तेरह साल की उम्र ऐसी है, जिसमें उनका प्यूट्री लेबल बदलता है, जिसमें बच्चियों को माहवारी आनी शुरू हो जाती है। इस दौरान कई बार देखने में आता है कि कुछ बच्चियां इस बदलाव को सकारात्मक नहीं ले पाती हैं और कई बार खुद से नफरत करने लगती हैं। ऐसा भी एक कारण हो सकता है इस केस में। यह अवस्था बायो साइकोलॉजिकल डाइमेंशन की अवस्था है, जिसके कारण बच्चों का व्यवहार प्रभावित होता है। इस दौरान कई बार बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित होती है, कई बार बच्चे अक्रामक हो जाते हैं। ऐसे समय में सही दिशा न मिलने पर स्थिति खराब हो जाती है।

माता-पिता और शिक्षकों को सावधान रहना चाहिए अगर
1. बच्चे शारीरिक और यौन हिंसा का शिकार बन गए
2. घरेलू हिंसा हुई थी
3. यदि बच्चा नियमित रूप से टीवी स्क्रीन पर मीडिया में पड़ोसियों से हिंसा देखता है
4. यदि माता-पिता ड्रग्स और अल्कोहल का सेवन करते हैं
5. अगर घर में एक बंदूक है
6. यदि परिवार अच्छी तरह से नहीं है, तो एक तनावपूर्ण अवधि होती है, शादी को तोड़ने की कगार पर है
7. यदि माता एकमात्र माता-पिता है, तो माता-पिता अपनी नौकरी खो चुके हैं
8. यदि मस्तिष्क की चोट होती है

सरकार को चाहिए कि पांच साल के बाद बच्चे की स्कूल में 4डी ब्रेन एनालिसिस की व्यवस्था कराए, ताकि बच्चों की मानसिक स्थिति का अंदाजा आसानी से लगाया जा सके और समय रहते उसका उपचार भी किया जा सके। स्कूलों में 4डी ब्रेन एनालिसिस एक जरूरी डॉक्यूमेंट के तौर पर तय कर दिया जाना चाहिए। जो बच्चा जिस दिशा में जाना चाहता है या सकारात्मक है उसे उस दिशा में प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इससे बच्चे में भटकाव की स्थिति नहीं बनेगी।

स्कूल की अध्यापिकाओं और माता-पिता को भी इस मामले में जानकारी देने की बहुत जरूरत है ताकि बच्चे के स्वभाव को समझा जा सके। सरकार ने स्कूलों में काउंसलर रखने की व्यवस्था की है लेकिन इतने बच्चों पर एक काउंसलर कैसे काम कर सकता है? सरकार और स्कूलों को इस बारे में विचार करना चाहिए।

डब्लयूएचओ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा निर्देशों के मुताबिक, स्वास्थ्य का मतलब शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य है। मानसिक स्वास्थ्य एक बहुत बड़ी समस्या है जिसे हमारे देश में गंभीर बीमारी के तौर पर भी नहीं जाना जाता। डब्ल्यूएचओ ने 2002 में एक नारा दिया था थिंक एंड थैंक। उस समय यह बात हो रही थी कि यह जो मानसिक बीमारी है 2020 तक बच्चों में फैल जाएगी और सबसे बड़ी बीमारी का रूप ले लेगी।

क्यों होता है ऐसा-
घर का खराब माहौल
टीवी और इंटरनेट पर हिंसात्मक कंटेट
बच्चे की परेशानी पर ध्यान न देना

क्या करना चाहिए-
बच्चों की बात सुनें
उनके साथ धैर्य रखें
बच्चों की बातों और व्यवहार पर ध्यान दें
उनका अच्छा और बुरा व्यवहार, आपके ध्यानाकर्षण के लिए होता है
तनाव में सपोर्ट मिलता है तो बच्चे हिंसा का सहारा नहीं लेते हैं

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के मुताबिक, बीते तीन सालों में स्कूलों के भीतर बच्चों के साथ होने वाले शारारिक प्रताड़ना, यौन शोषण, दुर्व्यवहार और हत्या जैसे मामलों में तीन गुना बढ़ोतरी हुई है। बाल जीवन में बढ़ती हिंसा, क्रूरता, गुंडागर्दी, नशेबाजी, आवारापन आने वाले समय में समाज की गंभीर समस्या का रूप ले सकता है। बाल अपराध इस तरह बढ़ रहे हैं कि उनका अनुमान लगा पाना मुश्किल है। लखनऊ के ब्राइटलैंड से पहले गुरुग्राम के रेयान इंटरनेशनल स्कूल में भी इसी तरह की वारदात देखी गई थी, जिसमें एक छात्र ने पीटीएम को टालने के लिए एक मासूम की हत्या कर दी थी, जिसका मामला अभी कोर्ट में है। इस मामले ने सभी राज्यों को सोचने पर मजबूर कर दिया था कि स्कूल में शिक्षा और सुरक्षा को लेकर मानक तय किया जाना चाहिए। हालांकि कई राज्यों ने इसको लेकर गाइडलाइन भी बनाई थी। इसके बाद भी अगर इस तरह के मामले सामने आ रहे हैं तो आने वाले समय में समस्या और गंभीर हो सकती है।