ओपिनियन पोस्ट ब्यूरो

जिस योजना को लेकर दावा किया गया था कि किसान की फसल खराब होेते ही तुरंत मुआवजा मिलेगा। उस योजना का हाल यह है कि मुआवजा मिलेगा भी या नहीं, यही तय नहीं है। हरियाणा में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना अपने उद्देश्य को पूरा करती नजर नहीं आ रही है।

रोहतक के किसान ईश्वर सिंह इस बार धान की रोपाई करते हुए खासे सुकून में थे। हो भी क्यों न, इस बार उन्हें धान खराब होने की चिंता नहीं थी। क्योंकि पहली बार प्रदेश में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू हुई थी। ईश्वर सिंह भी हरियाणा के 6 लाख 96 हजार 454 किसानों में एक था जिसने अपनी फसल का बीमा कराया। यह किसान मान कर चल रहे थे कि अब कोई भी आपदा आ जाए। कम से कम वे नुकसान में नहीं रहेंगे। इन किसानों की यह खुशी छह माह से भी कम समय में तकलीफ में बदल रही है। अभी तक हरियाणा में धान की फसल का क्लेम नहीं मिला है। किसान परेशान है। बीमा कंपनी आज कल में समय निकाल रही है। अब स्थिति यह है कि गेहूं के सीजन में किसानों ने फसल बीमा योजना से तौबा कर ली है। इस बार एक लाख 57 हजार किसानों ने बीमा लिया ही नहीं। जो बाकी किसान रह गए उनका प्रीमियम भी बैंकों के माध्यम से जबरदस्ती काट लिया गया है। युवा किसान संघ के प्रधान प्रमोद चौहान ने बताया कि यदि किसानों को विकल्प दे दिया जाए कि वे बीमा कराएं या नहीं तो 90 फीसदी अपनी फसल का बीमा ही नहीं कराएंगे। यह इसलिए क्योंकि बीमा में पूरी तरह से कंपनी के हित को भी ध्यान में रखा गया है। एक भी जगह किसानों के हितों को देखा भी नहीं गया है। परिणाम अब सामने हैं। कृषि अर्थशास्त्री डॉक्टर सुरेंद्र सिंह चहल ने बताया कि इस योजना में बहुत सी खामियां हैं। इसका फायदा बीमा कंपनी उठा रही है। योजना का जो मॉडल है कम से कम वह किसानों के हित में फिलहाल तो नजर नहीं आ रहा है।

किसानों के लिए घाटे का सौदा क्यों

1-किसानों की मर्जी है या नहीं, फसल का बीमा कराना ही होगा
जिन किसानों ने फसली कर्ज लिया, उन्हें हर हालत में फसल का बीमा कराना होगा। इसके लिए किसानों से पूछा भी नहीं जाएगा। जिस बैंक से कर्ज लिया, वहां से अपने आप ही प्रीमियम की राशि कट कर सीधे बीमा कंपनी के खाते में चली जाएगी।
नुकसान : हरियाणा में 70 फीसदी किसानों की जमीन का ज्वाइंट एकाउंट है। इसमें यदि एक से ज्यादा बैंक से फसली कर्ज लिया तो दो जगह से प्रीमियम कट जाएगा। ऐसा धान के सीजन में हो भी चुका है। यह देखा ही नहीं जा रहा है कि किसानों का पैसा दो जगह से न काटा जाए।

2-कई संस्थाएं शामिल, किसान कहां अपनी बात रखे?
कृषि विभाग, बीमा कंपनी और बैंक तीन संस्थाएं इसमें शामिल हैं। इसके बाद भी किसान कहां अपनी शिकायत रखे। उसकी बात कौन सुने। कौन सी शिकायत कहां करे, इस बारे में कुछ भी स्पष्ट न होने की वजह से असमंजस है।
नुकसान : फसल खराब हुई तो कहां बताएगा। क्या-क्या सावधानी रखनी है। यदि बीमा में कोई दिक्कत आ गई तो किसके पास शिकायत दर्ज कराए। यह सब न होने के कारण बीमार कंपनियों को मनमानी करने का पूरा मौका मिल रहा है।

3-क्लेम कितने दिनों में मिलना चाहिए, योजना में यह तय ही नहीं
क्लेम के लिए टाइम फिक्स नहीं है। यदि किसान को फसल खराब होने के तुरंत बाद मुआवजा नहीं मिलता तो उसके सामने कोई चारा नहीं बच जाता। अब वह या तो ऊंची ब्याज दर पर साहूकार से कर्ज ले या फिर मुआवजे के इंतजार में बैठा रहे।
नुकसान : इससे हुआ यह कि किसान को समय पर पैसा ही नहीं मिला। छह माह होने को आ गए, कंपनी क्लेम नहीं दे रही है। दिक्कत यह है कि कंपनी किसानों को ब्याज भी नहीं देगी। क्योंकि क्लेम देने की कोई समयसीमा तय ही नहीं है।

पहले ही सीजन में 50 करोड़ रुपये कमा गर्इं बीमा कंपनियां
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों की बजाय बीमा कंपनियों को करोड़पति बनाने वाली साबित हो रही है। कंपनियों ने धान के सीजन में सभी फसलों के लिए 200 करोड़ के आस पास क्लेम फिक्स किया है। अकेले धान के सीजन में कंपनियों ने किसानों और सरकार से प्रीमियम के तौर पर लगभग 251 करोड़ रुपये जुटाए थे। इस तरह से कंपनियों को सीधे 50 करोड़ रुपये बच गए हैं।

बीमा कंपनियों ने यूं बैठे बिठाए कमाए 50 करोड़ रुपये
प्रदेश में तीन बीमा कंपनियों ने फसलों का बीमा किया। 6 लाख 96 हजार 454 किसानों से 121 करोड़ 90 लाख 46 हजार रुपये प्रीमियम के तौर पर लिया। राज्य सरकार ने अपने हिस्से के प्रीमियम के तौर पर दिए 83 करोड़ 94 लाख 69 हजार रुपये। केंद्र ने अपने हिस्से के तौर पर 45 करोड़ 57 लाख 22 हजार रुपये दिए। इस तरह से तीनों बीमा कंपनियों ने अकेले खरीफ सीजन में ही 251 करोड़ 42 लाख 37 हजार रुपये का प्रीमियम जुटा लिया। अब यदि 200 करोड़ रुपये किसानों को दे भी दिए जाते हैं तो कंपनियों को सीधे 50 करोड़ रुपये बच रहे हैं।

गेहूं के सीजन में लिया गया 69 करोड़ रुपये का प्रीमियम
रबी सीजन में तीनों बीमा कंपनियों ने किसानों से 69 करोड़ रुपये का प्रीमियम लिया है। इसमें केंद्र व राज्य का शेयर भी आएगा। कृषि मामलों के जानकार डॉ. हरबंस सिंह बैंस ने बताया कि यह पॉलिसी ही गलत है। कंपनियों की जवाबदेही कहां है? ऐसा लगता है कि पूरी तरह से कंपनियों के हितों को ही ध्यान में रखा गया है।

किसानों के हितों से खिलवाड़ क्यों : अरोड़ा
इनेलो के प्रदेश अध्यक्ष अशोक अरोड़ा ने कहा कि पॉलिसी में यह तय ही नहीं कि कितने समय में किसानों को क्लेम मिलेगा। इसका फायदा उठाया गया, जो 200 करोड़ रुपये कंपनियां देंगी, उसका ब्याज क्यों नहीं दे रही हैं। इस पर कृषि मंत्री को जवाब देना चाहिए। आखिर अभी तक क्लेम देने में यह देरी क्यों हुई? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? कृषि मंत्री ने इसे लेकर क्या किया? इसका जवाब किसानों को देना चाहिए। कंपनियों ने किया क्या? बस पैसा जुटाया। पैसा बैंक ने काट कर दिया। स्थिति यह थी कि कंपनियों का एक भी नुमाइंदा फील्ड में नहीं था। ऐसे में साफ है कि कंपनियां किसानों के नाम पर बस मुनाफा ही कमा रही हैं।