वीरेंद्र नाथ भट्ट।

औपनिवेशिक सामंती कुलीन संस्कृति में पले बढ़े उत्तर प्रदेश के नौकरशाहों को योगी आदित्यनाथ के सवाल बहुत मुश्किल लग रहे हैं। अब तक तो वो योगी के बारे में वही जानते थे जो सेकुलर मीडिया परोसता था लेकिन आमना सामना होने पर योगी के सवालों से तो बाबू लोगों के पसीने छूट रहे हैं। मीडिया की गढ़ी गई नकारात्मक छवि को योगी ने 19 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के दो हफ्तों में ध्वस्त कर दिया है और नौकरशाही में यह संदेश चला गया है कि योगी सचमुच काम करने का इरादा रखते हैं और किसी भी तरह का ‘वाद’ काम नहीं आने वाला है। अब तक तो बाबू लोग मजे में रहते थे। जैसे ही नई सरकार बनी तो पुराने हट गए और नए आ गए। लेकिन योगी ‘हट गए यानी बच गए’ की परम्परा को समाप्त कर उन्हीं अफसरों से सवाल कर रहे हैं जिन्होंने समाजवादी और बहुजन राज में जनता के पैसे की लूट की योजनाओं को बढ़कर अमली जामा पहनाया था और अपने राजनीतिक आकाओं की जेब भरी थी।

गोविंद बल्लभ पंत और संपूर्णानंद के बाद योगी आदित्यनाथ पहले मुख्यमंत्री हैं जिनकी सरकार में राज्य मंत्री को भी काम दिया गया है। अब तक केवल जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साधने के लिए विधायक राज्य मंत्री बनाए जाते थे। कल्याण सिंह के पोते संदीप सिंह स्वास्थ्य शिक्षा के राज्य मंत्री हैं और आजकल कैबिनेट मंत्री आशुतोष टंडन के साथ मुख्यमंत्री के निर्देश पर लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के समकक्ष बनाने के प्रोजेक्ट पर काम में जुटे हैं। मुख्यमंत्री के सामने हर विभाग का प्रेजेंटेशन किया जा रहा है और इसकी तैयारी मंत्री और राज्य मंत्री दोनों मिल कर करते हैं। उन पर मुख्यमंत्री के हर प्रश्न का उत्तर देने की भी जिम्मेदारी है। पिछले 28 सालों में भाजपा समेत सपा और बसपा सरकारों में राज्य मंत्री के बारे में कहा जाता था कि इनके पास केवल लाल बत्ती वाली कार है और ‘सर’ तो सरकार के पास है।

प्रदेश के एक सेवानिवृत्त मुख्य सचिव ने कहा, ‘यदि अखिलेश यादव भी पुन: मुख्यमंत्री बनते तो कम से कम 50 प्रतिशत से अधिक प्रमुख सचिव, सचिव, जिला अधिकारी और जिलों के पुलिस कप्तान बदल दिए जाते।’ लेकिन योगी पारंपरिक सामान्य नियम का पालन कर रहे हैं कि वो उन्हीं अफसरों की टीम के साथ काम करेंगे क्योंकि अफसर किसी राजनीतिक दल का नहीं सरकार का कर्मचारी होता है। 1989 से उत्तर प्रदेश में क्षेत्रीय दलों के उदय होने के बाद से जाति-धर्म के आधार पर अफसरों की लेबलिंग से सिविल सर्विस की सारी परम्पराएं खत्म हो चुकी थीं और मुलायम सिंह या मायावती के मुख्यमंत्री बनते ही यह सामान्य जानकारी होती थी कि फलां अफसर अब इस पद पर तैनात होगा। योगी ने अभी तक मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक समेत एक भी प्रमुख सचिव और सचिव को नहीं बदला है।

उत्तर प्रदेश के अफसर आज अखिलेश यादव सरकार के स्वर्णिम दिनों को याद कर रहे हैं। मुख्यमंत्री सुबह दस से पांच तक काम करते थे। साल में एक बार आईएएस वीक के दौरान उनके साथ क्रिकेट भी खेलते थे और लगातार पांच साल हर मैच में अखिलेश यादव ही ‘मैन आॅफ द मैच’ घोषित होते थे। अखिलेश के बारे में कहा जाता था कि वह समाजवादी पार्टी के नहीं सचिवालय प्रशासन सेवा के मुख्यमंत्री हैं। उल्लेखनीय है कि मंत्री और सचिव के निजी सचिव का कैडर सचिवालय प्रशासन सेवा के अधीन आता है।

योगी की अठारह घंटे काम करने और देर रात तक विभागों की मंत्रियों के साथ समीक्षा करने की कार्यशैली के साथ कदम ताल करना अफसरों ही नहीं उनके मंत्रियों के लिए भी मुश्किल साबित हो रहा है। लखनऊ विकास प्राधिकरण के कार्यांे की समीक्षा के दौरान योगी ने प्रश्न किया कि जय प्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय केंद्र के सोलह मंजिला भवन में तरणताल और हेलीपैड की क्या जरूरत थी। 850 करोड़ खर्च हो गया और अभी 250 करोड़ की और जरूरत है। अखिलेश यादव की सरकार ने समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्र की स्मृति में चार सौ एकड़ का पार्क विकसित किया था। समाजवाद की सेवा में चार सौ करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं और कहानी घर और लन्दन आई की तर्ज पर लखनऊ आई के लिए पांच सौ करोड़ की और जरूरत है लेकिन चार सौ करोड़ के खर्चे का हिसाब देने में अफसरों को पसीना आ रहा है। अहमदाबाद में नरेंद्र मोदी की तत्कालीन राज्य सरकार की साबरमती नदी किनारे रीवर फ्रंट के जवाब में अखिलेश यादव ने गोमती रीवर फ्रंट योजना शुरू की थी। योजना की मूल लागत चार सौ करोड़ रुपये थी लेकिन 1500 करोड़ खर्च होने के बाद भी केवल 60 प्रतिशत काम पूरा हुआ है और अभी 500 करोड़ और चाहिए। भारी भरकम खर्च के बाद भी लखनऊ के चालीस से अधिक नालों का पानी आज भी गोमती में जा रहा है। योगी के सवालों की सूची बहुत लंबी है। योगी के इन सवालों का असर धीरे धीरे प्रदेश के कोने कोने तक पहुंच रहा है और जून माह में जब 2017-18 का बजट पेश होगा तब पिछले पंद्रह वर्षों के समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के पंद्रह साल के राज की असली तस्वीर और स्पष्ट होगी।

अब तक योगी आदित्यनाथ ने केवल अपने प्रमुख सचिव पद पर अवनीश अवस्थी की नियुक्ति की है। अखिलेश यादव के समय इस पद पर मुलायम सिंह यादव ने एक विवादास्पद अफसर अनीता सिंह को तैनात कराया था और इसके जरिये मुलायम सिंह का सरकार पर रिमोट कंट्रोल चलता था।

योगी की अफसरों के प्रति नीति को लेकर तरह तरह की चर्चा भी हो रही है। विरोधी पक्ष हवा बना रहा है कि योगी और प्रधानमंत्री कार्यालय के बीच खींचतान के कारण अफसरों का फेरबदल नहीं हो पा रहा है क्योंकि योगी अपनी पसंद के अफसर चाहते हैं और अमित शाह और प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव नृपेन्द्र मिश्रा अपनी पसंद के। लेकिन एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस तरह की बात का सिरे से खंडन करते हुए कहा, ‘सरकार की प्राथमिकता जनादेश के अनुरूप काम करने की है और यदि वो अफसरों के फेरबदल में उलझ गई तो काम के अलावा सब कुछ होगा।’ एक मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘मुख्यमंत्री ने थोक में तबादले न करके अपने दल के विधायक और मंत्रियों को साफ संदेश दिया है कि आगामी मई जून के महीने में ट्रांसफर पोस्टिंग के सीजन में तबादला उद्योग प्रदेश में नहीं पनपना चाहिए। मुख्यमंत्री विधायक दल की बैठक में यह कह भी चुके हैं कि विधायक अफसरों के फेरबदल से दूर रहें।

एक रिटायर्ड आईएएस अफसर बादल चटर्जी ने कहा, ‘उत्तर प्रदेश में अब तक कोई अन्य सरकार होती तो ट्रांसफर उद्योग का शुभारंभ हो गया होता।’ वामपंथी विचारक और लेखक विभूति नारायण राय, जो रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक हैं, कहते हैं, ‘मुझे आश्चर्य है कि सरकार ने अखिलेश यादव की सरकार के दौरान जाति विशेष के दरोगा, इंस्पेक्टर कोतवाली को भी नहीं हटाया है। यदि और देर की तो ये लोग बीजेपी के विधायक और मंत्री के खास बन जाएंगे और इनको हटाना मुश्किल होगा।’ एक अन्य पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘मुख्यमंत्री को पुलिस महानिदेशक जावेद अहमद को तो तुरंत हटा देना चाहिए क्योंकि अखिलेश यादव ने तेरह वरिष्ठ आईपीएस को किनारे कर एक जूनियर अधिकारी को सिर्फ राजनीतिक कारण यानी मुसलमान होने के कारण महानिदेशक बनाया था।’

सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने राजनीतिक हलकों और मीडिया में अफसरों के ट्रांसफर संबंधी जिज्ञासा पर कहा, ‘आखिर सरकार क्या गलती कर रही है? सरकार तेजी से काम कर रही है और पार्टी के चुनाव में किए गए वादों को पूरा करने में लगी है। यदि काम में कमी हो तो हमारे सामने आने पर हम कार्यवाही करेंगे।’ मंत्री ने कहा, ‘प्रदेश में कानून व्यवस्था में सुधार व विकास की गति को तेज करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जल्द ही अफसरों का बड़े पैमाने पर फेरबदल करने जा रहे हैं। इस बदलाव में नौकरशाही के लगभग 200 आईएएस, आईपीएस, पीसीएस और पीपीएस अफसर प्रभावित होंगे। ईमानदारी से काम करने वाले अफसरों को प्रमुख पदों पर तैनात किया जाएगा जबकि बदनाम अफसरों को महत्वहीन पदों पर भेजा जाएगा।’

बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री के निर्देश पर ब्यूरोके्रसी के ईमानदार और बेईमान अफसरों की अलग-अलग सूची तैयार की गई है। इस सूची में शामिल ईमानदार अफसरों को जहां महत्वपूर्ण पदों पर तैनात किया जाएगा, वहीं लगभग दस साल से अहम पदों पर तैनात अफसरों को महत्वहीन पदों पर भेजा जाएगा। इसके अलावा उन अफसरों की भी सूची बनायी गई है, जिनके पिछले कई वर्षों से पदों पर रहते बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है। यह माना जा रहा है कि इस सूची में शामिल अफसरों को ध्यान में रखकर ही ब्यूरोक्रेसी में बदलाव किया जाएगा। 