ओपिनियन पोस्ट ब्यूरो

नदी क्या है? कभी सोचा है। शायद नहीं। फुर्सत ही कहां है हमें। नदी क्यों? यह भी नहीं सोचा। फिर नदी नहीं रही तो क्या होगा? अरे.. ऐसा क्या? क्यों नदी कहां जा रही है? यहीं तो है। नहीं, आप गलत हो। नदी है नहीं, थी…। इस बात पर यकीन नहीं आता। आएगा भी कैसे? पानी मिल रहा है न। अदालत आॅर्डर दे देगी। कभी हरियाण को कभी दिल्ली को। इस आॅर्डर में नदी कहीं नहीं होती। होता है तो उसका पानी। नदी का पानी हमारा तो नदी किसकी? कौन लेगा इसकी जिम्मेदारी? हम क्यों? कंधे उचका कर कोई भी यह बोल सकता है। जिस नदी के चार-चार प्रदेश खैरख्वाह हैं आज लावारिसों की तरह दम तोड़ रही है।

जी हां, हम बात कर रहे हैं यमुना नदी की जो लगातार सूखती जा रही है। कभी फुर्सत मिले तो आईएगा हरियाणा के हथिनी कुंड बैराज पर जहां यमुना का सारा पानी रोक लिया जाता है ताकि शहरों की प्यास बुझाई जा सके। हमने नदी से पानी छीन लिया, उसे मरने के लिए छोड़ दिया, पलट कर देखा भी नहीं। मई महीने में जब कोर्ट में यमुना के पानी को लेकर हरियाणा और दिल्ली एक के बाद एक दलील दे रहे थे तो उसमें नदी की चिंता नहीं बल्कि उसके पानी के बंटवारे की चिंता थी। हरियाणा का तर्क था कि नदी में पानी ही कम है। हम कहां से पानी दें। दिल्ली की दलील थी कि हरियाणा उसके हिस्से का पानी नहीं दे रहा है। 23 मई को नदी का जलस्तर 1200 क्यूसेक पर पहुंच गया। उत्तर प्रदेश और हरियाणा की आपूर्ति बंद है। कोर्ट के आदेश के अनुसार दिल्ली को पानी दिया जा रहा है लेकिन अगर इसी तरह जलस्तर घटता रहा तो आने वाले दिनों में दिल्ली को पानी की आपूर्ति बंद हो सकती है। यमुना का अस्तित्व बचाने के लिए हथनी कुंड बैराज से नियमानुसार 352 क्यूसेक पानी छोड़ा जाता है। जलस्तर 2500 क्यूसेक से नीचे जाते ही उत्तर प्रदेश का हिस्सा नहीं बनता और जलापूर्ति रोक दी जाती है।

ताजेवाला जल सेवाएं मंडल के एसडीओ धर्म पाल ने बताया कि हरियाणा से छह हजार क्यूसेक तथा उत्तर प्रदेश से तीन हजार क्यूसेक पानी की मांग की जा रही है लेकिन नदी का जल बहाव घटकर बहुत कम हो गया है। दिल्ली को कॉमन पूल से 881 क्यूसेक जलापूर्ति की जा रही है। दिल्ली पानी की मात्रा लगातार बढ़ाने की मांग करता रहा है। पर समस्या यह है कि जिस हरियाण से उसे यमुना का पानी मिलना चाहिए वह खुद संकट में है। यमुना में पानी की कमी के चलते हरियाणा को सभी आठ हाईडल प्रोजेक्ट यूनिटें बंद करनी पड़ी। कई जिलों की खेतीबाड़ी भी इससे प्रभावित हो रही है। अहम सवाल है कि आखिर यमुना का पानी कहां जा रहा है? आम तौर पर गर्मियों में जब पहाड़ों की बर्फ पिघलती है तो सर्दियों की तुलना में पानी का स्तर बढ़ जाता है। 12 मई, 1994 को यमुना के पानी के बंटवारे पर हुए समझौते के अनुसार हरियाणा को साल में 5.73 बिलियन क्यूबिक मीटर, दिल्ली को 0.724, राजस्थान को 1.119, हिमाचल को 0.378 और उत्तर प्रदेश को 4 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी देने का प्रावधान है। यमुना में पानी की उपलब्धता के अनुसार इसी मापदंड से पानी का बंटवारा होता है। कई सालों से यह नहीं हो रहा है। ओपिनियन पोस्ट संवाददाता ने यमुना के मौजूदा हालात को समझने के लिए हथनी कुंड बैराज का जायजा लिया।

क्या यहीं यमुना है
बैराज के उस पार और इस पार यमुना की स्थिति अलग-अलग है। हथिनी कुंड बैराज पर यमुना पहाड़ से मैदान में आती है। यहीं सारा पानी छीन लिया जाता है। आगे नदी में रेत ही रेत है। ‘यमुना जीयो’ अभियान के सदस्य राणा करमबीर सिंह का कहना है, ‘नदी की चिंता है किसे? हथिनी कुंड बैराज से आगे नदी का अपना पानी नहीं है। सारा पानी तो राज्यों में बांट लिया जाता है। यमुना के हिस्से का 352 क्यूसेक पानी भी नहीं छोड़ा जाता। नदी के हिस्से का पानी आए, इसके लिए आज तक किसी कोर्ट में कोई अपील ही नहीं हुई।’ यमुना के लिए काम कर रहे पर्यावरणविद भीम सिंह ने बताया, ‘नदी तब तक है जब तक इसमें पानी है। यमुना से पानी छीना जा रहा है। पहले जरूरत के मुताबिक पानी लिया जाता रहा। हमारी जरूरत पड़ती रही, हमनें नदी से पानी लिया। आज हालात यह है कि नदी में पानी नहीं है, सारा पानी राज्यों ने बांट लिया। यमुना नदी में तब पानी छोड़ा जाता है जब दो लाख क्यूसेक जलस्तर हो जाए। यह स्थिति मानसून को छोड़ कर कभी नहीं आती। उत्तराखंड में ही नदी को बांधों से बांध दिया गया है। इसका सीधा असर यह हुआ कि जलस्तर कम होता चला गया। दूसरी वजह यह है कि बढ़ रही गर्मी की वजह से ग्लेशियर कम होते जा रहे हैं। यमुना में जलस्तर के घट रहे आंकड़े इसी ओर इशारा कर रहे हैं।’

क्यों बन रहे यह हालात
बड़े बांध : जल पुरुष के नाम से प्रसिद्ध रैमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित राजेंद्र सिंह कहते हैं, ‘ये यमुना नदी नहीं यमुना नाले की कहानी है। नदी में पानी बना रहे, इसे लेकर कोई योजना ही नहीं है। यह हालात प्रकृति ने नहीं हमने खुद किए हैं। किस तरह से सिंचाई के नाम पर बड़े-बड़े बांध बना दिए गए कभी इनका आॅडिट हुआ क्या? इससे कितना लाभ हुआ किसी ने देखने की कोशिश की क्या? बांधों से सिंचाई का बहाना तो सिर्फ लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए था। अगर सही तथ्य सामने आएं तो वास्तव में बड़े बांधों के कारण कुल मिलाकर सिंचाई पहले की अपेक्षा कम ही हुई है क्योंकि इन बांधों से नदियों का प्रवाह रूक जाने के कारण इन प्रवाहों के दोनों ओर की लाखों एकड़ जमीन और उसमें स्थित कुएं सूख गए हैं। भूगर्भ जल का स्तर पिछले दस-बीस बरसों में पचास से एक सौ फुट तक नीचे चला गया है। 1950 में भारत के कुल सिंचित क्षेत्र की 17 फीसदी सिंचाई तालाबों से की जाती थी। आज यह आंकड़ा दो फीसदी से भी कम है।’

जंगलों की बढ़ती कटाई : बढ़ती आबादी की वजह से लगातार जंगल कम हो रहे हैं। पेड़ अतिरिक्त पानी को रोक कर रखते थे लेकिन पेड़ न होने की वजह से बरसात का सारा पानी नदियों में बह जाता है। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि नदी की सहायक नदियों में पानी तेजी से कम हुआ है। यही वजह है कि मानसून में बाढ़ और गर्मियों में सूखे के हालात बन जाते हैं। जंगल के लिए काम कर रही संस्था आकृति के अध्यक्ष अनुज ने बताया, ‘बढ़ते शहरीकरण से वन क्षेत्र कम हो गया है। उत्तराखंड में ही यमुना नदी के किनारे पेड़ खत्म कर दिए गए हैं। पौधा रोपण की ओर अब कोई ध्यान नहीं दे रहा है। इसका असर नदी पर पड़ रहा है। यमुना नदी के किनारे हरियाली क्षेत्र तेजी से कम हुआ है। कम होती जमीन की वजह से अब यमुना किनारे किसान खेती कर रहे हैं। जो किनारे पहले नदी को सुरक्षा प्रदान करते थे अब यह सुरक्षा भी नहीं रही।’

खनन माफिया : खनन माफिया के निशाने पर नदी है। यमुना नदी में हरियाणा की सीमा में एक हजार करोड़ रुपये के खनन के ठेके दिए जाते हैं। जबकि इतने ही उत्तर प्रदेश की सीमा में हैं। माफिया की कोशिश यही है कि ज्यादा से ज्यादा रेत और पत्थर निकाल लिए जाएं। इससे नदी का स्वरूप बिगड़ गया है। नदी के तट टूट गए हैं। इससे नदी की धारा प्रभावित हो रही है। इससे कटान की समस्या बढ़ रही है। अवैज्ञानिक तरीके से खनन होने से नदी में जो थोड़ा बहुत पानी था वह भी खत्म हो गया। नदी की प्राकृतिक धारा खत्म हो गई।

नदी को बचाया कैसे जाए
पर्यावरणविद् मनोज मिश्रा और डॉ. आदित्य शर्मा का कहना है कि नदी को बचाने के लिए इसके तट के लोगों को साथ जोड़ना होगा। इसके लिए छोटे-छोटे प्रयास करने होंगे। जब तक आम आदमी नदी के साथ नहीं जुड़ता इसे बचाया नहीं जा सकता। खासतौर पर नदी के तट पर खेती करने वाले किसानों को जोड़ना जरूरी है। यह काम बहुत मुश्किल नहीं है। अभी दिक्कत यह है कि नदी के पानी को वहां के लोगों से छीन लिया गया है। उनका पानी पर हक ही नहीं है। ऐसे में उनका नदी से जुड़ाव कैसे होगा यह देखना होगा। हमें एक नहीं कई स्तर पर काम करना होगा। प्रदूषण कैसे रोका जाए यह भी देखना होगा। नदी में पानी निरंतर बना रहे इस बारे में सोचना होगा।

क्या यह संभव है
हथिनी कुंड बैराज से करीब 15 किलोमीटर नीचे और उत्तर प्रदेश के इलाके के 34 किलोमीटर इलाके में एक अलग ही यमुना बह रही है। पानी एक दम साफ सुथरा। नीले रंग के इस पानी में महाशेर मछली समेत कम से कम 20 किस्म की मछलियां देखने को मिल जाएंगी। तट एक दम साफ सुथरा। इसके किनारे पक्षियों की 230 अलग-अलग प्रजातियां निवास कर रही है। हरे भरे तट देख कर यह कह ही नहीं सकते कि यमुना को ठीक नहीं किया जा सकता। यह कैसे संभव हुआ। यही जानने के लिए ओपिनियन पोस्ट संवाददाता ने जब यहां के लोगों से बात की तो पता चला कि यह उनका सामूहिक प्रयास है। इसके लिए वे किसी तरह की सरकारी मदद भी नहीं लेते हैं। कनालसी गांव की यमुना सेवा समिति इसके लिए समय-समय पर जल पंचायत आयोजित करती है। पंचायत में नदी के तट पर खेती करने वाले किसान जुटते हैं। बैठक में पीस चैरिटेबल ट्रस्ट, दिल्ली के अध्यक्ष मनोज मिश्रा का कहना है कि यमुनोत्री से जो यमुना आ रही है उसका पानी हथिनी कुंड बैराज पर रोक लिया गया है। लेकिन यमुना की चार सहायक नदियां यमुना को जिंदा रखे हुए है। ये नदियां हैं, थपना, सोमनदी, थपना तीन व चार। लेकिन दिक्कत यह है कि इन नदियों का पानी भी दूषित हो रहा है क्योंकि इन नदियों में भी पानी कम है। इस पानी को साफ रखने के लिए किसानों ने नदी के किनारों पर जैविक खेती करनी शुरू कर दी है।

नदी के किनारे नीम व इसी तरह के पारंपरिक पौधे लगाए गए। पोपलर व सफेदे की खेती को धीरे-धीरे खत्म किया गया। सहायक नदियों के मार्ग को रोका नहीं गया। किसानों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाए गए, इसमें गोष्ठी जैसे कार्यक्रम आयोजित किए गए। यमुना सेवा समिति रोल मॉडल बनी है। समिति के सदस्यों ने बताया कि नदी के तट पर खेती करने वाले किसानों से वे लगातार संपर्क रखे हुए हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि अब यहां यमुना साफ सुथरी और सदाबहार है। जब कुछ गांव अपने स्तर पर इस तरह का अभियान चला सकते हैं तो ऐसा अभियान बाकी जगह क्यों नहीं? क्या दिल्ली सिर्फ यमुना के पानी के लिए चीखती रहेगी, नदी के लिए नहीं?